Magazine - Year 1971 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
मन्त्र विद्या का वैज्ञानिक आधार
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
सुप्रसिद्ध अंग्रेज गायिका श्रीमती वाट्स हग्स एक बार अपने दरवाजे पर बैठी एक राग गा रही थीं जब जब वे राग गाते गाते तन्द्रित अवस्था (निमग्नता) की स्थिति अनुभव करतीं उन्हें एक सर्प की आकृति प्रगट होती दिखाई देती। वे समझ न पाती थीं कि वस्तुतः वहाँ कोई सर्प आ जाता है अथवा वक केवल काल्पनिक अनुभूति भर है। परीक्षा के लिये उन्होंने उस स्थान में बहुत बारीक कणों वाली रेत बिछा दी और फिर से वही राग गाने लगीं। राग गाते उन्हें फिर वैसी ही अनुभूति हुई अब उन्होंने राग बन्द किया और रेत के निकट जाकर देखा कि उसमें एक सर्प की आकृति सचमुच बनी हुई है।
इस आर्श्चय ने उन्हें विविध प्रकार के राग सीखने और उनका विकास करने के प्रेरणा दी। राग में यद्यपि स्वर का आनन्द नहीं मिलता तथापि उसमें भावनाओं को दिशा- विशेष में निक्षेपित करने की प्रबल शक्ति होती है। उससे रस मिलता है। यह भाव तरंगें सूक्ष्म आकाश के परमाणुओं में उपस्थित विद्युत में कम्पन उत्पन्न करती हैं यह कम्पन अपनी अपनी तरह से परिणाम उपस्थित कर सकते हैं प्राचीन काल में सिद्ध गायक मल्हार राग गाते थे तो वर्षा होने लगती थी, दीपक राग गाने से बुझे हुये दीपक जल उठते थे, मृग रंजनी गाने से जंगल के हिरण और मृग जीवन की मृत्यु का भय त्यागकर विमोहित हुये चले आते थे संगीत स्वरों से आबद्ध सृष्टि अन्तराल में जबर्दस्त क्रान्ति उत्पन्न करने की एक महान् उपलब्धि भारतीय आचार्यों ने प्राप्त की थी। वाट्स हग्स का यह नन्हा सा प्रयोग उस उपलब्धि की एक क्षीण झाँकी मात्र कही जा सकती है।
गायत्री उपनिषद् की तृतीय कांडिका में महर्षि मैत्रेयी ने आचार्य मौद्गल्स से पूछा-देव! मन और वाक् (ध्वनि) में क्या सम्बन्ध है इन दोनों का प्रकृति से क्या सम्बन्ध है इस पर महर्षि उत्तर देते है-
मन एक सविता वाक् सावित्री, यत्र ह्मवे मनस्तद्वाक्।
यत्र वैवाक् तन्मन इति एते द्वे योनी एक मिथुनम्॥1॥
मन सविता है वाक् सावित्री जहाँ मन है वहाँ वाक् है जहाँ वाक् है वहाँ मन है ये दोनों दो योनि और एक मिथुन हैं।
दृश्य जगत वस्तुतः सूर्य का ही व्यक्त रूप है। सूर्य न हो तो सारी सृष्टि निष्प्राण हो जाये। प्रकृति की रचना सूर्य ही करता है यह रचना शब्द द्वारा ही सम्पन्न करने का अभिलेख शास्त्रकार ने किया है। अर्थात् मन को शब्द में लय, गति या मन्त्र में बाँधकर स्थूल अणुओं को उसी प्रकार स्थिर किया जा सकता है जिस प्रकार से सूर्य अपनी प्रकृति को स्थिर करता है।
श्रीमती वाट्स हग्स के इस प्रयोग में स्वर को मन से बाँधकर स्थूल परिणाम उपस्थित करना इस शास्त्रीय सत्यता का प्रमाण था। लार्ड लिटन ने इस प्रयोग की बात सुनी तो उन्होंने श्रीमती हग्स को अपने पास बुलाया और उन्हें अपनी सभा का माननीय सदस्य बनाकर वैज्ञानिकों के समक्ष इस प्रकार का प्रयोग करने का आग्रह किया। श्रीवाट्स हग्स ने तब रागों के द्वारा विभिन्न आकृति प्रकृति के फूलों फलों से लदे वृक्ष, सर्पाकार त्रिकोण, षट्कोण तारे समुद्र, पक्षी आदि अनेकों प्रकार की आकृतियाँ बनाकर सबको आश्चर्य चकित कर दिया।
आज ऐसे यन्त्रों का विकास हो चुका है जिसमें शब्द को सूक्ष्म विद्युत तरंगों में बदल कर मोटर गाड़ियाँ चलाने के काम लिये जाते हैं पर बिना किसी यन्त्र के प्रकृति में परिवर्तन उत्पन्न करने का यह संगीत-विज्ञान अपने आप में अनोखा था और यह बताता था कि देव शक्तियाँ मन्त्र द्वारा, शब्द विज्ञान द्वारा ही सूक्ष्म स्थूल जगत का नियमन करती है। उन विद्याओं के ज्ञाता भी वैसे ही चमत्कार कर सकने में समर्थ हों तो इसे अतिशयोक्ति नहीं मानना चाहिये। मन्त्र स्वर या शब्द एक ही सत्य के भिन्न रूप हैं।
इटली की एक युवती ने सामवेद की एक ऋचा पर- सितार द्वारा अभ्यास किया और उसने हजारों दर्शकों के बीच उसका प्रदर्शन करके दिखाया, कल्याण के “साधना विशेषाँक” में पं. भगवान्दास जी अवस्थी ने इसका वर्णन किया है। फ्राँस की मैडम लेंग ने विभिन्न राग गाकर देवी मेरी और जीसस क्राइस्ट के चित्र बनाकर दिखाये। और भारतीय मन्त्र शास्त्र के इस सिद्धान्त की पुष्टि की कि प्रकृति के हर स्थूल अणु को मानसिक एकाग्रता और ध्वनि के द्वारा किसी भी क्रम में सजाकर कैसा भी आग, पानी आकाश, धरती, प्रकाश, पहाड़, नदी, पक्षी, जीव-जन्तुओं का रूप दिया जा सकता है।
मन्त्र द्वारा शाप और वरदान, रोगों से मुक्ति, मारणा मोहन उच्चाटन अभिचार कृत्याघात आदि प्रयोग विराट् चेतन शक्तियों द्वारा ध्वनि के माध्यम से उत्पन्न गति जैसे ही क्रिया-कलाप है। मन्त्र शक्ति के भण्डार होते हैं यदि मन की एकाग्रता द्वारा शब्द शक्ति प्रयोग को बात मनुष्य सीख ले तो वह साधारण व्यक्तियों की अपेक्षा हजारों गुणा अधिक शक्तिशाली हो सकता है। संगीत उसका सबसे सीधा सरस व सरल प्रयोग है मन्त्र विद्या की मूल शक्तियों तक उतरना और पहुँचना हो तो संगीत साधना का प्रयोग करना चाहिए।