विधाता के बहुमूल्य उपहार
एक सच्चे मित्र की तरह जीवन का हर प्रभात तुम्हारे लिए अभिनव उपहार लेकर आता है। वह चाहता है कि आप उसके उपहारों को उत्साहपूर्वक ग्रहण करें। उससे उज्ज्वल भविष्य का शृंगार करें। उसकी प्रतीक्षा रहती है कि कब नया दिन गया है, उसका महत्व समझें और आदर पूर्वक ग्रहण करें।
किन्तु जो दिया गया है, उसका मूल्य नहीं समझा जाता और कूड़े करकट की तरह फेंक दिया जाता है, तो निराश होकर लौट जाता है। बार- बार अवज्ञा होने पर पुनः अपरिचित राही की तरह आता है और निराश होकर लौट जाता है।
ईश्वर ने मनुष्य को अपार सम्पदाओं से भरा- पूरा जीवन दिया है, पर वह पोटली बाँधकर नहीं, एक- एक खण्ड के रूप में गिन- गिन कर। नया खण्ड देने से पहले पुराने का ब्यौरा पूछता है कि उसका क्या हुआ? जो उत्साह भरा ब्यौरा बताते हैं, वे नये मूल्यवान खण्ड पाते हैं। दानी मित्र तब बहुत निराश होता है, जब देखता है कि उसके पिछले अनुदान धूल में फेंक दिये गये।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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