यह अच्छी आदतें डालिए (भाग 2)
सुप्रवृत्तियों के विकास से अच्छी आदतों का निर्माण होता है, मनुष्य अपने उत्तम गुणों का विकास करता है और चरित्र में, अंधकार में प्रविष्ट दुर्गुणों का उन्मूलन होता है। अतः हमें प्रारंभ से ही यह जान लेना चाहिए कि हम किन किन गुणों तथा आदतों का विकास करें।
2. संयम :-
नैतिकता जीवन की आधार शिला संयम पर निर्भर है। संयम का तात्पर्य है अपने ऊपर अनुशासन रखना, विवेक के अनुसार शरीर को चलाना इत्यादि। संयमी व्यक्ति अपने मन, वचन, तथा शरीर पर पूर्ण अधिकार रखता है। वह उसे उचित ढंग से चलाता है और मिथ्या प्रलोभनों के वश में नहीं आता। जैसे ही कोई प्रलोभन मन मोहक रूप धारण कर उसके सम्मुख आता है, वैसे ही आत्म−अनुशासन उसकी रक्षा को आ उपस्थित होता है।
संयम हमारे असंयमी उन्मुक जीवन को अनुशासन में लाता है। संयम हमें उचित और विवेक पूर्ण मर्यादा में रहना सीखता है। जो वस्तुएं, आदतें अथवा कार्य हानिकर हैं, उनसे हमारी रक्षा करता है।
मनुष्य तथा पशु, उच्च तथा निम्न कोटि के जीवन में क्या अन्तर है? मनुष्य गन्दगी, त्रुटि, ज्यादती, खराबी, दुर्भाव से अपने आपको रोक सकता है, पशु में यह नियंत्रण नहीं होता। वह वासना के प्रवाह में अन्धा हो जाता है उसे हिताहित, कर्त्तव्य−अकर्त्तव्य, विवेक अविवेक का ज्ञान नहीं होता। मनुष्य संयम द्वारा अपनी इन्द्रिय मन तथा शरीर पर अनुशासन कर सकता है।
विवेक के विकास से संयम आता है। जैसे जैसे मनुष्य का विवेक बढ़ता है उसे यह ज्ञान होता है कि किस बात के अनियंत्रण से क्या क्या हानियाँ संभव हैं। वह इनसे अपनी रक्षा करने का प्रयत्न करता है। फलतः उसका आत्म विकास होता है।
संयम का प्रयोग पाँचों इन्द्रियों के विग्रह में करना चाहिए। हमारी इन्द्रियों के अमर्यादित और अनियंत्रित हो जाने से अनेक रोग पाप दुर्भावों की सृष्टि होती है। अतः सर्वप्रथम इन्द्रिय निग्रह से ही संयम का प्रयोग करना चाहिए।
जीवन का कोई क्षेत्र ऐसा नहीं जिसमें संयम का उपयोग का हो। संयमी व्यक्ति अपनी वासनाओं के परिष्कार द्वारा दीर्घजीवन प्राप्त करता है और शरीर को रोग मुक्त रखता है। संयम अनुशासन का पिता है और हमें वैराग्य भावना प्रदान करता है, योग मार्ग पर एकाग्रता पूर्वक चलने की शिक्षा प्रदान करता है। यह हमारी शक्ति को संग्रह, बुद्धि को स्थिर और मन को अनुशासन से परिपूर्ण करता है।
अखण्ड ज्योति, अप्रैल 1955 पृष्ठ 19
Recent Post
कौशाम्बी जनपद में 4 दिवसीय 24 कुण्डीय शक्तिसंवर्धन गायत्री महायज्ञ का कार्यक्रम हुआ सम्पन्न
● 28 नवंबर को सायंकालीन 2400 दीपों से दीपयज्ञ का हुआ आयोजन
● सैकड़ों परिजनों ने यज्ञ के साथ कराए विभिन्न संस्कार, महिलाओं ने धारण किया यज्ञोपवीत
● प्रतिदिन प्रातः 6 बजे से प...
24 कुण्डीय गायत्री महायज्ञ को लेकर जोर शोर से चल रही हैं तैयारियां
कौशाम्बी जनपद के करारी नगर में अखिल विश्व गायत्री परिवार के तत्वावधान में 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन होने जा रहा है। कार्यक्रम 26 नवंबर से शुरू होकर 29 नवंबर तक चलेगा। कार्यक्रम की तैयारिया...
कौशाम्बी जनपद में 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ 26 नवंबर से 29 नवंबर तक
उत्तर प्रदेश के कौशाम्बी जनपद में अखिल विश्व गायत्री परिवार की जनपद इकाई के द्वारा करारी नगर में 24 कुंडीय गायत्री महायज्ञ का आयोजन 26 नवंबर से प्रारंभ हो रहा है। यह कार्यक्रम 26 से प्रारंभ होकर 29...
चिन्तन कम ही कीजिए।
*क्या आप अत्याधिक चिन्तनशील प्रकृति के हैं? सारे दिन अपनी बाबत कुछ न कुछ गंभीरता से सोचा ही करते हैं? कल हमारे व्यापार में हानि होगी या लाभ, बाजार के भाव ऊँचे जायेंगे, या नीचे गिरेंगे।* अमुक ...
भारत, भारतीयता और करवाचौथ पर्व
करवा चौथ भारतीय संस्कृति में एक विशेष और पवित्र पर्व है, जिसे विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और आरोग्य के लिए मनाती हैं। इस व्रत का धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व अत्यधिक...
प्रत्येक परिस्थिति में प्रसन्नता का राजमार्ग (भाग 4)
बुराई की शक्ति अपनी सम्पूर्ण प्रबलता के साथ टक्कर लेती है। इसमें सन्देह नहीं है। ऐसे भी व्यक्ति संसार में हैं जिनसे ‘‘कुशल क्षेम तो है’’ पूछने पर ‘‘आपको क्...
घृणा का स्थान
निंदा, क्रोध और घृणा ये सभी दुर्गुण हैं, लेकिन मानव जीवन में से अगर इन दुर्गुणों को निकल दीजिए, तो संसार नरक हो जायेगा। यह निंदा का ही भय है, जो दुराचारियों पर अंकुश का काम करता है। यह क्रोध ही है,...
अनेकता में एकता-देव - संस्कृति की विशेषता
यहाँ एक बात याद रखनी चाहिए कि संस्कृति का माता की तरह अत्यंत विशाल हृदय है। धर्म सम्प्रदाय उसके छोटे-छोटे बाल-बच्चों की तरह हैं, जो आकृति-प्रकृति में एक-दूसरे से अनमेल होते हुए भी माता की गोद में स...
प्रगति के पाँच आधार
अरस्तू ने एक शिष्य द्वारा उन्नति का मार्ग पूछे जाने पर उसे पाँच बातें बताई।
(1) अपना दायरा बढ़ाओ, संकीर्ण स्वार्थ परता से आगे बढ़कर सामाजिक बनो।
(...
कुसंगत में मत बैठो!
पानी जैसी जमीन पर बहता है, उसका गुण वैसा ही बदल जाता है। मनुष्य का स्वभाव भी अच्छे बुरे लोगों के अनुसार बदल जाता है। इसलिए चतुर मनुष्य बुरे लोगों का साथ करने से डरते हैं, लेकिन अच्छे व्यक्ति बुरे आ...