Magazine - Year 1956 - Version 2
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मलेरिया से कैसे बचें?
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(श्री. डाक्टर दीवानचन्द्र)
मलेरिया सम्भवतः मानव जाति के लिये सबसे बड़ा अभिशाप है। इस रोग के प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष प्रभाव से कई लाख व्यक्ति प्रत्येक वर्ष मरते हैं, किन्तु यह तो मलेरिया से होने वाली अल्पतम क्षति है। मलेरिया से मरने वाले प्रत्येक व्यक्ति के कारण बीसों व्यक्ति ऐसे होते हैं जो इस रोग द्वारा शरीर और मस्तिष्क से अशक्त हो जाते हैं और उनका जीवन दुखमय हो जाता है। मलेरिया से वर्तमान खाद्यान्न अभाव के अतिरिक्त हमारे नवयुवकों की उपयुक्त शिक्षा और देश की उन्नति एवं विकास में बहुत बड़ी बाधा उपस्थित है। यह हमारे समाज तथा व्यक्तियों की कार्यक्षमता, शक्ति और क्रियाशीलता को कम कर देता है।
विशेष मौसम में मलेरिया का आक्रमण होने के कारण यह रोग ग्रामवासियों का सबसे घातक शत्रु बन गया है। यह उनके सामाजिक एवं आर्थिक जीवन को बहुत अधिक क्षति पहुँचाता है। हमारे प्रान्त में मलेरिया फैलने का समय 5 जुलाई से 15 नवम्बर तक रहता है। विशेष मौसम में मलेरिया फैलने के कारण ये है:– मलेरिया फैलने वाले कुछ विशेष प्रकार के मच्छरों का होना, एक विशेष अवधि में मच्छरों की उपस्थिति और तापमान तथा नमी। विशेष रूप से वर्षाकाल में तथा उसके बाद के कुछ महीनों में ये मच्छर अधिक पाये जाते हैं। अप्रैल, मई तथा जून में कुछ दिनों तक जब गर्मी अधिक पड़ती है साधारणतया प्रौढ़ मच्छर इतने समय तक जीवित नहीं रहते कि वे रोग फैला सकें। अतएव उनके रहने पर भी मलेरिया नहीं फैलता।
जब एक विशेष प्रकार का मादा मच्छर किसी मलेरिया के रोगी को काटता है और उसके बाद वही मच्छर किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटता है, तो रोग का संक्रमण होता है, किन्तु 10 से 14 दिनों के पूर्व रोग का संक्रमण नहीं हो पाता। इस बीच मच्छर रक्त चूसने और अंडा देने के स्थानों का कई बार चक्कर लगा लेता है और बहुत से अंडे 8 से 10 दिन की अवधि में प्रौढ़ मच्छर का रूप धारण कर लेते हैं मच्छर के एक स्थान से दूसरे स्थान के उड़ान की दूरी इस सम्बन्ध में विशेष महत्त्व रखती है। जिन मच्छरों से हमारे प्रान्त में मलेरिया फैलता है उनके उड़ान की दूरी प्रायः आधे मील से अधिक नहीं होती अतः किसी गाँव के इर्द-गिर्द इस दूरी के अन्दर मच्छरों का अंडा देना खतरनाक समझा जाता है। इस दूरी के बाहर प्रायः इसका कोई महत्त्व नहीं होता। सभी प्रकार के मच्छरों से मलेरिया नहीं फैलता, किन्तु यह निश्चित है कि मच्छरों के ही कारण सब प्रकार के मलेरिया होते हैं। यह जानने योग्य बात है कि जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को मलेरिया वाला मच्छर काटता है, तो उस व्यक्ति को 10 से 14 दिनों के पूर्व ज्वर नहीं आता और लगभग 7 दिनों तक यदि उस रोगी को कोई औषधि न दी जाय, तो वह काटने वाले अन्य मच्छरों में इस रोग का संक्रमण कर सकता है।
जो लोग पहले बहुत समय तक इस रोग के आक्रमण से बचे रहे हैं उन पर इसका अधिक प्रभाव पड़ सकता है, चाहे इसका कारण उनकी शैशवावस्था हो अथवा मलेरिया वाले देश में उनका पहले-पहल आना या उस जिले की सामान्य स्वस्थता हो जहाँ वे रहते हों। जिन देशों में मलेरिया का आक्रमण अधिक होता है वहाँ प्रौढ़ निवासियों पर इसका हलका आक्रमण होता है, किंतु मलेरिया की दृष्टि से जो क्षेत्र सामान्यतः स्वस्थ समझे जाते हैं वहाँ यह खतरनाक संक्रामक रोग के रूप में प्रकट होता है और इससे बहुसंख्यक जनता की मृत्यु हो जाती है।
यद्यपि हमारे सामने इस रोग का यह वीभत्स रूप है, फिर भी आधुनिक विज्ञान द्वारा आज हमें जो साधन प्राप्त हैं उनकी सहायता से हम अपने इस पुराने शत्रु मलेरिया पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। इस रोग से हमें जो कष्ट भोगना पड़ता है और क्षति होती है, यह मलेरिया-निरोधक उपायों के संगठन एवं नियोजन की हमारी शक्ति को प्रत्यक्ष चुनौती है। चूँकि मलेरिया-ग्रस्त रोगियों की चिकित्सा पर हमें जो कुछ खर्च करना पड़ता है वह मलेरिया पर नियन्त्रण रखने वाले उपायों पर होने वाले वास्तविक खर्च से कहीं अधिक है। अतः नियन्त्रण सम्बन्धी इस कार्य की उपेक्षा नहीं की जा सकती।
मानवी युद्धों के ही समान मलेरिया के विरुद्ध युद्ध करने के सम्बन्ध में भी यद्यपि हमारे अस्त्र बदल चुके हैं, किंतु युद्ध करने के सिद्धाँत वही हैं। हमें मच्छर के वंश से अपनी रक्षा करनी चाहिये और कभी-कभी कोई ऐसी चीज खा लेनी चाहिये ताकि हमारे रक्त में मलेरिया के कीटाणुओं की वृद्धि न होने पाये। यदि ये दोनों ही उपाय असफल सिद्ध होते हैं और मलेरिया का आक्रमण होता है, तो औषधि द्वारा इसकी चिकित्सा करनी चाहिये। हमें मच्छरों को मारने का प्रत्येक प्रयत्न करना चाहिये।
मच्छरों के वंश से बचने के लिए ऐसी अनेक औषधियाँ हैं जिन्हें सन्ध्या समय या रात्रि में शरीर के खुले भागों पर छिड़कने से इस रोग से बचाया जा सकता है। किन्तु बचाव का यह ढंग अधिक लाभदायक नहीं है और साथ ही इनका प्रयोग दुष्कर भी है। इस सम्बन्ध में मसहरी बहुत उपयोगी है और इसका प्रयोग न करने का कोई बहाना भी न होना चाहिये। इसे तो जीविकोपार्जन करने वाले व्यक्ति के कुटुम्ब का आवश्यक अंग समझना चाहिये। एक साधारण मसहरी पर उतना खर्च नहीं होता जितना कि केवल एक बार मलेरिया हो जाने से उनकी चिकित्सा कराने में खर्च हो जाता है।
पहले मलेरिया से बचने के लिये कुनैन पर ही हमें निर्भर रहना पड़ता था, किन्तु यह हमें बहरा बना देती थी और इससे हमारे कानों में भनभनाहट की आवाज पैदा हो जाती थी। साथ ही यह ऐसे वृक्षों से प्राप्त होती थी, जो बहुत धीरे-धीरे बढ़ते थे और देश के कुछ ही भागों में पाये जाते थे। तत्पश्चात् एट्रावीन तथा मेपाक्लीन दवाइयों का आविष्कार जिनसे शरीर पीला पड़ जाता था और विशेषकर छोटे छोटे बच्चों वाली माताओं के लिये यह बहुत हानिकर सिद्ध हुई। अब कई वर्षों के अनुसन्धान के बाद एक नयी औषधि ‘पैल्यूड्रीन’ बाजारों में आयी है, जो रासायनिक पदार्थ है। यह किसी तरह की हानि नहीं पहुँचाती और शरीर का रंग भी इससे नहीं बदलता। मलेरिया की रोकथाम के लिये 15 जुलाई से लेकर 15 नवम्बर तक प्रति सप्ताह इसकी तीन टिकियों की एक मात्रा ले लेना चाहिये। इस काल में मलेरिया के मच्छरों द्वारा जो कीटाणु रक्त में प्रवेश कर जाते हैं वे इस औषधि से मर जाते हैं।
मच्छरों को नष्ट करने के लिये डी.डी.टी. नवीन अस्त्र है इसके अतिरिक्त गर्मक्सन भी एक औषधि है, जो इससे भी नयी है तथा जिसे अभी कम लोग जानते हैं। यदि कोई मच्छर इन नये पदार्थों के संपर्क में आता है तो वह तत्काल तो नहीं मरता, किन्तु शीघ्र ही और कोई नुकसान पहुँचाने के पूर्व ही मर जाता है, इस नयी कीटाणु नाशक औषधि के सम्बन्ध में एक आश्चर्यजनक बात यह है कि जब वह दीवालों, पर्दों, कपड़ों तथा तरकारियों हर छिड़की जाती है तो उन पर एक पर्त-सी जम जाती है, जिसका प्रभाव यह होता है कि कई सप्ताहों तक और कभी महीनों तक उन पर बैठने वाले कीटाणु को वह नष्ट करती रहती है।
वह मलेरिया मच्छर को मनुष्य के रक्त की आवश्यकता होती है, तो वह उड़कर हमारे घरों में आता है। वह संध्याकाल में अथवा रात्रि में हमें काटता है और दिन में हमारे घरों या बाड़ों में अथवा उनके समीप आराम करता है। अतएव कुछ सप्ताहों तक यदि हम अपने मकानों तथा बाड़ों में और बाहरी परछतियों तथा आस-पास उगने वाली तरकारियों पर और मच्छरों के छिपने की सभी संभावित जगहों पर डी.डी.टी. का छिड़काव करते रहें, तो मच्छरों के लिए रोग के कीटाणुओं को शरीर में प्रविष्ट करने के निमित्त जीवित रहने का कोई अवसर नहीं मिल सकता, क्योंकि डी.डी.टी. की पर्त के कारण वे उनके संपर्क में आकर जीवित नहीं रह सकते।
जहाँ तक मच्छर के अण्डे देने के स्थानों का सम्बन्ध है यदि उनको भी ध्यान से ढूँढ़ निकाला जाय और वहाँ पर औषधि छिड़क दी जाय, तो दलदल वाले बड़े-बड़े क्षेत्रों के अतिरिक्त अन्य सभी स्थानों के मलेरिया वाले मच्छर नष्ट किये जा सकते हैं। विशेष प्रकार के हवाई जहाजों द्वारा, यदि वे मिल सके, तो दलदल वाले स्थानों पर भी इस औषधि का छिड़काव किया जा सकता है।
सच बात तो यह है कि यदि पाल्यूड्रीन तथा डी.डी.टी. का पूर्ण उपयोग किया जाय, तो निस्संदेह थोड़े ही समय में हमारे प्रान्त का बहुत बड़ा भाग मलेरिया की इस विकट भयंकरता से मुक्त हो सकता है। वास्तव में इसके प्रयोग से क्या सफलता मिली है इसकी पुष्टि उदाहरणों द्वारा की जायगी, ताकि इन नये अस्त्रों की उपयोगिता के सम्बन्ध में कोई सन्देह बाकी न रह जाय। तराई क्षेत्र बहुत अस्वस्थ क्षेत्र समझा जाता था और वहाँ मलेरिया के कारण कोई विकास कार्य अभी तक नहीं हुआ था, किन्तु अब इसी क्षेत्र के नैनीताल जिले में खेती की जा रही है और इसी प्रकार जिला मेरठ के खादर क्षेत्र की भूमि कृषि-योग्य बनायी जा रही है। जल-विद्युत की बड़ी-बड़ी योजनाएँ उन क्षेत्रों में चलायी गयी जहाँ पर मलेरिया हमारा सबसे घातक शत्रु था, जैसे जिला नैनीताल में लौहिया हेड तथा शारदा हाइडेल पावर हाउस कान्ट्रक्सन योजना। इसका भी प्रबन्ध किया जा रहा है कि विशेष ट्रेनिंग प्राप्त कर्मचारियों की देख-रेख में मलेरिया निरोधक विशेष यूनिटों की स्थापना करके प्रान्त के विभिन्न जिलों में मलेरिया पर नियंत्रण रखा जा सके।