अपने आप का निर्माण
मित्रो ! आत्मा को, अपने आप का निर्माण कर लेना-नम्बर एक। अपने परिवार का निर्माण कर लेना-नम्बर दो। अपने समाज को प्रगतिशील बनाने के लिए, उन्नतिशील बनाने के लिए कुछ-न-कुछ योगदान देना-नम्बर तीन। तीन काम अगर आप कर पाएँगे, तो आपको समझना चाहिए कि आपने आत्मा की भूख को बुझाने के लिए और आत्मिक जीवन को समुन्नत बनाने के लिए कुछ कदम बढ़ाना शुरु कर दिया, अन्यथा यही कहा जाएगा कि आप शरीर के लिए मरे हैं और शरीर के लिए ही जिए हैं। शरीर ही आप का इष्टदेव है।
इन्द्रियों के सुख ही तो आपकी आकांक्षा है। वासना तृष्णा ही तो आपको सबसे प्यारे मालूम पड़ते है। शरीर ही सब कुछ नहीं है, शरीर की आकांक्षाएँ ही सब कुछ नहीं है, इन्द्रियाँ ही सब कुछ नहीं है, मन की लिप्सा और लालसा ही सब कुछ नहीं है। कहीं आत्मा भी आपके भीतर है और आत्मा अगर आपके भीतर है, तो आप ये भी विश्वास रखिये कि उसकी भूख और प्यास भी है। आत्मा के अनुदान भी असीम और असंख्य हैं, लेकिन उसके भूख और प्यास भी है। पौधों के द्वारा, पेड़ों के द्वारा हरियाली भी मिलती है, छाया भी मिलती है, पर उनकी अपनी जरूरतें भी तो हैं। आप जरूरत को क्यों भूल जाते हैं? खाद की जरूरत नहीं है? पानी की जरूरत नहीं है? उनकी रखवाली की जरूरत नहीं है? उनकी रखवाली न करेंगे, खाद-पानी नहीं देंगे, तो पेड़ों से और पौधों से क्या आशा करेंगे? इसी तरीके से जीवात्मा का पेड़ और वृक्ष भी अपनी खुराक माँगता है।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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