चिन्ता पीडित व्यक्ति
मनुष्य के सबसे बड़े शत्रु रोग- क्षय से पीडित रोगियों में सबसे अधिक संख्या उनकी है जिन्होंने रात दिन दुश्चिन्ताएँ करके अपने शत्रु को बुलाया है। चिन्ता पीडित व्यक्ति के लक्षण:-
(1) चिन्तित व्यक्ति हमेशा दुःखी बना रहता है। उसके पेट में और सिर में प्राय: दर्द बना रहता है। स्वास्थ्य के मुख्य आधारभूत अंग पेट और सिर ही है और यह दोनों ही दुश्चिन्ता करने से भारी बने रहते हैं।
(2) दुश्चिन्ता करने वाला व्यक्ति कायर हो जाता है और कायरता की यह प्रवृत्ति विशेष रूप से उन मौकों पर परिलक्षित होती है जब उसे बाह्य संसार की वास्तविकता का सामना करना पड़ता है। उसे सदैव भयंकर हानि का खतरा अनुभव हुआ करता है। कभी कभी तो वह अकारण ही भयभीत हो जाया करता है।
(3) चिन्ताशील व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी होती है। दूसरों के प्रति उस के मन में संदेह बना ही रहता है। चाहे जितना उसका उत्साहवर्धन किया जाय, उसे असफलता ही नजर आती है।
(4) उसमें आवश्यकता से अधिक झुझलाने की आदत पैदा हो जाती है। कभी कभी उसके साथ अन्य लोगों का उठना- बैठना भी कठिन हो जाता है। वह अपनी अस्थिरता को छिपाने की चेष्टा करता है पर उसकी चेष्टा बेकार सिद्ध होती है। जरा- जरा सी बात पर उसका खून खौल उठता है।
(5) वह अत्यन्त अनुभूतिशील और आवश्यकता से अधिक सम्मान प्रिय होता है। इसलिये समाज के प्रति उसका दृष्टिकोण गलत और अतिरंजित होता है। वह अपने ही मित्रों, प्रियजनों, परिजनों और परिवारजनों के कार्यों और कथन का उल्टा अर्थ लगाता है, कभी हर बात में वह अपना ही दोष समझता है। इस प्रकार वह अपना जीवन बहुत दु:खी बना लेता है।
(6) वह प्राय: नैराश्यपूर्ण भावों से ओत- प्रोत रहता है। कुछ मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि उसे निराशा में ही आनन्द आता है, अन्यथा वह उन तामसिक भावों से इतना लीन क्यों रहता? पर चिन्ता पीडि़त व्यक्ति उन भावों से छुटकारा पाना चाहता है, वह उनसे पीछा छुड़ाने में बिल्कुल असमर्थ हो जाता है।
(7) चिन्ता करने से बड़ी जल्दी थकावट आ जाती है। ऐसा जान पड़ता है कि शरीर और मन दोनों थक गये हों। ऐसी थकावट हर समय बनी रहती है। जहाँ चिन्ता है वहाँ थकावट अवश्य होगी।
पं श्रीराम शर्मा आचार्य
अखण्ड ज्योति से
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