Magazine - Year 1943 - Version 2
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Language: HINDI
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सबसे बड़ी दौलत
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(महात्मा सुकरात)
सब लोग धन सम्पदा, मान, ऐश्वर्य आदि की हवस करके उनके पाने के लिए परिश्रम करते हैं, परन्तु मुझे किसी मित्र के समागम का लाभ होने से जितना सन्तोष होगा, उतना उन सब चीजों के मिलकर प्राप्त होने पर भी नहीं होगा। लोग अपनी मिलकियत का हिसाब किताब रखते हैं पर यदि उनसे पूछा जाए कि तुम्हारे कितने सच्चे मित्र हैं? तो शायद वे इसका ठीक-ठीक उत्तर न दे सकेंगे। लोग समझते हैं कि पैसा और जायदाद ही सम्पत्ति है, किन्तु मेरा विचार है कि सच्चे मित्रों की तुलना हीरों का खजाना भी नहीं कर सकता। दूसरी चीज़ों की उपयोगिता और कीमत के बारे में दो राय हो सकती हैं पर सच्चे मित्रों का बेशकीमती होना निर्विवाद है। छोटे बड़े और अक्लमंद बेवकूफ हर कोई यह मानते हैं कि वफादार और बुद्धिमान दोस्त इस दुनिया की वेश कीमती नियामत है।
जमीन जायदाद को खरीदते-बेचते समय उसके गुण दोष और हानि-लाभ पर नजर डाल ली जाती है। क्या ही अच्छा हो अगर लोग मित्रता कायम करते वक्त उनके स्वभाव, सदाचार, चरित्र, वफादारी और ईमानदारी को परख लिया करें। देखा जाता है कि किसी मामूली घटना को लेकर दो व्यक्ति मित्र बन जाते हैं और कुछ दिनों बड़े जोश-खरोश से उनकी दोस्ती चलती है, परन्तु चंद ही दिन बाद उपेक्षा या द्वेष भाव का बीजारोपण हो जाता है। यह चुनाव की भूल है। मैं अपने मित्र बढ़ाने की फिक्र में रहता हूँ, पर बहुत सोच विचार कर किसी से घनिष्ठता बढ़ाता हूँ। मेरे थोड़े से मित्र हैं पर जो हैं वे सच्चे हैं। इस दुनिया की दौलतों का महत्व मैंने भली प्रकार आँका है पर इन बुढ़ापे तक के अनुभवों ने मुझे यही सिखाया कि सच्चे मित्र से बढ़कर और कोई दौलत इस ज़मीन के पर्दे पर नहीं है।