Magazine - Year 1956 - Version 2
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Language: HINDI
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तपोभूमि समाचार
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गायत्री तपोभूमि में गायत्री यज्ञ तो नियमित रूप से चलता ही है विशेष यज्ञों की शृंखला के अंतर्गत श्रावण में रुद्रयज्ञ हो चुका है भाद्रपद मास में यजुर्वेद यज्ञ सानन्द सम्पन्न हुआ। इन दिनों आश्विन के कृष्ण पक्ष में पितरों की आत्माओं को शाँति देने वाला पितृयज्ञ चल रहा है। सदा की भाँति नवरात्रि में 9 दिन का सामूहिक अनुष्ठान होगा। जिन्हें सुविधा एवं अवकाश हो वे मथुरा आकर अपनी नवरात्रि की साधना करें। घर की अपेक्षा ऐसे सिद्धपीठ स्थानों में साधना करने से उनकी सफलता की संभावना अधिक रहती है। घर गृहस्थी के अनेक कार्यों में मन लगा रहने के कारण प्रायः मनोयोग पूर्वक साधना नहीं हो पाती। इसलिये जिनकी परिस्थिति अनुकूल हैं उनके लिये तपोभूमि में आकर नवरात्रि की उपासना करना तीर्थयात्रा, समुचित पथ डडडडड न, परामर्श, सिद्धपीठ एवं अनुकूल वातावरण का डडडडड व आदि अनेक कारणों से यहाँ अधिक सुविधा रहती है। ठहरने, भोजन आदि की यहाँ समुचित व्यवस्था रहती ही है।
नवरात्रि में शतचण्डी एवं सहस्र लक्ष्मी का पाठ एवं हवन भी होता है। इस प्रकार आश्विन शुक्ल पक्ष में तीनों महाशक्तियों का- गायत्री, लक्ष्मी, दुर्गा की संसार को सद्बुद्धि, समृद्धि देने एवं आपत्ति निवारण के लिये विधिवत् उपासना की जाती है। कार्तिक कृष्ण पक्ष में श्रीसूक्त से लक्ष्मी यज्ञ होगा जिसकी पूर्णाहुति दिवाली के दिन होगी। कार्तिक शुक्ल पक्ष में 15 दिन पुरुषसूक्त से विष्णु यज्ञ होगा।
अखण्ड ज्योति प्रेस की दोनों मशीनें टाइप केस आदि सभी सामान तपोभूमि में पहुँच गया है। यह लगभग छह, सात हजार रुपये का सामान अब तपोभूमि की ही सम्पत्ति है इस पर अब गायत्री परिवार का प्रचारात्मक साहित्य शाखा शृंखलाओं के लेटर पेपर, विज्ञापन, पर्चे, पोस्टर आदि बाजार भाव की अपेक्षा लगभग आधे मूल्य की लागत पर छाप कर भेजे जाया करेंगे। गायत्री परिवार की शाखाऐं अपने उत्सवों के विज्ञापन एवं धर्म प्रचार के व्याख्यानात्मक पत्र यहाँ बहुत सस्ती लागत पर छपा कर अपने क्षेत्रों में ज्ञान प्रचार का महत्वपूर्ण कार्य कर सकेंगी, यह प्रेस इन्हीं कार्यों के लिये सीमित रहेगा। अखण्ड ज्योति अन्यत्र छपा करेगी। प्रेस खोलने के इच्छुक, एवं प्रेस शिल्प सीख कर आजीविका कमाने वाले व्यक्ति इस कला का व्यवहारिक शिक्षण यहाँ प्राप्त कर सकेंगे। मन्दिर के पीछे के दो कमरों में कम्पोज एवं मशीनें रखी गई हैं। यह स्थान बहुत छोटा पड़ रहा है, इन कमरों के आगे बरामदे निकालना अत्यन्त आवश्यक प्रतीत होता है, वर्तमान कोठरियों में काम चल सकना कठिन है। यह कमी इन दिनों में प्रेस कार्य के ठीक प्रकार चलाने में बाधक हो रही है।
साँस्कृतिक विद्यालय का शिक्षाक्रम शान्तिपूर्ण एवं व्यवस्थित ढंग से चल रहा है। धर्म प्रचार का उद्देश्य रखने वाले, ऊँची नीची सभी प्रकार की योग्यता वाले व्यक्ति यहाँ शिक्षा प्राप्त करने आते हैं, उनकी स्थिति और सुविधानुसार शिक्षा की व्यवस्था करदी जाती है। सरल पद्धति में देव भाषा संस्कृत की शिक्षा, कीर्तन, भजन, रामायण आदि की योग्यता जितना संगीत, 40 प्रकार के श्रौत और स्मार्त यज्ञों की प्रक्रिया, षोडश संस्कार एवं कर्मकाण्ड का शिक्षण इन दिनों नियुक्त अध्यापकों द्वारा पूर्ण व्यवस्थित रीति से किया जा रहा है। कथा प्रवचनों का सैद्धान्तिक एवं व्याख्यानात्मक शिक्षण नवरात्रि के बाद आरम्भ होगा। चिकित्सा की ओर छात्रों की अधिक रुचि देखकर इस विभाग की ओर अधिक ध्यान दिया जा रहा है और कुछ बड़ी व्यवस्था की जा रही है। पहले यह विचार था घर गृहस्थी, पास पड़ौस के छोटे मोटे रोगों का उपचार करने योग्य साधारण ज्ञान करा देना पर्याप्त है। पर छात्र इससे अधिक का आग्रह कर रहे हैं इसलिये शरीर विज्ञान स्वास्थ्य रक्षा रोग निदान, औषधि निर्माण, जड़ी बूटी परीक्षा रस, भस्में, आसव अरिष्ट आदि का बनाना, परिचर्या, व्रण, चोट, हड्डी टूटना, आग से जलना आदि की मरहम पट्टी जैसे विषयों का अधिक विस्तार के साथ व्यवस्था की जा रही है। छात्रों को व्यवहारिक ज्ञान देने एवं रोगियों की सेवा के लिये औषधालय की सामग्री तेजी से इकट्ठी की जा रही है। शिक्षा ग्रंथ मंगाये जा रहे हैं। मौजूदा छात्रों को शरीर विज्ञान स्वास्थ्य रक्षा जैसे विषय पढ़ाने आरम्भ कर दिये गये हैं।
होम्योपैथी के शिक्षा साधन जुटाये जा रहे हैं। यह सब कार्य भी नवरात्रि तक पूरे हो जाने की आशा है। कथा प्रवचनों की सैद्धान्तिक एवं व्याख्यानात्मक शिक्षा जाड़े के दिनों में आरम्भ की जायगी। सूर्य नमस्कार, आसन, लाठी चलाना, व्यायाम कक्षा में अभी इन तीनों बातों ही का क्रम चल रहा है। आगे तलवार, छुरा, भाला, धनुषबाण आदि शस्त्रों का शिक्षण चलेगा यह शिक्षण भी स्वास्थ्य सुधार, साहस वृद्धि एवं आत्म रक्षा के लिये आवश्यक है।
विद्यालय में निर्धारित शिक्षा क्रमों की अच्छी योग्यता रखने वाले सेवा भावी सज्जन यहाँ पधार कर हमारा हाथ बटावें इसकी आवश्यकता है। जिनकी ऐसी स्थिति एवं योग्यता है वे उन्हें सादर आमंत्रित करते हैं। शिक्षार्थी भी ऐसे चाहिए जो व्यक्तिगत आजीविका की दृष्टि से ही नहीं मुख्यतः लोक सेवा की दृष्टि से यह सब सीखें। ऐसी अभिरुचि एवं परिस्थिति के व्यक्तियों को ढूँढ़-ढूँढ़ कर तपोभूमि में इस शिक्षा के लिए भिजवाना अखण्ड-ज्योति परिवार के सदस्यों का कर्तव्य है। यह विद्यालय धर्म प्रचारक उत्पन्न करने की दृष्टि से ही आरंभ किया गया है। वैसी रुचि और स्थिति के छात्र न मिलें, व्यक्तिगत लाभ एवं योग्यता बढ़ाने के लिए ही लोग सीखें तो इससे तपोभूमि के उद्देश्य की पूर्ति नहीं होती। इसलिए उपयुक्त शिक्षार्थियों का प्राप्त होना भी एक समस्या है यह तभी हल हो सकती है जब सभी परिजन इस प्रकार की ढूंढ़ खोज करते रहें। अपने-अपने पंडितों पुरोहितों को उनके बालकों को जो धर्म प्रचार से ही जीविका चलाते हैं, इस शिक्षा के लिए आग्रह पूर्वक प्रेरित करना सभी पाठकों का कर्तव्य है।