Magazine - Year 1972 - Version 2
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जो अपनी रोटी बाँटकर खाता है, जिसे अपनी ही तरह दूसरे जरूरतमन्दों की भी चिन्ता रहती है, जिसे गिरे हुओं को उठाने में आनन्द आता है, वह संसार में रहते हुए भी परमात्मा की गोद में निवास करने का आनन्द पाता है।
अभी उस अध्याय में एक कड़ी और जुड़ी है। कितने ही लोगों ने तलाश किया कि क्या उनमें या उनके कुटुम्बियों में भी कोई इन्द्रियातीत शक्ति है। इस खोज में इस वर्ष एक 9 वर्षीय लड़की और प्रकाश में आई है जिसने रोजा कुलेशोवा की अपेक्षा और भी अधिक लोगों को आश्चर्य चकित कर दिया।
संवाददाता निकोलाई स्वितेको के अनुसार खार्कोव की श्रीमती ओल्गा व्लिजनोवा ने अपनी 9 वर्षीय पुत्री में यह प्रतिभा और भी अधिक बढ़ी चढ़ी पाई तो उसने सोवियत विज्ञान अकादमी के सम्मुख उसे पेश किया और कई तरह के अद्भुत परीक्षण कराये। बिछी हुई शतरंज पर से उसने काली और सफेद गोटें छाँटकर अलग कर दीं। इसके बाद रंग बिरंगे कागजों की कतरने उसने तरतीब बार छाँटी। परिचित लोगों के फोटो पहचाने। बच्ची कम पढ़ी थी सो उसे बच्चों वाली रंगीन किताबें दी गईं और उसने उन्हें हाथ से छूकर ठीक तरह पढ़ दिया।
इसके बाद और भी कठिन परीक्षा शुरू हुई। उँगलियों के अतिरिक्त क्या शरीर के किसी अन्य भाग में भी ऐसी शक्ति है इसका परीक्षण किया गया तो वह बात भी सही निकली। उसने बाँह, कन्धा, पीठ, पैर आदि से छूकर भी वैसा ही अनुभव प्रस्तुत किया जैसा हाथ से छूकर करती थी। क्या चीजों को बिना छुये भी इस तरह की पहचान की जा सकती है? इस परीक्षण में पाँच सेन्टीमीटर दूर रखी चीजों तक को उसने उँगली के पोरवों की सहायता से पढ़ लिया। 9 महीने बाद उसने दूसरी तैयारी में और भी अधिक दूर पर रखी हुई चीजों को देखने और कागजों को पढ़ने में सफलता प्राप्त की। इसी प्रकार उसने पैर की उँगलियों से छूकर कितनी ही वस्तुओं का सही सही परिचय बताया।
रूस के वैज्ञानिकों का ध्यान तब से इस दिशा में अधिक गया है और उन्होंने उस सम्बन्ध में लगातार शोध कार्य किया है।
मनोविज्ञान शाखा के वरिष्ठ शोधकर्ता प्रो. कोन्स्टाटिन प्लातोनोव ने कहा है- मानवीय चेतना विद्युत की व्यापकता को देखते हुए इस प्रकार की अनुभूति अप्रत्याशित नहीं है। नेत्रों में जो शक्ति काम करती है वही अन्यत्र ज्ञान तन्तुओं में विद्यमान है, उसे विकसित करने पर मस्तिष्क को वैसी ही जानकारी मिल सकती है जैसी आँखों से मिलती है।
प्रो. एलेक्जोदर स्मिर्नोव ने कहा है-यह कोई अलौकिक बात नहीं है। वरन् सामान्य विज्ञान सम्मत सिद्धान्तों का ही एक दिलचस्प प्रतिपादन है। एक अंग की चेतना दूसरे अंगों में भी काम कर सकती है।
निझोरी तागिल पैडागोगीकल इन्स्टीट्यूट की रीडर नोवोमोइस्की ने अपने अनेक छात्रों में इस तरह की विशेषता को ढूँढ़ा तो कुछ छात्राएं ऐसी मिल गई जिनमें एक सीमा तक इस तरह की शक्ति मौजूद है। उसे बढ़ाने पर सफलता की मात्रा अधिक बढ़ने की भी आशा की गई है। इस तरह की क्षमता अन्य अंगों की अपेक्षा दाहिने हाथ की उँगलियों में अधिक पाई गई है और लड़कों की अपेक्षा लड़कियों में यह अतीन्द्रिय तत्व अधिक है। आयु बढ़ने के साथ जो कठोरता ज्ञान तन्तुओं में आती जाती है उसके कारण बड़ी उम्र में शरीर उतना सम्वेदनशील नहीं रह जाता, फलस्वरूप ऐसे अनुभव प्रौढ़ वर्ग में दृष्टिगोचर नहीं होते।
त्वचा का महत्व यदि समझा जाय तो वह अति महत्वपूर्ण माध्यम सिद्ध होगी। अन्य समस्त इन्द्रियों का तो वह कार्य कर सकने में समर्थ है ही साथ ही अंतः चेतना को विकसित एवं परिवर्तित करने में उसका और भी ऊँचा उपयोग है। साधना विज्ञान में तत्वा-त्वचा साधना को ‘स्पर्शास्पर्श योग‘ कहते हैं, इसका क्षेत्र अति व्यापक विस्तृत और प्रभावोत्पादक माना गया है।