
मोह में दुःख
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(डा. शिवरतनलाल त्रिपाठी, गोलागोकरन नाथ)
रामनगर के एक शाह जी ने एक सफेद चूहा पाल रखा था। उसे वे बड़े प्यार से खिलाते पिलाते तथा देख-भाल किया करते थे। शाह जी जब दुकान पर जाते, तो उसे अपने ही साथ ले जाते और जब वे दुकान से घर लौटते, तो उसे भी लौटा लाते थे। शाह जी की दुकान आटा दाल की थी। उनकी दुकान में चूहे बहुत पैदा हो गये थे इसलिये चूहों को मारने के वास्ते शाह जी ने एक बिल्ली पाल ली। जब बिल्ली बड़ी हुई, तब दुकान के चूहों का शिकार करने लगी 4-6 चूहे नित्य मारकर खा जाती थी। शाह जी उसके चूहा पकड़ने पर बड़े प्रसन्न होते थे।
एक दिन की बात है कि बिल्ली को शिकार करने के लिये एक भी चूहा न मिला। बिल्ली भूखी थी, उसे अपने-बिराने का ज्ञान तो था ही नहीं। उसने झट शाह जी का पाला हुआ सफेद चूहा मारकर खा लिया। शाह जी अब करते क्या, देखते ही रह गये। जब बिल्ली को मारन दौड़े, तब वह भाग गई। शाह जी दुःख में निमग्न बैठे कुछ सोच रहे थे कि इतने में उधर से गुरु महाराज आ निकले। शाह जी को चिन्तित देखकर बोले कि क्यों क्या हुआ? कुशल तो हैं! शाह जी बोले - महाराज, वैसे तो आपकी कृपा से सब कुशल-मंगल है, परन्तु मेरे एक पले हुए सफेद चूहे को बिल्ली खा गई। गुरुजी ने कहा कि जब तुमने चूहा पाला था तो फिर बिल्ली क्यों पाली ली? शाह जी ने कहा कि मैंने तो बिल्ली को दुकान के चूहों को मारने के वास्ते पाली थी। महात्मा जी ने कहा कि क्या और चूहों में जान नहीं थी? तब शाह जी बोले-हुआ करे जान, मुझे क्या, मुझे तो इसी चूहे से प्रेम था। मैंने इसे बड़ी मुहब्बत से पाला था। तब महात्मा जी ने कहा कि भाई तुम्हारे दुःख का कारण चूहा नहीं है, बल्कि ममता है (यह मेरा है) ऐसा भाव। शाह जी ने कहा, हाँ महाराज! तो महात्मा जी ने कहा कि संसार की समस्त वस्तुएँ नाशवान हैं और प्रत्येक प्राणी को मृत्युरूपी बिल्ली अवश्य खायेगी। यदि तुम साँसारिक पदार्थों में ममता करोगे तो दुख से सताये जाओगे। इन पदार्थों और स्त्री, पुत्र, धन आदि की ममता (मोह) छोड़ कर्त्तव्य का धैर्य के साथ पालन करो और सब में आत्मवत् बर्तो, तभी दुख से छुटकारा पा सकोगे।
यस्मिन् सर्वाणि भूतान्यात्मैवभूत् विजानतः। तत्र को मोहः कः शोकः एकत्वमनु पश्यतः॥
जिस ज्ञानी मनुष्य की दृष्टि में सब प्राणी अपनी आत्मा के तुल्य हो जाते हैं, उसको फिर शोक, मोह नहीं होता।