सद्विचारों द्वारा जीवन लक्ष्य की प्राप्ति (भाग 2)
अज्ञान, आसक्ति, अहंकार वासना एवं संकीर्णता के बंधनों से छुटकारा पाने को ही मुक्ति कहते हैं। आत्मा-परमात्मा का अंश होने के कारण स्वभावतः युक्त है, उसे यह कुप्रवृत्तियाँ ही अपने बंधन में बाँधकर मायाबद्ध जीव बना लेती है। इन बंधनों से छुटकारा मिलते ही आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप में प्रतिष्ठित हो जाता है और जीवन मुक्ति का अनिर्वचनीय उपलब्ध करने लगता है।
अपनी भूल आप समझ में नहीं आती, यदि समझ में आ जाय तो उसे तुरन्त सुधार लें। रोगी यह नहीं समझता कि मैं कुपथ्य कर रहा हूँ यदि उसे ऐसा पता होता तो कुपथ्य करके प्राणों को संकट में क्यों डालता? यों तो कहने सुनने को हर एक भूल करने वाला और कुमवृध करने वाला यह जानता है कि जो कर रहे हैं वह ठीक नहीं पर ऐसा केवल बाहरी रूप से ही सोचा जाता है, यदि अन्तःकरण के गहन अन्तराल को सच्चे हृदय से या कुपंथ की बुराई मालूम हो जाय तो उसे छोड़ते हुए देर न लगे।
बात माया बन्धन के बारे में है। स्वार्थ, वासना के निकृष्ट सुख में लोग वैसे ही अनुभव करते रहते हैं जैसे कुत्ता सूखी हड्डी चबा कर मसूड़े छिलने से निकलने वाले ही रक्त को ही चाटता है और रक्तपान का अनुभव करता है। यदि मानव मन को अनुभूति अंतःकरण के गहरे अन्तराल में होना कि माया बन्धन के कटघरे में जो सुख है क्रमवश सुख लगता है वस्तुतः वह भारी घाटे विपत्ति का कारण है तो उसे अपने बन्धनों को तोड़ने में निश्चय ही तत्परता हो जाएगी।
इस अनुभूति के लिए ही आध्यात्मवाद समस्त शिक्षा और साधना है। इस श्रेय मार्ग पर चलने वाला सत् का महत्व समझ जाता वह सद्विचारों को अपनाता है, जिससे सुदूर और सत्कार्यों में उसकी प्रवृत्ति होती है और धीरे-धीरे वह सत्पुरुष बनता हुआ सन्मार्ग चलता हुआ जीवन लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है।
अखण्ड ज्योति मार्च 1950 पृष्ठ 15
Recent Post
नवरात्रि अनुष्ठान का विधि विधान
नवरात्रि साधना को दो भागों में बाँटा जा सकता है। एक उन दिनों की जाने वाली जप संख्या एवं विधान प्रक्रिया। दूसरे आहार−विहार सम्बन्धी प्रतिबन्धों की तपश्चर्या। दोनों को मिलाकर ही अनुष्ठान पुरश्च...
आश्विन नवरात्रि:- शक्ति आराधना की है यह वेला
नवरात्रि शक्ति साधना का पर्व है। वैसे तो माता का प्रेम अपनी संतान पर सदा ही बरसता रहता है, पर कभी-कभी यह प्रेम छलक पड़ता है, तब वह अपनी संतान को सीने से लगाकर अपने प्यार का अहसास कराती है। संरक्षण ...
नवरात्रि अनुशासन
उपवास का तत्वज्ञान आहार शुद्धि से सम्बन्धित है, “जैसा खाये अन्न वैसा बने मन” वाली बात आध्यात्मिक प्रगति के लिए विशेष रुप से आवश्यक समझी गई हैं। इसके लिए न केवल फल, शाक, दूध जैसे सुपाच्य...
अजस्र अनुदानों को बरसाने वाली यह नवरात्रि-साधना
अनुष्ठान के अंतर्गत साधक संकल्पपूर्वक नियत संयम-प्रतिबन्धों एवं तपश्चर्याओं के साथ विशिष्ट उपासना पद्धति को अपनाता है और नवरात्रि के इन महत्वपूर्ण क्षणों में अपनी चेतना को परिष्कृत-परिशोधित करते हु...
नवरात्रि अनुष्ठान का विधि- विधान
नवरात्रि साधना को दो भागें में बाँटा जा सकता है : एक उन दिनों की जाने वाली जप संख्या एवं विधान प्रक्रिया। दूसरे आहार- विहार सम्बन्धी प्रतिबन्धों की तपश्चर्या। दोनों को मिलाकर ही अनुष्ठान पुरश्चरणों...
जीवन में विकास कीजिए:-
आपका शरीर प्रतिदिन विकसित हो रहा है। प्रत्येक दिन शरीर में नए रक्त, मज्जा, तन्तुओं का विकास हो रहा है पर खेद है कि शारीरिक अनुपात में मानसिक और आध्यात्मिक विकास नहीं हो रहा। आपका शरीर बड़ा हो...
यौवन की जिम्मेदारी
युवावस्था जीवन का वह अंश है, जिसमें उत्साह, स्फूर्ति, उमंग, उन्माद और क्रिया शीलता का तरंगें प्रचण्ड वेग के साथ बहती रहती है। अब तक जितने भी महत्वपूर्ण कार्य हुए हैं, उसकी नींव यौवन की सुदृढ़ भूमि ...
चिन्ता पीडित व्यक्ति
मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु रोग- क्षय से पीडित रोगियों में सबसे अधिक संख्या उनकी है जिन्होंने रात दिन दुश्चिन्ताएँ करके अपने शत्रु को बुलाया है। चिन्ता पीडित व्यक्ति के लक्षण:-
(1)...
सद्विचारों द्वारा जीवन लक्ष्य की प्राप्ति
प्रत्येक मनुष्य अपने विचारों द्वारा ही अपना आत्म निर्माण करता है। क्योंकि विचार का बीज ही समयानुसार फलित होकर गुणों का रूप धारण करता है और वे गुण, मनुष्य के दैनिक जीवन में कार्य बनकर प्रकट होते रहत...
सद्विचारों द्वारा जीवन लक्ष्य की प्राप्ति (भाग 2)
अज्ञान, आसक्ति, अहंकार वासना एवं संकीर्णता के बंधनों से छुटकारा पाने को ही मुक्ति कहते हैं। आत्मा-परमात्मा का अंश होने के कारण स्वभावतः युक्त है, उसे यह कुप्रवृत्तियाँ ही अपने बंधन में बाँधकर मायाब...