Magazine - Year 1943 - Version 2
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Language: HINDI
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परिश्रम के दो पहलू
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(जेम्स ऐलन)
अर्थ-शास्त्र ने धन कमाने का प्रथम साधन परिश्रम को माना है। इसी प्रकार कर्म योग में कर्तव्य को, आचार शास्त्र में सेवा को, समाज शास्त्र में पौरुष को और आरोग्य शास्त्र में व्यायाम को प्रधानता दी गई है। वस्तुतः परिश्रम, जीवन का मेरुदंड है, जिसमें होकर आनन्द, उन्नति, ऐश्वर्य और सफलता की रक्तवाहिनी नाड़ियाँ प्रवाहित होती हैं। बिना परिश्रम किये कोई भी व्यक्ति महत्व को प्राप्त नहीं कर सकता।
परिश्रम दो प्रकार का है-शारीरिक और मानसिक। जिस प्रकार दो पहियों से मिलकर एक गाड़ी में प्रगति का संचार होता है। अकेला शारीरिक परिश्रम करने वाले मजदूर पेट भरने योग्य अन्न ही उपार्जित कर सकते हैं। इसी प्रकार खयाली पुलाव पकाने वाले लोग भी जूतियाँ चटकाते फिरते हैं। विचार और कार्य, शारीरिक श्रम और मानसिक श्रम, जब यह दोनों ही मिल जाते हैं तो उद्देश्य की प्राप्ति बहुत सरल हो जाती है। मजदूर श्रेणी के लोगों को चाहिए कि वे अपनी ज्ञान वृद्धि के लिए, शिक्षा के लिए, सत्संग के लिए, कुछ समय निकालें और अपने पेशे में बुद्धि का समन्वय करके उसे लाभप्रद एवं गौरवशाली बना डालें। इसी प्रकार विचारक श्रेणी के बुद्धिजीवी लोगों को चाहिए कि वे गद्दे तकियों पर पड़ा रहना और मोटर गाड़ियों में लदे फिरना छोड़कर शारीरिक परिश्रम में दिलचस्पी लेना आरम्भ करें। भारतीय अमीरों और विद्वानों को इस सम्बन्ध में अंग्रेजों से शिक्षा लेनी चाहिए, जो कितने ही बड़े हो जाने पर भी शारीरिक परिश्रम को बड़ी ही दिलचस्पी के साथ अपनाते हैं और अपना आनन्ददायक स्वास्थ्य बनाये रहते हैं।
स्मरण रखिए शारीरिक और मानसिक दोनों प्रकार के परिश्रमों के मिलने से एक ऐसी शक्ति उत्पन्न होती है जिसे आनन्द और उन्नति का मार्ग कहना चाहिए।