कृपा कर क्रोध मत कीजिए (भाग 2)
क्रोध का स्वभाव है कि यदि वह क्षणभर के लिए रोक दिया जाय, तो वह सब समय के लिए रुक जाता है। विलियम जेम्स का कथन है कि क्रोध आने पर दस तक गिनती कहो तो क्रोध विलीन हो जाता है। क्रोध की अवस्था में हम कभी−कभी बालक जैसा व्यवहार करने लगते हैं−पीछे ऐसे व्यवहार पर ही आत्म ग्लानि होने लगती है, अथवा उन पर हँसी आती है। ऐसा एक बार होने पर कई बार ऐसा ही हम करते रहते हैं। यही जीवन का भारी रहस्य है। बड़े−बड़े विद्वान् जब क्रुद्ध होते हैं, तब अपना सिर आप ही फोड़ने लगते हैं। अपना ही नुकसान करने से उन्हें सन्तोष होता है। इस प्रकार बराबर क्रोध प्रदर्शन करने से उनका स्वास्थ्य नष्ट हो जाता है, तो कितने ही लोग समय से पूर्व ही काल−कवलित हो जाते हैं। इन सब बातों को जान कर भी क्रोध रोके नहीं रुकता। फिर रोकने का उपाय क्या है?
अभिमान की कमी और प्रेम की वृद्धि क्रोध को रोकती है। जिन्हें बातों से अभिमान की वृद्धि होती है, उन्हें त्यागना चाहिए। चापलूसी की बातें सुनने से अभिमान की वृद्धि होती है। अभिमान की वृद्धि मानसिक शक्ति के ह्रास का सूचक है। जिस प्रकार विद्युत−शक्ति के रखने के लिए इन्स्यूलेटर की जरूरत पड़ती है उसी प्रकार मानसिक शक्ति को कायम रखने के लिये इन्स्यूलेटर की जरूरत है। अतएव जिस व्यक्ति को अपनी मानसिक शक्ति कायम रखना है, उसे जान बूझकर प्रतिदिन अपने साथियों से थोड़ी देर के लिए अलग हो जाना चाहिए। उसे सब समय समाज में न रहना चाहिए।
समाज के लोगों में उनकी सेवा करने के लिए तथा अपने प्रेम−प्रदर्शन भर के लिए आना चाहिए, पीछे उसे अपने आप में चला जाना चाहिए। जो मनुष्य किसी भारी विचार में लगा रहता है वह सामाजिक कार्यों में उतना ही भाग लेता है, जितना कि अति आवश्यक है। ऐसा करने से वह अपनी मानसिक शक्ति का ह्रास नहीं होने देता। उसके ध्वंसात्मक संवेग पहल से ही निर्बल हो जाते हैं, और अगर वे किसी समय उत्तेजित भी हुए तो वह उन्हें सरलता से काबू में कर लेता है।
अखण्ड ज्योति, अप्रैल 1955 पृष्ठ 6
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