Magazine - Year 1941 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
वनस्पति घी चार आना सेर
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
(विद्यार्थी ओउम् प्रकाश शुक्ल, ऐत्मादपुर)
वनस्पति घी का बाजार में खूब प्रचार है। साधारण जनता इसे घासलेट के नाम से पुकारती है और समझती है कि किसी विलायती घास आदि का यह सत्व है। व्यापारी लोग इसकी बड़ी प्रशंसा करते हैं। फलस्वरूप जनता भ्रम में पड़ जाती है। वनस्पति घी और कुछ नहीं मामूली तेलों को दवाओं से रूपांतर करके उसमें घी का इत्र मिला दिया जाता है। जिन दवाओं से तेलों का रूपांतर किया जाता है, वे हानिकारक होती हैं, उनकी मिलावट से वे तेल और भी हानिकारक हो जाते हैं। कभी-कभी तो सस्ते मछली के तेल आदि से भी यह बनाया जाता है।
जो लोग नौ दस आने सेर इस वनस्पति घी को खरीदते हैं, वे शुद्ध तेल इस्तेमाल करें तो सस्ता भी पड़ेगा और हानिकारक भी न होगा। आगे कुछ ऐसे उपाय बताये जाते हैं जिनके द्वारा तेल भी घी की तरह सेंकने या दाल साग में काम ला सकते हैं। तेल की जो गंध आती है वह न आवेगी।
पाँच सेर असली सरसों का तेल लेकर उसमें पाव भर दही डाल दो। कढ़ाई में आँच पर चढ़ा कर मंदी-मंदी आँच से पकाओ जब दही जल कर काला पड़ कर तेल पर उतराने लगे तो ठंडा करके छान लो। काम में लाओ, कोई नहीं पहचान सकता कि पूड़ी या साग तेल में बना है, या घी में।
सरसों का तेल सुदृढ़ मटके में भर कर मुँह पर कपड़ा मिट्टी लगा कर चौड़े मैदान में जमीन में गाढ़ दो। बरसात भर गढ़ा रहने दो शरद ऋतु में निकाल कर काम में लाओ।