यह अच्छी आदतें डालिए (भाग 1)
सुप्रवृत्तियों के विकास से अच्छी आदतों का निर्माण होता है, मनुष्य अपने उत्तम गुणों का विकास करता है और चरित्र में, अंधकार में प्रविष्ट दुर्गुणों का उन्मूलन होता है। अतः हमें प्रारंभ से ही यह जान लेना चाहिए कि हम किन किन गुणों तथा आदतों का विकास करें।
नैतिकता:—
उत्तम चरित्र का प्रारंभ नैतिकता से होता है। नैतिकता अर्थात् श्रेष्ठतम आध्यात्मिक जीवन हमारा लक्ष्य होना चाहिए। नैतिकता हमें सद् असद्, उचित अनुचित, सत्य असत्य में अन्तर करना सिखाती है। नैतिकता सद्गुणी जीवक का मूलाधार है। यह हमें असद् आचरण, गलतियों अनीति और दुर्गुणों से बचाती है। नैतिकता का आदि स्रोत परमेश्वर है। अतः यह हमें ईश्वरीय जीवन व्यतीत करने की शिक्षा प्रदान करती है। यह वह जीवन शास्त्र है जो हमारे जीवन के कार्यों की आलोचना कर हमें उच्च आध्यात्मिक जीवन की ओर प्रेरित करती है।
नैतिकता धर्म का व्यवहारिक स्वरूप है। हम प्रायः उत्तम ग्रन्थ पढ़ते हैं, अनेक जीवन सूत्र जानते हैं किन्तु उत्तम आचरण जीवन में नहीं करते हैं। नैतिकता उस ज्ञान के व्यवहार और प्रयोग का नाम है। यह हमें जीवन को सही रूप में जीना सिखाती है। हमें क्या करना चाहिए? हमारा क्या कर्त्तव्य है? सही मार्ग कौन सा है? किस कार्य से हमें सर्वाधिक आत्म संतोष प्राप्त हो सकता है?—यह नैतिकता के मूल प्रश्न हैं। आपको वही करना चाहिए, जो उचित है, सबसे अधिक फल देने वाला है, जिसमें कोई गलती नहीं है। यह सब ज्ञान हमें नैतिकता से जीवन व्यतीत करने पर प्राप्त होते हैं।
नैतिकता के बिना धर्म का कोई अर्थ नहीं है। यह अव्यावहारिक और कल्पना शील बनता है। बिना नैतिकता के धर्म एक ऐसे वृक्ष के समान है जिसमें जड़ नहीं है। बिना नैतिकता के व्यवहारिक जीवन ऊँचा नहीं उठ सकता, न ईश्वरीय तथ्यों का जीवन में प्रकाश हो सकता है।
अखण्ड ज्योति, अप्रैल 1955 पृष्ठ 18
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