
रामकृष्ण परमहंस के उपदेश
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
ईश्वर को ऐसा समझिये, जैसा खाँड़ का पर्वत। छोटी चींटी उसमें से छोटे दाने ले जाती है और बड़ी बड़े दाने उठाती है, फिर भी पर्वत ज्यों का त्यों रहता हैं, उसको सारा का सारा कोई नहीं उठा सकता। इसी प्रकार भक्त लोग परमात्मा के दिव्य गुणों में से थोड़ा सा प्रसाद पाकर ही प्रसन्न हो जाते हैं, पर उनका सम्पूर्ण रूप कोई नहीं जानता।
सत्पुरुषों का सत्संग ऐसा समझिये जैसे चावल का माँड। चावल का माँड पीने से नशा उतर जाता है और सत्पुरुषों के सत्संग से विषय वासनाओं की उन्मत्तता चली जाती है।
आग के पास रखने पर गीली लकड़ी भी सूख जाती है और कुछ समय बाद वह सूखी की तरह ही जलने लगती है। सत्पुरुषों का सत्संग लोभ आदि विषयों का गीलापन सुखा कर मनुष्यों को इस योग्य बना देता है कि उनमें विवेक रूपी अग्नि प्रज्ज्वलित हो सके।
आग को यों ही पड़ा रहने दिया जाये तो उस पर राख जम जायगी और थोड़ी देर बाद वह बुझ जायगी, किन्तु यदि उसे कुरेदते रहें और नया ईंधन डालते रहें तो वह फिर न बुझेगी। अकेला बैठने वाला मनुष्य बुद्धिहीन हो जाता है, किन्तु सत्पुरुषों की संगति करने वाला सदैव चैतन्य बना रहता है।
लाखों मण मोती समुद्र के गर्भ में छिपे पड़े हैं, पर वे मिलते उन्हें ही हैं जो गहरी डुबकी लगा कर खोज करते हैं। संसार में अनेक प्रकार की सिद्धियाँ हैं, पर वे मिलती उन्हें ही हैं जो उन्हें प्राप्त करने के लिए परिश्रम करते हैं।