Magazine - Year 1972 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
विचार शक्ति का महत्व समझिये।
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
व्यक्ति जैसा सोचता है, वैसा ही व्यवहार करता है। विचारों का प्रभाव हमारे आचार पर अवश्यंभावी रूप से पड़ता है। अतएव मानव जीवन की सफलता के लिये स्वस्थ एवं उन्नत विचार परमावश्यक हैं। शारीरिक स्वास्थ्य तथा सौंदर्य भी स्वस्थ एवं प्रसन्न मन पर ही निर्भर है अतएव स्वस्थ शरीर के लिए स्वस्थ मन का होना अनिवार्य है।
जैसी हमारी मानस कल्पनाएं तथा विचार होंगे, वैसा ही जीवन भी ढल जायेगा। वस्तुतः हम जो सोचते हैं, उससे शरीर की ग्रन्थियों में एक प्रकार का रस द्रवित होता है। यदि विचार सुखदाय, स्फूर्तिवान तथा आशाप्रद होंगे तो शरीर के नन्हें-नन्हें कोषों तथा रोमों को भी नूतन स्फूर्ति एवं चैतन्यता प्राप्त होगी। इसके विपरीत भय, चिन्ता, द्वेष एवं मनोमालिन्य की भावनाएं शरीर के घटकों में अज्ञात विष उड़ेलती रहती हैं जिससे जीवन शक्ति तथा कार्यक्षमता नष्ट होती है तथा अनगिनत रोग और पीड़ाएं उत्पन्न होती हैं। स्वस्थ रहने के लिये यह परमावश्यक है कि हमारे मन में निराशा, चिन्ता, दुर्बलता और अवसाद के विचार न आने पायें। रोगों की जड़ें शरीर में नहीं अपितु मन में होती हैं।
अनेकों व्यक्ति ऐसे होते हैं जो अपने भाव संस्थान को निर्बल तथा कायर भावनाओं से विकृत बनाये रहते हैं। वे स्वयं को संसार के दुर्भाग्यशाली व्यक्तियों में गिनने हैं इस बात में विश्वास रखते हैं कि उन्हें किसी कार्य में सफलता प्राप्त हो ही नहीं सकती। परिणामतः या तो वे कार्य ही नहीं करते, यदि प्रारम्भ भी करते हैं तो असफलता के भय से या बाधायें आ जाने पर, बीच में ही छोड़ बैठते हैं। बिना दृढ़ निश्चय एवं संकल्प शक्ति के कोई कार्य पूरा नहीं हो सकता।
ऐसे कापुरुषों की भी संसार में कमी नहीं है जो मानव जीवन का मूल्य न समझकर मृत्यु के दिन गिनते रहते हैं। यह भ्रम उन्हें खाये डालता है कि वे बीमार हैं, शक्ति हीन हैं। काल्पनिक दुःख एवं चिन्ताएं हर समय उन पर सवार रहती हैं। वस्तुतः इन्हें शारीरिक रूप से कोई बीमारी नहीं होती परन्तु मानसिक निर्बलता के कारण उनकी शारीरिक तथा मानसिक दोनों ही प्रकार की शक्ति तथा सामर्थ्य पंगु बन जाती हैं। अनेक प्रकार के शारीरिक रोग इन्हें घेरे रहते हैं। जीवन के आनन्द से वंचित कर देते हैं। निर्बल एवं- रोगी शरीर व्यक्ति सुखों से सदैव वंचित ही रहता है।
मनोवैज्ञानिकों का कथन है कि अनेक शारीरिक रोग मानसिक निर्बलता तथा संवेगों से उत्पन्न होते हैं। शरीर विज्ञान-शास्त्रियों का भी मत है कि केवल मानसिक चित्रों के आधार पर ही अनेक शारीरिक बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं। इस सम्बन्ध में डॉ. टुके ने अपनी पुस्तक ‘इन्फ्लूएन्स आफ दी माइण्ड अपान दी बॉडी’ में लिखा है- ‘पागलपन, मूढ़ता, अंगों का निकम्मा हो जाना, पित्त पाण्डु रोग, बालों का शीघ्र गिरना, रक्तहीनता, घबराहट, मूत्राशय के रोग, गर्भाशय में पड़े हुए बच्चे का अंग भंग हो जाना, चर्म रोग, फुन्सियाँ-फोड़े तथा एक्जिमा आदि कितने ही स्वास्थ्यनाशक रोग केवल मानसिक क्षोभ तथा भाव से ही पैदा होते हैं।’
यदि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं, सुख तथा समृद्धि पाना चाहते हैं, सफलता का वरण करना चाहते हैं तो विचारों को निर्मल, पवित्र तथा उदात्त बनाइये। यदि कोई ऐसा विचार मन में आये कि आप बीमार हैं, दुर्बल हैं, तो तुरन्त उसे दबा दें। यदि मस्तिष्क से कोई ऐसी ध्वनि निकले जो सफलता में बाधक बने-तो फौरन उसे बाहर निकाल दीजिये। विश्वास रखिये आप संसार के महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं तथा ईश्वरीय प्रयोजनों में सहयोग देने के लिये संसार में जन्में हैं। अनेक महत्वपूर्ण कार्य आपको पूरे करने हैं। उठिये, आगे बढ़िये-मंजिल पर तीव्रता से कदम बढ़ाइये, जीवन के किसी मोड़ पर खड़ी सफलता आतुरता से आपकी प्रतीक्षा कर रही है।