‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ सूत्र का शुभारम्भ (भाग २)
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यदि वर्तमान परिस्थिति अनुपयुक्त लगती हो और उसे सुधारने बदलने का सचमुच ही मन हो तो सड़ी नाली की तली तक साफ करनी चाहिए। सड़ी कीचड़ भरी रहने पर दुर्गन्ध और विषकीटकों से निपटने के छुट पुट उपायों से कोई स्थायी समाधान मिल नही सकेगा। समाजगत विभीषिकाओं और व्यक्तिगत व्यथाओं के नाम रूप कितने ही क्यों न हो सबका आत्यन्तिक समाधान एक ही है कि दृष्टिकोण की दिशाधारा बदली जाय और अभ्यस्त ढर्रे की रीति नीति में क्रान्तिकारी परिवर्तन किया जाय। उलटे को उलटकर सीधा किया जा सकता है। एक शब्द में इसी को युग क्रान्ति कहा जा सकता है जिसे नियोजित किये बिना और कोई गति नहीं। जहाँ तक उतर चुके उसके उपरान्त अब महा विनाश का, सामूहिक आत्म हत्या का ही अन्तिम पड़ाव है।
मानवी क्षमता इन दिनों अनुपयुक्त को अपनाने बढ़ाने में संलग्न है। हसेना यह चाहिए कि प्रवाह मुड़े और अदूरदर्शिता को निरस्त करके औचित्य को समर्थन मिले। मनुष्य शक्तियों का भण्डार है। दुर्भाग्य एक ही है कि उसे दुष्प्रवृत्तियों में नियोजित करके बर्बादी के लिए प्रयुक्त किया जा रहा है। यह स्थिति उलटी जानी चाहिए। क्षमताओं को अपव्यय से बचाया और सृजन प्रयोजनों में लगाया जाना चाहिए। यहाँ एक आवश्यक और भी है कि जो गन्दगी फैलाई जा चुकी है उसे हटाने के लिए भी तूफानी प्रयत्न किया जाय, अन्यथा मार्ग में बिखरे हुए काँटे प्रगति पथ के अवरोध ही बने रहेंगे।
‘‘हम बदलेंगे युग बदलेगा’’ के उद्घोष में निदान और उपचार के दोनों ही पक्षों का समावेश है। परिस्थितियों को बदलने के लिए मनःस्थिति को, समाज को सुधारने के लिए व्यक्ति परिष्कार को अनिवार्य माना जाना चाहिए। हर व्यक्ति को इस तथ्य से अवगत, सहमत करना चाहिए कि इन दिनों लोक मानस की दिशाधारा में समग्र परिवर्तन की आवश्यकता है। इसके बिना उज्ज्वल भविष्य की संरचना तो दूर, बढ़ती हुई विपत्तियों के त्रास से भी आत्म रक्षा संभव न हो सकेगी।
.... क्रमशः जारी
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
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