Magazine - Year 1943 - Version 2
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Language: HINDI
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चरित्र निर्माण
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(श्री पं. श्रीराम जी वाजपेयी)
सही कहा गया है कि हर आदमी अपने-2 विचारों का पुतला है, पहले विचार उठता है, तब उस पर अमल होता है। बार-बार अमल करने से आदत बनती है और आदतों से आचरण निर्माण होता है।
बाज लोग सच्चरित्रता से यही मतलब निकालते हैं, कि ‘आदमी दूसरे की बहू-बेटियों को अपनी ही माँ-बहिन के समान देखता है, अथवा दूसरे की सम्पत्ति पर उसके मुँह में पानी नहीं आ जाता।’ यह बातें चरित्र में खास गुण होती हैं। मगर केवल इन्हीं दो एक बात से चरित्र नहीं ढलता। दुनिया की सभी अच्छी बातों के (जिनमें अपना, अपने समाज का, अपनी जाति और देश का मंगल हो) संग्रह को चरित्र कहते हैं। चीजों का सही ढंग से रखना, कपड़े कायदे से पहनना, दर्जा बदर्जा अपने छोटे-बड़ों की आवभगत करना, वक्त की पाबन्दी, मान-मर्यादा का हर दम विचार, उठना, बैठना, चलना, फिरना सभी चरित्र निर्माण की सामग्री हैं।
कुछ लोग छिप कर काम करते हैं। छिपकर काम करने से उनमें और भी खराब बान पड़ती है और उसके द्वारा चरित्र दूषित होता है। अगर उन चोरों और डाकुओं से जो अपने पेशे की घोषणा करने में जरा भी नहीं शर्माते पूछा जाए तो ये बतावेंगे, कि उनकी यह कुटेव चुपके-चुपके और छिप कर काम करने से पड़ी।
हर मनुष्य को चाहिए कि वह हर बात को सोचे और उस पर अमल करे, बात भी ऐसी हो जिससे सच्चरित्र निर्माण हो। चरित्र वही है, जिसके द्वारा अच्छे विचारों की और अच्छे काम करने की आदत पड़ जाए।