Magazine - Year 1972 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
विज्ञापन (Kavita)
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
कलाकारों और कवियों के नाम
ओ कलाकार! ओ गीतकार!! युग निर्माता-
सन्तुलित तूलिका और लेखनी करो आज ॥
मत करो कला को निर्वसना बाजारों में-
पैसे लेकर मत बेचो वैश्या के तन-सा-॥
मत दुहराओ इतिहास, दुशासन वाला फिर -
मत खोलो सबके बीच, नारी-तन कञ्चन-सा॥
विज्ञापन का साधन न बनाओ तुम इसको-
आँचल के नीचे ही रहने दो छिपी-लाज ॥ संतु0
क्यों भाता है बस, रंग गुलाबी ही तुमको-
है रंग और भी जीवन की गहराई में ॥
कल्पना करो चित्रित पट पर पतझर की भी-
मत रह जाओ बैठे-मादक अमराई में॥
है कला, सत्य, शिव, सुन्दर की शुचितम व्याख्या-
इसको न अशिव का पहनाओ अपवित्र ताज ॥ संतु0
फिर से न कामिनी मात्र बना दो कविता को-
मत भ्रमर बनाओ प्रज्ञाशाली पौरुष को॥
मत गन्दे गीतों का इनको अभ्यस्त करो-
रामायण गाने दो फिर युग के लव-कुश को॥
भूषण बन दृढ़ता और वीरता सिखलादो-
कर सके अनागत इनके ऊपर बहुत नाज॥ संतु0
मत घोलो गीतों में बस, खुशबू फूलों की-
है गीत चुभन की, और दर्द की भी भाषा॥
जन्मी थी पहली पंक्ति, आदि कवि के स्वर में-
है वही जिन्दगी की चिर-शाश्वत परिभाषा॥
क्वारी कन्या का ही घूँघट मत उठने दो-
संस्कृति के महानाश की तुम मत बनो गाज॥ संतु0
अपनी क्षमता को पहचानो ओ कलाविदों-
तुम युग की आत्मा के गायक, साहित्यकार॥
तुमको पुकारती गिरती हुई सभ्यता फिर-
मत करो अनसुनी घायल युग की चीत्कार ॥
तुम युग के-जन मानस के-सबल सृजेता हो-
तुम से ही उठता है या गिरता है समाज ॥ संतु0
(माया वर्मा) *समाप्त*
(माया वर्मा) *समाप्त*