
सादा जीवन, उच्च विचार
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उच्च विचार, सादा जीवन में ही संभव है। अखण्ड-ज्योति के पाठक उच्च विचारों का महत्व जानते होंगे और उन्हें प्राप्त करने के लिए लालायित रहते होंगे। उन्हें जानना चाहिए कि यह सादा जीवन द्वारा ही संभव हैं। जितनी बनावट और अस्वाभाविकता को हम अपनाते जावेंगे उतने ही उच्च विचार जीवन से दूर हटते जावेंगे।
सादगी का अर्थ दीनता, हीनता या दरिद्रता नहीं है, वरन् यह है बिना आडंबर के उपयुक्त और आवश्यक वस्तुओं का शुद्धतापूर्वक प्रयोग करना। यह सादगी हमारे नित्य व्यवहार में मिली हुई होनी चाहिए।
रहने के स्थान का हमारे ऊपर बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है, इसलिए घर वहाँ होना चाहिए जहाँ दुष्ट स्वभाव के लोगों का पड़ोस न हो। जेलखाना, मदिरालय, वेश्यालय, वध स्थल अथवा दुर्गन्धपूर्ण वातावरण में हमारे घर नहीं होने चाहिए। क्योंकि यहाँ की दुर्भावनाएं उड़-उड़ कर पड़ोसियों के मस्तिष्क में विक्षेप पैदा करती हैं। इसी प्रकार उस मकान में भी नहीं रहना चाहिए जिसमें वायु और प्रकाश की कमी हो, अथवा उसमें या उसके पड़ोस में क्रोधी, गुण्डे, दुराचारी और चिर पीड़ित लोग रहे हों तथा रहते हों। घर चाहे छोटा हो पर स्वच्छ, सुन्दर और साफ होना चाहिए। घर की सजावट भी आवश्यक है। वस्तुओं को ज्यों-ज्यों पड़ी रहने न देना चाहिए और उन्हें यथास्थान लगा देना चाहिए। चित्र टाँगना और आदर्श वाक्य लिखना यह जरूरी है। यह जड़ वस्तुएं होने पर भी चैतन्य शिक्षक का काम करती हैं और अपना प्रभाव निरन्तर वहाँ रहने वालों पर डालती रहती हैं, अपने चरित्र, स्वभाव और विचारों का सबसे अच्छा परिचय अपने मकान की सजावट द्वारा दिया जा सकता है। आदर्श व्यक्तियों के चित्र और आदर्श वाक्यों को अपने यहाँ स्थान देना अपने लिए अवैतनिक शिक्षक नियुक्त कर लेने के समान है।
पढ़े लिखे लोगों के लिए जो इस लेख को पढ़ रहे होंगे, उनके लिए बहुत अच्छे सलाहकार साथी सद्ग्रंथ हो सकते हैं। बुरी पुस्तकें जहाँ हमें अधःपतन की ओर जे जाती हैं, वहाँ उत्तम पुस्तकों में यह सामर्थ्य भी मौजूद है कि हमें कुछ से कुछ बना दें। पुस्तकें छपे हुए कागजों का गट्ठा नहीं हैं, वरन् एक सूत्र हैं, जो उनके लेखक की आत्मा और पाठक की आत्माओं को आपस में संबंधित करती हैं। श्रेष्ठ पुरुषों के सत्संग के लिए हम कुछ समय लगाते हैं, उसी प्रकार उत्तम पुस्तकों का स्वाध्याय करने में कुछ समय लगाना चाहिए और अपनी स्थिति के अनुसार सद्ग्रन्थों का संग्रह भी करते रहना चाहिए।
वस्त्र बहुत कीमती ही हों, ऐसी कोई खास जरूरत नहीं। मोटे खद्दर के कपड़े से भी काम चल सकता है, मगर वह श्वेत और स्वच्छ होने चाहिए। तड़क-भड़क के, रंग-बिरंगे या बेढब फैशन के कपड़े व्यर्थ हैं। कम कपड़े पहनने चाहिए, पर उनकी सफाई का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए। एक विवेकशील व्यक्ति का कथन है कि यदि तुम कपड़े की इज्जत रखोगे तो कपड़ा तुम्हारी इज्जत रखेगा। जेवर लादने की अपेक्षा तो कुछ अधिक कपड़े बनवा लेने और उन्हें साफ रखने में थोड़ा खर्च करना अधिक उपयोगी है।
शरीर के अंग-प्रत्यंग की सफाई का भी ध्यान रखना चाहिए। नाक, कान, आँख, दाँत, सिर आदि में मैल न जमने देना चाहिए, खूब रगड़-रगड़ कर स्रान करना, स्वच्छ रहना, निर्मलता को पसन्द करना, नाखून, हजामत आदि के बारे में लापरवाह न रहना व्यावहारिक सभ्यता का समुचित रीति से पालन करना यह सब बातें सादा जीवन के लिए आवश्यक हैं।
मन और विचारों की सादगी इनमें ऊंची है। और उसका समुचित पालन इन बाहरी सादगियों को पालन करने के उपरान्त आता है। गृह, वस्त्र और शरीर की सादगी निश्चय ही उच्च जीवन की ओर खींच ले जाने की क्षमता रखती है। आरम्भ हमें यहीं से करना चाहिए।