शान्त विचारों की शक्ति (अन्तिम भाग)
जिस मनुष्य की इच्छायें जितनी ही अधिक होती हैं उसे भय, चिन्ता, सन्देह और मोह से मनुष्य की आध्यात्मिक शक्ति का ह्रास होता है। अतएव ऐसे व्यक्ति के संकल्प फलित नहीं होते। वह जो काम हाथ में लेता है उसे पूरे मन से नहीं करता। अधूरा काम अथवा आधे मन से किया गया काम कभी सफलता नहीं लाता। आधे मन से किये गये कार्य में मनुष्य का चेतन मन तो कार्य करता है पर अचेतन मन उस की सहायता के लिये अग्रसर नहीं होता। ऐसी अवस्था में मनुष्य के शीघ्रता से थकावट आ जाती है और वह अपने कार्य को अधूरा छोड़ने के लिये बाध्य हो जाता है।
जिस प्रकार शाँत विचार मनुष्य के स्वभाव को बदल देते हैं और संपर्क में आने वाले व्यक्ति यों को प्रभावित करते हैं, उसी प्रकार दूर रहने वाले व्यक्ति के हृदय को भी प्रभावित करते हैं। एकान्त में हर किसी भी व्यक्ति का चिन्तन करके उसके मन से अपने मन का सम्बन्ध जोड़ सकते हैं। ऐसा करने पर हम उससे वही विचार करवा सकते हैं जो कराना चाहते हैं।
किसी व्यक्ति के प्रति नित्य प्रति हमारे हृदय में आने वाले विचार उस व्यक्ति को प्रभावित करते हैं वह हमारे विषय में भी वैसा सोचने लगता है जैसे कि हम उसके विषय में सोचते हैं। जितना ही हम इस सिद्धान्त पर विश्वास करते हैं कि रेडियो की लहरों की भाँति विचारों की लहरें दूर−दूर के लोगों को प्रभावित करती हैं उतना ही हम प्रत्यक्ष रूप से अपने विचारों द्वारा दूसरे लोगों को प्रभावित करने में समर्थ होते हैं। दूसरों के कल्याण के विचार जितने बली होते हैं उतने अकल्याण के विचार नहीं होते अतएव कल्याण के सभी विचारों से अवश्य लाभ होता है।
.... क्रमशः जारी
अखण्ड ज्योति, मई 1955 पृष्ठ 7
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