शक्ति संचय के पथ पर (अन्तिम भाग)
क्षमा वीरों का धर्म है, अशक्तों का नहीं। जो पूर्ण स्वस्थ है उसके लिए खीर, पुआ मोहनभोग, घी, रबड़ी का सेवन लाभदायक है पर जो रोग से चारपाई पे रहा है, उठकर खड़े होने की शक्ति जिसमें नहीं, उसके लिए वे पौष्टिक पदार्थ लाभदायक नहीं है, उसके लिए तो वे अहित कर परिणाम ही उपस्थित करेंगे। वे निर्बल जो अपने न्यायोचित अधिकारों की रक्षा नहीं कर सकते, अपनी आत्म रक्षा में सफल नहीं होते, यदि शान्ति और क्षमा की रट लगाते हैं तो समझना चाहिए कि अपनी निर्बलता और कायरता छिपाने का एक थोथा बहाना ढूँढ़ते हैं। मुकाबला करने को धर्म ग्रन्थों और राजकीय कानूनों का समर्थन प्राप्त है।
हमें अपनी दुर्गति को रोकना है तो बकरी की स्थिति से ऊँचा उठना होगा। किसी पर आक्रमण करने का किसी को सताने का उद्देश्य कदापि न रखते हुए भी आत्मरक्षा के लिए हमें शक्ति सम्पन्न बनना चाहिए आतताइयों के आक्रमण का मुँह तोड़ उत्तर देने की क्षमता हमारे अन्दर जैसे उत्पन्न होती जायगी वैसे ही वैसे अकारण सिर के ऊपर टूटते रहने वाले अनर्थों से छुटकारा मिलने लगेगा।
अंग्रेजी की एक कहावत है कि शक्ति का प्रदर्शन, शक्ति के प्रयोग को रोकता है। जिसके पास शक्ति होती है उसको उसका प्रयोग बहुत कम करना पड़ता है उसका परिचय पाकर ही दुष्ट लोग दहल जाते हैं और दुष्टता का दुस्साहस करने की हिम्मत नहीं पड़ती। पर जहाँ वह निधड़क होते हैं कि न तो हमारे आक्रमण का मुकाबला किया जायगा और न पीछे कोई दण्ड मिलेंगे वहाँ उनकी दुष्टता नंगे रूप में नाचने लगती है। ऐसी विषम स्थिति से बचने का एक मात्र उपाय शक्ति का परिचय देना ही है। बकरे की माँ कब तक दुआ माँगती रहेगी निर्बल की रक्षा बातूनी जमा खर्च से नहीं हो सकती।
धन कमाने और धर्म चर्चा करने की ओर आज हमारे समाज की प्रवृत्तियाँ विशेष रूप से हैं पर यह दोनों कार्य भी तब तक ठीक प्रकार नहीं हो सकते, जब तक अमन चैन का वातावरण न हो। अशान्त वातावरण का कारण शक्ति सन्तुलन का बिगड़ जाना है। इसे ठीक किये बिना जीवन की कोई दिशा स्थिर नहीं रह सकती, आज समय का तकाजा है कि हम अपनी निर्बलता और कायरता को निकाल फेंके। संगठन करें, शारीरिक बल बढ़ावें, आत्मरक्षा के लिए लाठी आदि की शिक्षा प्राप्त करें और मुसीबत के समय एक दूसरे की सहायता करते हुए आततायियों के आक्रमण को विफल बनाने की तैयारी करें। हम आत्मरक्षा के साधनों से जब सुसज्जित हो जायेंगे तभी बकरी की स्थिति से छुटकारा पा सकेंगे। बाहर से और भीतर से होने वाले आक्रमण से बचने के लिए शक्ति संचय के पथ पर अग्रसर होना चाहिए। शक्ति से ही शान्ति स्थापित होती है।
.... समाप्त
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड-ज्योति 1946 नवम्बर पृष्ठ 4
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