
दुष्टों से भी प्रेम कीजिए।
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आप किसी से भी घृणा मत कीजिए, कर्म का मार्ग बड़ा गहन है, शायद आप ही भले बुरे की पहचान करने में भूल कर रहे हों। कई बार जिनके कार्य अप्रिय दिखाई देते हैं, वे धर्म करते हैं, और उत्तम काम करने वाले पापी। क्योंकि कर्म की भलाई बुराई का परीक्षण उसके बाह्य रूप से नहीं, वरन् कर्त्ता की आन्तरिक भावना से किया जाता है। आप सर्वज्ञ नहीं हैं जो हर एक ही आन्तरिक भावनाओं को जान सकें, फिर बिना सबूत, अन्दाज के आधार पर किसी को फाँसी क्यों देना चाहते हैं। बुरों के साथ भी बुराई मत कीजिए, क्योंकि बुराई से बुराई की ही वृद्धि होगी। मैले कपड़े को काजल से नहीं, साबुन से धोना चाहिए। दुष्टों को लाठी से नहीं, वरन् प्रेम से वश में करना चाहिए। बुरे आदमियों को ऐसी मार मारिये, जिससे साँप मरे न लाठी टूटे।
हाय! कितने दुःख की बात है कि मनुष्य इन्द्रिय विकारों की तुच्छ तृष्णा के पीछे जीवन भर भटकता रहता है और स्वार्थों की संकीर्ण चारदीवारी में बन्द रह प्रेम जैसे अमृत तत्व का आनन्द लेने से वंचित रह जाता है। प्रलोभन और अज्ञान के बादलों में सत्य के सूर्य को नहीं देख पाता। भूल और भ्रम इन्हीं दो निरर्थक वस्तुओं से जैसे-तैसे मन को बहलाता रहता है और अन्त में यों ही खाली हाथ यहाँ से विदा हो जाता है।
आप कहते हैं कि दृष्ट और दुराचारियों से मैं कैसे प्रेम करूं? इनके लिए तो मेरे मन में घृणा और रोष के भाव भरे हुए हैं। आप अपने इस कथन पर पुनर्विचार कीजिए और सोचिए कि क्यों आप उनसे घृणा करते हैं? दुष्ट लोग देखने में भले ही हृष्ट-पुष्ट और बुद्धिमान प्रतीत होते हैं, यथार्थ में वे एक प्रकार के रोगी हैं और अज्ञान एवं मानसिक व्याधियों के कारण अन्धे बने हुए हैं। उन्हें अपना सत पथ दिखाई नहीं पड़ता। इन्द्रिय विकारों और प्रलोभनों ने उन्हें ऐसा जकड़ रखा है कि बेचारे सिर नहीं उठा सकते। इसलिए सब से अधिक दया के पात्र यही हैं और इन्हें ही आपकी सबसे अधिक आवश्यकता हैं। अस्पताल का डॉक्टर कुछ देर के लिए चुपचाप पड़े हुए मरीजों की तरफ से बेखबर हो सकता है, किन्तु जो रोगी सन्निपात से ग्रसित हैं, ऊँट-पटाँग बातें बकता है, चारपाई पर से उठ-उठ कर भागता है एवं अपना भला बुरा सोचने की शक्ति गँवा देने के कारण चाहे जो कुछ उचित अनुचित करने को व्यग्र हो रहा है, उसकी ओर अधिक ध्यान देगा। डॉक्टर जानता है कि यह उपद्रव व्यक्ति के नहीं वरन् रोग के हैं। वह रोग दूर करने का प्रयत्न करता है, रोगी को मार डालने का नहीं। वह उसके उद्धत कार्यों पर ध्यान नहीं देता, क्योंकि रोगी की बेहोशी और रोग के उस दबाव का उसे ज्ञान है। डॉक्टर गालियाँ सुनता जाता है, फिर भी उसका प्रेम-पूर्वक इलाज करता है। आप कैसे प्रेमी हैं, जो पीड़ितों और अज्ञानियों से घृणा करते हैं? आप कैसे डॉक्टर हैं, जो रोग और रोगी दोनों को ही मार डालना चाहतें हैं। आप मत सोचिए कि अमुक व्यक्ति को मैं दण्ड दूँगा। ऐसे अप्रिय कार्य को आप क्यों हाथ में लेते हैं। दण्ड देने वाला मौजूद है। हत्यारे को सजा देने के लिए अदालतों, कानून की धाराएँ और फाँसी घर सुव्यवस्थित रूप से मौजूद हैं। वहाँ किसी के साथ पक्षपात नहीं होता, फिर आप ही जल्लाद का कार्य करने को क्यों उतावले हो रहे हैं? ठहरिए, जल्दी मत कीजिए, आपका कार्य दूसरा है। आप डॉक्टर हैं अपने अस्पताल में आये हुए मरीजों का इलाज कीजिए। बल्कि घायलों को अच्छा करने का प्रयत्न करना ही आपका कर्त्तव्य है। इनके भले बुरे कर्मों के लिए अदालत खुद इनसे निपट लेगी और वही हो जायगा जो आप चाहते हैं।
अपने को निष्पक्ष, उदार एवं पवित्र बनाइए, सत्य के! मार्ग पर आरुढ़ हूजिए, क्योंकि इसी से अनन्त प्रेम को प्राप्त किया जा सकता है और असीम प्रेम को प्राप्त कर लेना जीवन के चरम उद्देश्य को प्राप्त कर लेना है।