देव डोली समागम: लोकसंस्कृति के पुनर्जीवन की दिशा में पहला कदम
धरती की गोद में उतरेंगी ज्योतिर्मयी शक्तियाँ, जब जागेगा समाज अपनी संस्कृति के साथ।
|| 20 नवंबर 2024 ||
देव डोली समागम: लोकसंस्कृति के पुनर्जीवन की दिशा में पहला कदम
देव संस्कृति विश्वविद्यालय में पहली बार आयोजित ’देव डोली समागम’ ने एक ऐतिहासिक अध्याय का सूत्रपात किया। मृत्युंजय सभागार में सम्पन्न इस भव्य आयोजन का उद्देश्य उत्तराखंड की लोकसंस्कृति को पुनः जीवंत करना था। इस समागम में माननीय श्रीमती ऋतु खंडूरी जी, अध्यक्ष, उत्तराखंड विधान सभा, ने मुख्य अतिथि के रूप में अपनी गरिमामयी उपस्थिति दर्ज की, और परम पूज्य स्वामी श्री ज्ञानानंद जी महाराज, प्रख्यात आध्यात्मिक गुरु, ने अपने ओजस्वी विचारों से सभा को प्रेरित किया।
इस ऐतिहासिक आयोजन का उद्घाटन देव संस्कृति विश्वविद्यालय के प्रतिकुलपति एवं अखिल विश्व गायत्री परिवार के युवा प्रतिनिधि डॉ. चिन्मय पंड्या जी एवं पधारे गणमान्य अतिथियों के कर कमलों से हुआ।
अपने विचार व्यक्त करते हुए डॉ. चिन्मय पंड्या जी ने अपने भावपूर्ण शब्दों में बताया कि आज का दिन मात्र एक आयोजन नहीं, बल्कि ईश्वर की कृपा और आस्था का सजीव प्रमाण है। उन्होंने कहा, आत्मा के अंतिम शिखर की स्मृति दिलाने के लिए आज देवी-देवता स्वयं हमारे बीच पधारे हैं। यही गायत्री परिवार का परम लक्ष्य है—मनुष्य के भीतर देवत्व का उदय करना और उसे उसकी सर्वोच्च चेतना से जोड़ना। यह क्षण हमारी असीम कृपा और आस्था का अद्वितीय उदाहरण है। यह केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर का पुनर्निर्माण और हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सेतु है, जो उन्हें अपनी संस्कृति से जोड़ेगा। यह कार्यक्रम विश्वविद्यालय के आदर्श वाक्य ‘संस्कृति से आध्यात्मिक उत्थान’ का जीवंत उदाहरण है।
समारोह में उत्तराखंड की अनमोल संस्कृति को सजीव रूप से प्रस्तुत किया गया, जिसमें देव डोलियों का भव्य आगमन और पूजा अनुष्ठान मुख्य आकर्षण रहे। विश्वविद्यालय के छात्र-छात्राओं, संकाय सदस्यों और गणमान्य अतिथियों ने इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। इस अवसर पर सभी ने संकल्प लिया कि ऐसे सांस्कृतिक आयोजनों के माध्यम से हमारी प्राचीन परम्परायें और अधिक प्रखर होकर आगे बढ़ेंगी।
देव डोली समागम, जो विश्वविद्यालय के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ, ने न केवल इस आयोजन में सम्मिलित लोगों को मंत्रमुग्ध किया, बल्कि देव संस्कृति विश्वविद्यालय के मिशन को भी एक नई दिशा दी – एक ऐसा मिशन जो आध्यात्मिक पुनर्जागरण और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण का प्रतीक है।
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