Magazine - Year 1941 - Version 2
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Language: HINDI
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ध्येय की सिद्धि
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(कुमार गोविन्दानुज)
-प्रवाह के साथ दीप बहते आ रहे थे।
-उनकी मंशा थी कि समुद्र में जाना और वहाँ के छिपे हुए रत्नों को ऊपर लाने के लिए प्रकाश दिखाना।
-आते आते कुछ बुझ गये, कुछ डूब गए, कुछ फूट गए।
-बचे हुए आ रहे थे, आगे बढ़ रहे थे।
-उनके सामने एक आदर्श था।
-बीच में एक चट्टान आड़े आई और वे वहीं अटक गए।
-उनको लगा-”हाय हमारा ध्येय?”
-वहीं से प्रकाश दिखाने का उन्होंने निश्चय किया।
-उसी समय एक रत्नों से भरा जहाज आ रहा था।
-वह उस बड़ी चट्टान से टकरा कर नष्ट हो जाता, मगर दीपों के प्रकाश से बच गया।
-और थोड़ी ही देर में वे दीप भी बुझ गये।
-बुझते समय-मरते समय वे सोच रहे थे-”ध्येय की सिद्धि हो गई?” - नई दुनिया