Magazine - Year 1972 - Version 2
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Language: HINDI
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आत्म चेतना की साँकेतिक भाषा-स्वप्न
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स्वप्न हमारी अन्तःचेतना और प्रकट चेतना का पारस्परिक संवाद संभाषण है जो साँकेतिक भाषा में रहस्यमय लिपि में सम्पन्न किया जाता है। राजनीतिक दूतावासों में सेना में प्रायः रहस्यमय संवाद इस रहस्यमय ढंग से भेजे जाते हैं कि वाँछनीय व्यक्तियों के अतिरिक्त कोई बाहर का आदमी उसे सुन समझ न सके। टेलीग्राम की डैमी खटकती रहती है, सामान्य बुद्धि के लिए वह खट-खट मात्र की ध्वनि, पर उस कला को जानने वाले लम्बे चौड़े संवादों का प्रसंग और पारस्परिक वार्तालाप उसी आधार पर कर लेते हैं। सीने पर स्टेथिस्कोप लगाकर डॉक्टर लोग हृदय क्या कह रहा है यह सुन लेते हैं। वैद्य लोग नब्ज़ पर हाथ रखकर रोग का निदान किया करते हैं। सर्वसाधारण के लिए यह जानकारी सुलभ नहीं, पर विशेषज्ञों के लिए यह साँकेतिक भाषा बहुत कुछ बातें बता देती है।
स्वप्नों की भाषा भी ऐसी है। उन्हें निरर्थक नहीं समझा जाना चाहिए। जिस प्रकार दर्पण के सहारे हम अपना चेहरा देख सकते हैं उसी प्रकार स्वप्नों के आधार पर शरीर और मन की भीतरी परत किसी स्थिति में है उसकी झाँकी कर सकते हैं। मोटी परख तो उथली जानकारियाँ दे पाती है उनके आधार पर सामान्य स्वास्थ्य, प्रत्यक्ष कष्ट, हर्ष, शोक जैसे प्रत्यक्ष विवरण ही विदित होते हैं। पर इतना ही सब कुछ नहीं है। सूक्ष्म भी बहुत कुछ है, और वह इतना है कि स्थूल से भी भारी समझा जा सकता है। इसे सही स्थिति में जानकर भावी स्वास्थ्य संकट और मानसिक विग्रह से सहज ही बचा जा सकता है। स्वप्नों का विश्लेषण यदि किया जा सके और उनके आधार पर निकलने वाले निष्कर्षों से अवगत रहा जा सके तो आत्म-ज्ञान की इसे एक महत्वपूर्ण सीढ़ी ही कहा जायेगा।
स्टेम्फोर्ड विश्वविद्यालय के मनोविज्ञान प्राध्यापक श्री चार्ल्स टी.टार्ट के स्वप्न प्रक्रिया सम्बन्धी शोध में भी यही निष्कर्ष निकाला है कि स्वप्न सर्वथा स्वच्छन्द नहीं होते, और न वे अकारण आते हैं। उनके पीछे कुछ ठोस कारण विद्यमान रहते हैं। हाँ, वे सीधे साधे तरीके से नहीं वरन् ‘पहेली बुझोअल’ की तरह कुछ विचित्र वेश बनाकर आते हैं और हमारी बुद्धि को चुनौती देते हैं कि उनकी रहस्यमयी गतिविधियों को समझें और सन्निहित कारणों को समझकर अपनी शारीरिक, मानसिक गतिविधियों के मोड़-तोड़ का परिचय प्राप्त करें।
रूस की ‘सोवियत स्काया रशिया’ पत्रिका में डॉक्टर कत्सफिन का एक लेख छपा है जिसमें उन्होंने लिखा है कि मस्तिष्क में ऐसी अद्भुत शक्ति है कि वह शरीर में भीतर चल रही रुग्ण गतिविधियों को पहले से ही जान लेता है और स्वप्नों के आधार पर यह संकेत देता है कि स्वास्थ्य की स्थिति इन दिनों कैसी चल रही है और उसका मोड़ किधर जा रहा है। वे कहते हैं- स्वप्न न आना अस्वस्थता की निशानी है। जब शरीर की नाड़ियाँ अपनी अन्तःप्रक्रिया की बारीक रिपोर्ट मस्तिष्क को देना बन्द कर देती है तभी सपने दीखना बन्द हो जाता है।
निद्रा केवल शारीरिक विश्राम ही नहीं वरन् कुछ और भी है। स्वप्न मात्र मनोवैज्ञानिक हलचल ही नहीं वरन् इसके अतिरिक्त भी उनमें कुछ अन्य तथ्य विद्यमान हैं।
यदि किसी को सोने न दिया जाय, निरन्तर जागृत रखा जाय तो वह कुछ ही दिन में पागल होकर मर जायेगा। इसलिए निद्रा-जिसमें हम जीवन का एक तिहाई भाग खर्च करते हैं। जीवन का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। निद्रा दो भागों में विभक्त है। एक वह जिसमें मनुष्य पूरी तरह सो जाता है और दूसरा वह जिसे अल्प निद्रा कह सकते हैं, स्वप्न इस दूसरी स्थिति में ही आते हैं। जागृत अवस्था की तरह निद्रा की महत्ता भी हमारे ध्यान में रहनी चाहिए। गहरी नींद शारीरिक और मानसिक विश्राम की आवश्यकता पूरी करती है, यदि वह ठीक तरह आ जाय तो शरीर और मस्तिष्क की सारी थकान दूर हो जाती है और एक नई ताजगी का अनुभव होता है। अल्प निद्रा का महत्व और भी अधिक है क्योंकि उसमें अचेतन मन को क्रीड़ा कल्लोल करने का- अपनी दबी अनुभूतियाँ ऊपर उभारने का अवसर मिलता है। जागृत मस्तिष्क तो अपनी संवेदनाओं को ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की सहायता से चरितार्थ कर लेता है पर अचेतन मन का अपनी आकाँक्षाएं एवं अनुभूतियाँ स्वप्नों के माध्यम से ही साकार करने और अपने द्वारा रचे हुए उस स्वप्न दर्पण में अपना मुँह देखकर सन्तोष करने का अवसर मिलता है, इस प्रकार यह स्थिति भी उपेक्षणीय नहीं वरन् उपयोगी है।
निद्रावस्था में मानवीय शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं। नाड़ी की गति, रक्त का परिभ्रमण, इन्द्रियों की क्रियाशीलता, विचारों की गति धीमी पड़ जाती है। यद्यपि हृदय, फेफड़े, आमाशय, गुर्दे आदि अपना काम करते रहते हैं। जागृत और निद्रा की मध्यवर्ती स्थिति में स्वप्न दीखते हैं।
नशे में पड़ा हुआ अथवा भय एवं भ्रम ग्रसित व्यक्ति जिस प्रकार कुछ का कुछ देखने लगता है वही बात स्वप्नों में भी होती है। अनुभूति विकृत भले ही हो उसका कुछ आधार तो होता ही है। रस्सी का सर्प झाड़ी का भूत दीखना भ्रमग्रस्त स्थिति में सम्भव है पर उसमें सादृश्य का कुछ आधार हुआ ही, मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि भूतकाल की घटनाएं और जागृत अवस्था के अनुभव दोनों मिलकर स्वप्नों की चित्रकला का सृजन करते हैं।
कोलोरेडी विश्वविद्यालय ने कुमारी डोरोवी मार्टिन और फ्रान्सिस स्ट्रिविक के तत्वावधान में 30000 स्वप्न दर्शियों द्वारा देखे गये स्वप्नों का एक वर्ष तक निरन्तर विश्लेषण किया। इस प्रयोग में करीब 300 विश्लेषणकर्त्ता मनोविज्ञानी नियुक्त किये गये।
ऐसे ही प्रयोग डॉ. लुसीन वारनेर के तत्वाधान में हुए और उसमें 250 स्वप्न दर्शियों ने भाग लिया विश्लेषण कर्त्ता के रूप में मनोविज्ञानी महिला मिलडर्ड फेविला ने भाग लिया। यद्यपि देखे गये स्वप्नों में से एक तिहाई के ही कुछ निष्कर्ष निकाले जा सके पर उससे इस नतीजे पर जरूर पहुँच जाया गया कि प्रयत्न करने पर अधिकाँश स्वप्नों के आधार को ढूँढ़ा निकाला जा सकता है और उससे मनुष्य की शारीरिक एवं मानसिक स्थिति का सही पता लगाया जा सकता है। जिस प्रकार शरीर शास्त्री मल, मूत्र, थूक, रक्त आदि का ऐक्सरे फोटो विश्लेषण करके रोगी की स्थिति का पता लगाते हैं ठीक उसी प्रकार स्वप्नों के माध्यम से मनुष्य की अविज्ञात सूक्ष्म परिस्थितियों को जाना जा सकता है। विशेषतया मानसिक विश्लेषण में तो उससे बहुत अधिक सहायता मिल सकती है।
निद्रावस्था में निःचेष्ट शरीर पर पड़ने वाले छोटे-छोटे प्रभाव कई बार उस घटना को अति विस्तार देकर स्वप्न बन जाते हैं। जैसे सपने में बर्फीले पहाड़ या ठण्डे तूफान में फँस जाने का स्वप्न इस कारण भी हो सकता है कि शरीर पर से कंबल खिसक जाये और ठण्डी हवा का झोंका शरीर पर अपना प्रभाव डाल रहा हो। घर में चुहिया की खड़बड़ कानों को सुनाई पड़े और हो सकता है वह बादल गरजने की तरह सपना बन जाय। असुविधाजनक बिस्तर पर सोना, खटमल, पिस्सुओं और मच्छरों का काटना, अधिक भोजन कर लेने से पेट पर पड़ने वाला दबाव गहरी निद्रा में रुकावट डालते हैं और अधूरी एवं उचटी हुई नींद में असुविधाजनक कष्टकर दृश्य दिखाने वाले सपने दीख सकते हैं।
मन पर जो चिन्ता, भय, निराशा या वियोग व्यथा सवार हो वही उलट-पुलट कर सपना बन सकती है। कोई किसी स्वजन सम्बन्धी की मृत्यु ने यदि मन पर गहरा प्रभाव डाला है तो वह बार-बार सपने में दिखाई पड़ सकता है। ईर्ष्या, प्रतिस्पर्धा और आत्महीनता की भावना के कारण जो असन्तोष रहता है उसकी तृप्ति अपनी या अपने किसी सम्बन्धी की विजय एवं उन्नति के रूप में दीख पड़े तो समझना चाहिए- अपना समाधान आप करने के लिए अचेतन मन सपने की सुनहरी नगरी बसाकर अपने को बहलाने का प्रयत्न कर रहा है। किसी शत्रु को हानि पहुँचाना या आशंकित आपत्ति का किसी डरावने रूप में आ खड़े होना जैसे सपने अपनी ही मकड़ी के बुने हुए जाले या ताने-बाने हैं।
अतृप्त इच्छाएं भी कई बार सपने में पूरी होती हैं जैसे किसी ब्रह्मचारी संन्यासी, भूले-भटके परिचित व्यक्तियों की आकृतियाँ भी स्मृति पटल पर उभर आती हैं और उनसे सम्बन्धित सपने दीखते हैं।
मनोविज्ञान वेत्ताओं की शोध यहीं तक सीमित है। इससे आगे अतीन्द्रिय विज्ञान का क्षेत्र आरम्भ होता है परा मनोविज्ञान- पैरा साइकोलॉजी, मैटाफिजिक्स जैसी विज्ञान शाखाएं यह स्वीकार करती चली जा रही हैं कि अचेतन मन की सत्ता शरीर तक ही सीमित नहीं, वरन् उसका घनिष्ठ सम्बन्ध ब्रह्माण्ड व्यापी विश्व चेतना-विराट् मन से भी है।
जो कुछ इस विश्व में हो चुका है या होने जा रहा है वह सब भी उसी प्रकार स्वप्नावस्था में दृष्टिगोचर हो सकता है जैसा कि अपने आपे से सम्बन्धित परिस्थितियों के दृश्य दिखाई पड़ा करते हैं। भूतकाल की विराट् मन पर अंकित ऐतिहासिक घटनाएं यदि स्वप्न में दीखती हैं तो उनके बारे में यह भी कहा जा सकता है कि जो पढ़ा होगा या सुना होगा वही दीखा होगा पर भविष्य से सम्बन्धित घटनाएं जब स्वप्न में दीखती हैं और यथार्थ सिद्ध होती हैं तब उस पूर्वाभास के पीछे विराट् मन के साथ व्यक्ति के मन की सुसंबद्धता मानकर ही उसका समाधान किया जा सकता है।
पोलैंड का एक सैनिक स्टैनिस्लास भी प्रथम महायुद्ध में अन्य हजारों सैनिकों की तरह लापता था उसकी प्रेमिका मेरिना को यह बार-बार आभास होता कि वह अभी मरा नहीं है। उसकी तलाश करने के लिये वह अपने जेकनैक पुलिस थाने में जाती और प्रार्थना करती कि उसके प्रेमी की तलाश करने में वह मदद करें। अधिकारियों के पास तलाश करने की कोई युक्ति न थी, वे क्या कर सकते थे, इस लड़की को वे सनकी कहकर चुप हो जाते।
मेरिना के विश्वास का कारण वे सपने थे जो उसे अक्सर आया करते थे। अक्टूबर, 1918 में मेरिना ने पहला भयानक सपना देखा कि उसका प्रेमी किसी अँधेरी सुरंग में बन्द और वहाँ से बाहर निकलने का रास्ता तलाश कर रहा है। मोमबत्ती जल रही है और वह दरवाजे के पत्थरों को हटाने की जी तोड़ कोशिश कर रहा है पर उसमें सफलता नहीं मिल रही। निराश होकर वह घुटनों पर सिर रखे आँसू बहा रहा है। मेरिना ने इस सपने को कई दिन देखा।
दस महीने बाद स्वप्न के इस क्रम में कुछ हेर-फेर हुआ। उसने देखा किसी पहाड़ी पर एक छोटा सा किला है। वह विस्मार पड़ा है। मेरिना वहाँ पहुँचती है और मलबे के भीतर से उसके प्रेमी की आवाज आती है। वह सहायता के लिये उसे पुकारता है। वह पत्थर हटाने की कोशिश करती है पर वे बहुत भारी होने के कारण हटते नहीं। मेरिना थक जाती है और सपना टूट जाता है। लगभग यही सपना उसे बार-बार आता रहा।
मेरिना यही यकीन करती थी कि उसका प्रेमी जीवित है और उसी स्थिति में है जिसमें कि स्वप्न बताते हैं। वह पुलिस के पास जाती। भूगोल वेत्ताओं से राज्याधिकारियों से अपने सपने वाले किले के निशान बताकर उसका अता-पता पूछती। पर कोई कुछ बता नहीं सका क्योंकि पोलैंड में उस तरह के हजारों किले थे जो युद्ध के दरम्यान तथा उससे पहले ही खंडहरों के रूप में बदल चुके थे। लोगों ने लड़की से सहानुभूति तो दिखाई पर कोई मदद करने के लिये तैयार न हुआ।
आखिर भावुक लड़की उस स्थान की तलाश में अज्ञान दिशा की ओर निकल पड़ी। न पास में पैसा था और न कोई साधन। किसी अज्ञात दिशा में उसके पैरों को कोई घसीटे लिये जा रहा था और उसे लगता था कि वह सही दिशा में चल रही है। रात को सड़क के किनारे पड़ी रहती कोई दयालु व्यक्ति उसे कुछ खाने को दे देता उसे खा लेती। जो उसकी कहानी सुनते वे दुखी तो जरूर होते पर उसकी सहायता कर सकने में अपने को असमर्थ पाते।
चलते चलते 25 अप्रैल, 1920 को वह दक्षिण पूर्व पोलैंड के ज्लोटा गाँव के पास एक पहाड़ी पर जा पहुँची। उसके ठीक सपनों की तरह का दृश्य वहाँ देख और खुशी में चिल्ला उठी-ढूंढ़ लिया मैंने अपने पति को। यही है वह स्थान जहाँ स्टेनिप्लास जीवित मौजूद है। भीड़ इकट्ठी हुई। पुलिस भी आई। मेरिना ने बताया वह यहाँ दबा पड़ा है। वह स्वयं पत्थर हटाने लगी पर वे बहुत भारी थे। कौतूहल में सम्मिलित लोगों ने भी सहानुभूतिवश उसकी मदद की और कुछ पत्थर हटाये भी गये। अब एक छेद में से मनुष्य की हलकी आवाज सुनाई पड़ने लगी। लोगों को विश्वास हो गया कि मेरिना के सपने सच हैं और फिर पूरे प्रयत्न से मलबा हटाया और दो दिन में वह प्रवेश द्वारा खुल गया, जिसमें होकर खण्डहर के भीतर जाया जा सकता था।
स्टैनिस्लास बाहर निकाला गया उसका बुरा हाल था। दो वर्ष इस एकाकी कैद में वह वन मानुस जैसा दीखता था। हुआ यह कि लड़ाई का एक मोर्चा इस पहाड़ी किले पर जमा था। शत्रुओं की तोपें उस पर गोलाबारी कर रही थी। तभी एक गोला किले के द्वार पर गिरा और उसके गिरने से निकलने का रास्ता बन्द हो गया। उस बन्द खण्डहर में कुछ मोमबत्तियाँ, पनीर बियर, तथा पानी की एक हौदी आदि जो सैनिकों की रसद जमा थी उसी के आधार पर उसने दो वर्ष गुजारे कभी प्रयत्न करता, कभी प्रार्थना, कभी मेरिना की याद करता, कभी मौत की। इसी तरह उसने यह लम्बी अवधि काटी।
मेरिना का सपना सच सिद्ध हुआ। जिस शक्ति ने उसे यह आभास दिया था वह उसे उस किले तक भी ले पहुँची और अन्ततः अपने प्रेमी को पाने में इसी आधार पर सफल हुई।
इतिहास के पृष्ठ स्वप्नों की सत्यता वाले सन्दर्भों से भरे पड़े हैं-
सीजर की पत्नी कलपोर्निया ने एक सपना देखा जिसमें फव्वारे से खून झरता था, उसमें सीजर स्नान करता दिखाई पड़ा। वह इस सपने से बहुत भयभीत हुई और सीजर को बाहर जाने से रोका भी। उसे आशंका थी कि कोई दुर्घटना घटित न हो जाय। पर सीजर माना नहीं। बाहर चला गया और वहीं उसकी हत्या कर दी गई।
अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन की पत्नी ने अपने पति की हत्या किये जाने का स्वप्न देखा। एक दिन तो वे पत्नी के कहने पर घर ही रहे पर दूसरे दिन जब वे थियेटर गये तो स्वप्न के अनुरूप ही उनकी हत्या हो गई।
अमेरिका में 28 फरवरी, 1844 को जलयानों में फिट की गई नई किस्म की तोपों का प्रदर्शन करने के लिये एक बड़ा समारोह मनाया गया। वाशिंगटन में प्रमुख नेताओं तथा अफसरों को उसमें आमंत्रित किया गया। आमन्त्रितों में जनरल गार्डिनर तथा उनकी दो पुत्री और जल सेना के मन्त्री थामस और उनकी पत्नी सेनी भी थीं।
उपरोक्त दोनों महिलाओं ने आयोजन से एक दिन पूर्व ठीक एक ही तरह का सपना देखा। दो घोड़ों पर सवार दो नर कंकाल उस जहाज की ओर दौड़े चले आ रहे हैं। उनने कइयों को खा डाला। इनमें से एक जनरल गार्डिनर भी थे; और सेनी के पति भी शामिल थे।
यह सपना उनने सुनाया और भावी विपत्ति की आशंका से उस समारोह में न जाने की बार-बार विनय की पर कोई माना नहीं। सपने को मजाक में टाल दिया गया। नियत समय पर सब लोग पहुँच ही गये।
नियत समय वह विशाल तोप दागी गई। ज्यों ही घोड़ा दागा कि तोप फट गई और कई अन्य व्यक्तियों के साथ गार्डिनर और थामस भी उस दुर्घटना में मृत्यु के ग्रास बन गये।