स्वास्थ्य का रहस्य
तब बीमारियाँ एक पहाड़ पर रहा करती थीं। उन दिनों की बात है, एक किसान को जमीन की कमी महसूस हुई। अतः उसने पहाड़ काटना शुरु कर दिया। पहाड़ बड़ा घबराया, उसने बीमारियों को आज्ञा दी-बेटियो! टूट पड़ो इस किसान पर और इसे नष्ट-भ्रष्ट कर डालो। बीमारियाँ डंड-बैठक लगाकर आगे बढ़ी और किसान पर चढ़ बैठी। किसान ने किसी की परवाह नहीं की और डटा रहा अपने काम में। शरीर से पसीने की धार निकली और उसी में लिपटी हुई बीमारियाँ भी बह गई। पहाड़ ने क्रुद्ध होकर शाप दे दिया-मेरी बेटी होकर तुमने मेरा इतना काम भी नहीं किया, अब जहाँ हो वहीं पड़ी रहो। तब से बीमारियाँ परिश्रमी लोगों पर असर नहीं कर पातीं। गंदे और आलसी लोग ही उनके शिकार होते हैं।
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परीक्षा की वेला आ गई-
साल में एक बार छात्रों की परीक्षा होती है, उस पर उनके आगामी वर्ष का आधार बनता है। प्रबुद्ध आत्माओं की परीक्षा का भी कभी-कभी समय आया करता है। त्रेता में दूसरे लोग कायरताग्रस्त हो चुप हो बैठे थे, तब ...
माँसाहार या शवाहार
मित्रों !! जिसे हम मांस कहते हैं वह वास्तव में क्या है?आत्मा के निकल जाने के बाद पांच तत्व का बना आवरण अर्थात शरीर निर्जीव होकर रह जाता है।यह निर्जीव,मृत अथवा निष्प्राण शरीर ही लाश या शव कहलाता है।...
आप पढ़े-लिखे लोगों तक हमारी आवाज पहुंचा दीजिए
हमारे विचारों को आप पढ़िए और हमारी आग की चिनगारी को लोगों में फैला दीजिए। आप जीवन की वास्तविकता के सिद्धान्तों को समझिए। ख्याली दुनियां में से निकलिए। आपके नजदीक जितने भी आदमी हैं उनमें आप हमा...
कर्मफल हाथों-हाथ
अहंकार और अत्याचार संसार में आज तक किसी को बुरे कर्मफल से बचा न पाये। रावण का असुरत्व यों मिटा कि उसके सवा दो लाख सदस्यों के परिवार में दीपक जलाने वाला भी कोई न बचा। कंस, दुर्योधन, हिरण्यकशिपु की क...
अहंकार के मोह जाल से बचिये।
यद्यपि सम्पूर्ण भीतरी शत्रुओं- माया, मोह, ईर्ष्या, काम, लोभ, क्रोध इत्यादि का तजना कठिन है, तथापि अनुभव से ज्ञान होता है कि ‘अहंकार’ नामक आन्तरिक शत्रु को मिटाना और भी कष्ट साध्य है। यह...
अपनी स्थिति के अनुसार साधना चाहिए।
साधु, संत और ऋषियों ने लोगों को अपने-अपने ध्येय पर पहुँचने के अनगिनत साधन बतलाये हैं। हर एक साधन एक दूसरे से बढ़कर मालूम होता है, और यदि वह सत्य है, तो उससे यह मालूम होता है कि ये सब साधन इतनी तरह ...
विपत्ति में अधीर मत हूजिए।
जिस बात को हम नहीं चाहते हैं और देवगति से वह हो जाती है, उसके होने पर भी जो दुखी नहीं होते किन्तु उसे देवेच्छा समझ कर सह लेते हैं, वही धैर्यवान पुरुष कहलाते हैं। दुःख और सुख में चित्त की वृत्ति को ...
सेवाव्रती साधुओं! आओ!!
हिन्दू धर्म और हिन्दू समाज की सेवा के व्रती लाखों साधु संन्यासी, भारतवर्ष के ग्रामों, कस्बों और नगरों में स्वतन्त्रता से विचरते हैं। हिन्दू जाति के इस घोर संकट के समय उनका क्या कर्तव्य है? इस विषय ...
पाँच अमानतें, जो ईश्वरीय प्रयोजनों में ही लगाई जाएँ
गीता में भगवान ने विभूति योग का वर्णन करते हुए बताया है कि जहाँ कहीं विशेषताएँ परिलक्षित होती हैं, वहाँ मेरा विशेष अंश देखा, समझा जाना चाहिए। सर्व साधारण को जो विशेषताएँ, विभूतियाँ नहीं मिली हैं और...
आवेशग्रस्त न रहें, सौम्य जीवन जियें (अन्तिम भाग)
भय में अपनी दुर्बलता की अनुभूति प्रथम कारण है और दूसरा है- हर स्थिति को अपने विपरीत मान बैठना। आशंकाग्रस्त व्यक्ति भोजन में विष मिला होने की कल्पना करके स्त्री द्वारा बनाये, परोसे जाने पर भी ...