जीवन में विकास कीजिए:-
आपका शरीर प्रतिदिन विकसित हो रहा है। प्रत्येक दिन शरीर में नए रक्त, मज्जा, तन्तुओं का विकास हो रहा है पर खेद है कि शारीरिक अनुपात में मानसिक और आध्यात्मिक विकास नहीं हो रहा। आपका शरीर बड़ा होता जा रहा है किन्तु मन बच्चों जैसा अविकसित ही पड़ा है। उसमें उन तत्वों का विकास नहीं हुआ, जिनसे मनुष्य पूर्णता प्राप्त करता है।
मन विकसित हुआ या नहीं, यह जानने के लिए निम्न प्रश्नों का उत्तर दीजिए:-
1. क्या आप आत्मनिर्भर हैं, या हीनता के भाव को, लोगों से बात करते या व्यवहार करते हुए अनुभव करते हैं?
2. मन की शान्ति या उत्साह के लिए आप दूसरों के विचारों और मन्तव्यों पर कहाँ तक निर्भर रहते हैं? दूसरों के कुत्सित संकेत क्या आपको पस्त हिम्मत कर देते हैं या आप बिना उनकी परवाह किए अविचल भाव से अपने कर्तव्य-पथ या निर्दिष्ट मार्ग पर आरुढ़ हैं?
3. क्या आप मिथ्या घमंड, अहंकार या दूसरों की तारीफ के आदी बन गये हैं? बच्चे प्रायः जरा सी तारीफ से प्रसन्न हो उठते हैं, तनिक सी कठोर बात से विक्षुब्ध हो उठते हैं। क्या आप भी अपने को इसी श्रेणी में रक्खे हुए है? क्या दूसरों की झूठी तारीफ का जादू आप पर चलता है? यदि चलता है तो आप अभी अविकसित ही हैं।
4. क्या आप अपनी पोशाक की बहुत देखभाल रखते हैं? बाहर से शृंगार बनाकर अंदर का खोखलापन छिपाना चाहते हैं? क्या आपको आभूषणों, फेस पाउडर, रोज हजामत, टीप-टाप का शौक अभी तक बना हुआ है? क्या आप बच्चों की तरह अब भी चटकीले, रंग बिरंगे वस्त्र पहनने के आदी हैं?
5. जिह्वा के स्वाद में, स्वादिष्ट मिष्ठान्न और मेवे पकवान चाट पकौड़ी बीड़ी पान क्या इनमें आपको रुचि है? यदि हाँ, तो आप अभी रुचि में परिष्कार नहीं हुआ है। परिपक्वता और विकास इस दिशा में नहीं हुए हैं।
ऊपर लिखे हुए प्रश्नों पर विचार कीजिए। इनसे आपको अपने रुचि परिष्कार एवं विकास का कुछ ज्ञान होगा।
अखण्ड ज्योति मार्च 1950 पृष्ठ 13
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