परिजनों को परामर्श
अपना विशाल परिवार हमने एक ही प्रयोजन के लिये बनाया और सींचा है कि विश्व-मानव की अन्तर्वेदना हलकी करने में और रुदन, दरिद्र, जलन से बचाने के लिये कुछ योगदान सम्भव हो सके, पेट और प्रजनन की कृमि कीटकों जैसी सड़न से ही हम सब बहुमूल्य जिन्दगी न बिता डालें वरन् कुछ ऐसे हो जो जीवनोद्देश्य को समझें और उसे पूरा करने के लिये अपनी विभूतियों और सम्पत्तियों का एक अंश अनुदान दे सकने में तत्पर हो सकें। उच्च आदर्शों पर चल कर विश्व के भावनात्मक नव-निर्माण की दृष्टि से ही हमने अपना विशाल परिवार बनाया। यों दुख कष्ट से पीड़ितों की सहायता के लिए हमारे पास जो कुछ था उसे देते रहे पर उसका प्रयोजन विवेकहीन तथा कथित दानियों द्वारा लोगों की तृष्णा भड़काना स्वल्प प्रयत्न में अधिक लाभ उठाने की दुष्प्रवृत्ति जगाना एवं भिक्षा-वृत्ति का अभ्यस्त बनाना नहीं था। सिद्ध पुरुष हमें संयोग ने ही बना दिया, मनोकामना पूर्ण करने की बात अनायास ही हमारे ऊपर लग पाई वस्तुतः हम लोक मानस में उत्कृष्टता की वृष्टि करने वाले एक संदेश वाहक के रूप में ही आये और जिये। परिवार भी अपने मूल प्रयोजन के लिये ही बनाया।
अपने इस हरे-भरे उद्यान परिवार के फले-फूले परिजन वट-वृक्षों से हम कुछ आशा अपेक्षा रखें तो उसे अनुचित नहीं कहा जाना चाहिए उनके लिए कुछ भाव भरा संदेश प्रस्तुत करें तो इसे उचित ओर उपयुक्त ही माना जना चाहिए। हमारा प्रत्येक परिजन को बहुत ही मार्मिक और दूर-दर्शिता भरा परामर्श हैं, उन्हें गम्भीरता पूर्वक लिया जाना चाहिए उन पर चिंतन−मनन किया जाना चाहिए और यदि वे उचित जंचे तो तद्नुकूल अपनी मनोभूमि एवं क्रिया-पद्धति में ढालने के लिए विचार किया जाना चाहिए।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति, जून १९७१, पृष्ठ ५७
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