
विरोधी से सद्व्यवहार
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यूनान के प्रसिद्ध तत्वज्ञानी पेरीकिल्स से किसी बात पर अप्रसन्न होकर एक व्यक्ति उसके घर बुरा भला कहने गया। क्रोध में वह पागल हो रहा था, जाते ही उसने बड़बड़ाना और गालियाँ देना शुरू किया। पेरीकिल्स चुपचाप उसकी बातें सुनते रहे, फिर भी उसका क्रोध शान्त न हुआ और दोपहर का आया हुआ दिन डूबने तक वाक्य-वर्णों की वर्षा करता रहा। जब अँधेरा हो गया तो वह थक कर चूर हो गया और उठ कर चलने लगा। पेरीकिल्स ने धीरे से अपने नौकर को बुलाया और कहा-लालटेन लेकर इन महाशय के साथ चले जाओ और इनके घर तक पहुँचा दो।
शुक्राचार्य एक बार श्री कृष्णजी पर बड़े नाराज हुए और उन्हें इतना क्रोध आया कि उनकी छाती पर जोर की लात मारी। श्रीकृष्ण जी ने शुक्राचार्य के पाँव सहलाते हुए पूछा-भगवन्! आपके चरणों को मेरी छाती से चोट तो नहीं लगी?
विरोधियों के साथ सहिष्णुता का व्यवहार करने से न केवल विरोध दूर हो जाता है वरन् विरोधी उलटा एक बंधन में बंध जाता है। प्लेटो कहा करता था-”सब से बड़ी जीत विरोधी के हृदय को जीत लेना है।”