Magazine - Year 1941 - Version 2
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Language: HINDI
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पाप कर्मों से बचते रहो!
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‘मैं भूखा हूँ, इसलिए चोरी करूंगा’ ऐसा मत विचारो। क्योंकि इससे तुम्हारी भूख घटेगी नहीं, बढ़ ही जायगी। कीचड़ खाकर किसने दुर्भिक्ष को काटा है? पाप कर्म तो तुम्हें और भी अधिक कंगाल बना देंगे। आग से आग की उत्पत्ति होती है और पाप से पाप की, इसलिए बुद्धिमानी इसी में है कि भूख के मूल कारण पाप से ही दूर रहा जाय। ओस चाटने से तृप्ति नहीं हो सकती और न अधर्म का धन संतोष करा सकता है। तुम्हारा पेट चोरी से नहीं परिश्रम से भरेगा। किसी की तिजोरी को मत झाँको, अपनी भुजाओं को देखो, उनमें पेट के भर देने की भरपूर क्षमता है।
पाप कर्मों से दूर रहो जैसे साँप से दूर रहते हो। यदि तुमने पाप का भूत पाल लिया, तो यह बड़ा दुख देगा। जहाँ जाओगे वहीं छाया की तरह घेरे फिरेगा और हर घड़ी नारकीय यातनाओं से झुलसाता रहेगा। यदि तुम्हें अपने आप से प्रेम है तो देखो, पाप कर्मों की ओर मत झुकना। आपत्तियों को सहना, पर कर्तव्य धर्म से विचलित मत होना। वे मूर्ख हैं, जो पाप को पसंद करते हैं और दुख भोगते हैं, तुम्हारे लिए दूसरा मार्ग मौजूद है, वह यह कि आधे पेट खाना पर पाप कर्मों के पास न जाना।
भाग 2 सम्पादक - श्रीराम शर्मा आचार्य अंक 10