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स्वर्ण जयंती वर्ष में शांतिकुंज पर जारी डाक टिकट शांतिकुंज में उपलब्ध।
पांच रुपए प्रति एक टिकट के दर पर मुख्य कार्यालय शांतिकुंज के टेलीफोन नंबर 9258369701 एवं 01334261328 पर कॉल करके आप इसे अपने पते पर बुला सकते है।
दिनांक 20 जून 2021 को गंगा दशहरा गायत्री जयंती दिवस, और परमपूजनीय गुरुदेव युगऋषि पण्डित श्रीराम शर्मा आचार्य के महाप्रयाण दिवस पर, शांतिकुंज हरिद्वार के स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर, स्वर्ण जयंती वर्ष में भारत सरकार द्वारा केंद्रीय मंत्री संचार, मुख्यमंत्री उत्तराखंड,परम श्रद्धेय डॉ प्रणव पंड्या, स्नेह सलिला श्रद्धेया जीजी एवं आदरणीय डॉ चिन्मय पंड्या जी के गरिमामय उपस्थिति में शांतिकुंज के लिए डाक टिकट जारी किया गया था।
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विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग १)
संसार में अवाँछनीयता कम और उत्कृष्टता अधिक है। तभी तो यह संसार अब तक जीवित है। यदि पाप अधिक और पुण्य स्वल्प रहा होता तो अब तक यह दुनिया श्मशान बन गई होती। यहाँ सत्य, शिव और सुन्दर इन तीनों में से एक का भी अस्तित्व जीवित न रहा होता। आग दुनिया में बहुत है, पर पानी से अधिक नहीं। इतने पर भी हम देखते हैं कि अनाचार घटता नहीं, बढ़ता ही जाता है। सरकारी प्रयत्न रोकथाम के लिए काफी बढ़ाये गये हैं, पर उनकी पकड़ में दुष्टता की पूँछ भर आती है। सारा कलेवर जो जहाँ का तहाँ जमा बैठा रहता और अपना विस्तार करने में संलग्न रहता है। आश्चर्य इस बात का है कि सज्जनता का स्पष्ट बहुमत होते हुए भी दुष्टता क्यों पनपती और फलती-फूलती चली जाती है? रोकथाम की सर्वजनीन आकाँक्षा क्यों फलवती नहीं होती? असुरता की शक्ति क्यों अ...
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विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग २)
दिन-दहाड़े सरे-बाजार गुण्डागर्दी होती रहती है और यह भले बनने वाले लोग चुपचाप उस तमाशे को देखते रहते हैं। गुण्डों की हिम्मत बढ़ती है और वे आये दिन दूने उत्साह से वैसी ही हरकतें करते हैं। यदि देखने वाली भीड़ ने जोर से एक साथ शोर ही मचा दिया होता तो सरे आम गुण्डागर्दी करने वालों के पैर उखड़ सकते थे और दुर्घटना बच सकती थी। अनाचार की घटनाएँ घटती हैं, पुलिस छानबीन करती है, पर प्रत्यक्षदर्शी भले मानुसों में से गवाही देने एक भी नहीं जाता। झंझट से बचने में ही जिन्हें खैर दीखती है वे अनाचार का सामना करने में जो थोड़ी बहुत कठिनाई उठानी पड़ती है, उसका झंझट क्यों मोल लें? इस भीरुता पर प्रत्यक्ष रूप से गुण्डागर्दी का लाँछन तो नहीं लगाया जा सकता, पर प्रत्यक्ष रूप से अनीति को खाद-पानी देने की जिम्मेदारी ...
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विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग ३)
भगवान बुद्ध ने तत्कालीन अनाचारों के- मूढ़ मान्यताओं के विरुद्ध प्रचण्ड क्रान्ति खड़ी की थी, इसी संघर्ष से जूझने के लिए उन्होंने जीवधारी भिक्षुओं और श्रवणों की सेना खड़ी की थी। स्वार्थ के लिए तो सभी संघर्ष करते हैं, किन्तु परमार्थ के लिए लड़ना मात्र आदर्शवादी लोगों के लिए ही सम्भव होता है इसलिए बुद्ध शिक्षा में साधना और संघर्ष का समन्वय है। इसी आधार पर उनने अपने साधनों से सारे विश्व में नव-युग का शंख बजाया और नये जागरण का वातावरण बनाया। उनके न रहने पर अनुयायियों ने अहिंसा की पूजा-पाठ की सस्ती लकीर पीटते रहना तो जारी रखा किन्तु अनीति से लड़ने की कष्टसाध्य प्रक्रिया की ओर से मुँह मोड़ लिया। फलतः बौद्ध धर्म भारत-मध्य एशिया से चढ़ दौड़ने वाले डाकुओं द्वारा देखते-देखते पद-दलित कर दिया गया। शौर्...
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विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (भाग ४)
यज्ञ सन्दर्भ में एक श्रुति वचन प्रयोग होता है- ‘‘मन्यु रसि मन्यु मे दहि’’ हे भगवान् आप ‘मन्यु’ हैं हमें ‘मन्यु’ प्रदान करें। मन्यु का अर्थ है वह क्रोध जो अनाचार के विरोध में उमंगता है। निन्दित क्रोध वह है जो व्यक्तिगत कारणों से अहंकार की चोट लगने पर उभरता है और असंतुलन उत्पन्न करता है। किन्तु जिसमें लोक-हित विरोधी अनाचार को निरस्त करने का विवेकपूर्ण संकल्प जुड़ा होता है वह ‘मन्यु’ है। मन्यु में तेजस्विता, मनस्विता और ओजस्विता के तीनों तत्व मिले हुए हैं। अस्तु वह क्रोध के समतुल्य दीखने पर भी ईश्वरीय वरदान के तुल्य माना गया है और उसकी गणना उच्च आध्यात्मिक उपलब्धियों से की गई है।
राजा द्रुपद के अनाचारों से क्षुब्ध उनके ...
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विरोध न करना पाप का परोक्ष समर्थन (अंतिम भाग)
“चोर-चोर मौसेरे भाई” की उक्ति हर क्षेत्र में लागू होते देखते हैं। एक का पर्दाफाश होते ही-दूसरे अन्य मठकटे उसकी सहायता के लिए आ धमकते हैं। सोचते हैं संयुक्त मोर्चा बनाकर ही जन आक्रोश से बचा जा सकता है अन्यथा पाप के प्रति उभरा हुआ रोष आज एक साथी को दबोच रहा है तो कल दूसरे पर आ चढ़ेगा। इसलिए संयुक्त रूप से बचाव के उपाय करने चाहिए।
देखा गया है कि एक जेबकट पकड़ा जाय तो वह दो-चार चांटे पड़ते ही दहाड़ मारकर रोने-चिल्लाने लगता है मानो किसी ने उसकी गरदन काट ली हो। गिड़गिड़ाते, रोते-काँपते माफी माँगता है और दीनता की दुहाई देता है। इतने में अन्य साथी भले आदमियों के रूप में बीच-बिचाव करने आ पहुँचते हैं। वे तरह-तरह के ऐसे तर्क उपस्थित करते हैं मानो सज्जनता और साधुता के साक्षात...
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चाहिए साहसी, जिम्मेदार:-
युग निर्माण योजना, शतसूत्री कार्यक्रमों में बँटी हुई है। वे यथास्थान, यथास्थिति, यथासंभव कार्यान्वित भी किए जा रहे हैं, पर एक कार्यक्रम अनिवार्य है और वह यह कि इस विचारधारा को जन-मानस में अधिकाधिक गहराई तक प्रविष्ट कराने, उसे अधिकाधिक व्यापक बनाने का कार्यक्रम पूरी तत्परता के साथ जारी रखा जाए। हम थोड़े व्यक्ति युग को बदल डालने के लिए पर्याप्त नहीं हैं। धीरे-धीरे समस्त मानव समाज को सद्भावना सम्पन्न एवं सन्मार्ग मार्गी बनाना होगा और यह तभी संभव है जब यह विचारधारा गइराई तक जन-मानस में प्रविष्ट कराई जा सके। इसलिए अपने आस-पास के क्षेत्र में इस प्रकाश को व्यापक बनाए रखने का कार्य तो परिवार के प्रत्येक प्रबुद्ध व्यक्ति को करते ही रहना होगा।
अन्य कोई कार्यक्रम कहीं चले या ...
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उपहासास्पद ओछे दृष्टिकोण-
यों ऐसे भी लोग हमारे संपर्क में आते हैं जो ऋद्धि-सिद्धि प्राप्त करने के लिए कुण्डलिनी जागरण, चक्र जागरण और न जाने क्या-क्या आध्यात्मिक लाभ चुटकी मारते प्राप्त करने के लिए अपनी अधीरता व्यक्त करते हैं। ऐसे लोग भी कम नहीं जो ईश्वर दर्शन से कम तो कुछ चाहते ही नहीं और वह भी चन्द घण्टों या मिनटों में। भौतिक दृष्टि से अगणित प्रकार के लाभ प्राप्त करने के लिए लालायित, अपनी दरिद्रता और विपन्न स्थिति से छुटकारा पाने की कामना से इधर¬-उधर भटकते लोग भी कभी-कभी मन्त्र-तन्त्र की तलाश में इधर आ निकलते हैं। इन दीन दुखियों की जो सहायता बन पड़ती है वह होती भी है। इस कटौती पर इस प्रकार के लोग खोटे सिक्के ही माने जा सकते है। अध्यात्म की चर्चा वे करते हैं पर पृष्ठभूमि तो उसकी होती नहीं। ऐसी स्थिति में कोई क...
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जिनमें साहस हो आगे आवें
हमारा निज का कुछ भी कार्य या प्रयोजन नहीं है। मानवता का पुनरुत्थान होने जा रहा है। ईश्वर उसे पूरा करने वाले हैं। दिव्य आत्माएँ उसी दिशा में कार्य कर भी रही हैं। उज्ज्वल भविष्य की आत्मा उदय हो रही है, पुण्य प्रभाव का उदय होना सुनिश्चित है। हम चाहे तो उसका श्रेय ले सकते हैं और अपने आपको यशस्वी बना सकते हैं। देश को स्वाधीनता मिली, उसमें योगदान देने वाले अमर हो गये। यदि वे नहीं भी आगे आते तो भी स्वराज्य तो आता ही वे बेचारे और अभागे मात्र बनकर रह जाते। ठीक वैसा ही अवसर अब है। बौद्धिक, नैतिक एवं सामाजिक क्रान्ति अवश्यम्भावी है। उसका मोर्चा राजनैतिक लोग नहीं धार्मिक कार्यकर्त्ता संभालेंगे। यह प्रक्रिया युग-निर्माण योजना के रूप में आरम्भ हुई है। हम चाहते हैं इसके संचालन का भार मजबूत हाथों में चला...
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उत्थान और आनन्द का मार्ग
इन थोड़ी सी पंक्तियों में यह विस्तारपूर्वक नहीं बताया जा सकता कि मन की मलीनता को हटा देने पर हम पतन और संताप से कितने बचे रह सकते हैं, और मन को स्वच्छ रखकर उत्थान और आनन्द का कितना अधिक लाभ प्राप्त हो सकता है। यह लिखने−पढ़ने और कहने−सुनने की नहीं, करने और अनुभव में लाने की बात है। लौकिक जीवन को आनन्द और उत्थान की दिशा में गतिवान करने का प्रमुख उपाय यह है कि हम अपने मन को स्वच्छ कर उसकी मलीनताओं को हटावें। मनन करने वाले को ही मनुष्य कहते हैं। अपनी भीतरी मलीनताओं को खोजना और उन्हें सुधारने का प्रयत्न करना इस संसार का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है। संसार के प्रत्येक महापुरुष को अनिवार्यतः यह पुरुषार्थ करना पड़ा है। क्या यह कोई ऐसा कठिन काम है जो हम नहीं कर सकते? दूसरों को सुधारना कठिन ह...