Magazine - Year 1980 - Version 2
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Language: HINDI
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जीव-जन्तुओं में अतीन्द्रिय क्षमता
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बुद्धि के क्षेत्र में मनुष्य समस्त प्राणि जगत का नेतृत्व करता है। किन्तु मात्र इस विशेषता के आधार पर वह अपने को सर्वोपरी होने का दावा नहीं कर सकता। जिन गुणों के आधार पर उसकी महिमा का गुणगान किया गया वह है उसकी भाव सम्वेदनाए। इन्हीं विशेषाएँ। इन्हीं विशेषताओं के कारण उसे सर्वश्रेष्ठ होने एवं सृष्टि के मुकुटमणि कहे जाने का गौरव प्राप्त हुआ। इनके अभाव में तो बुद्धि सम्पन्न होते हुए भी उसकी गतविधियाँ निकृष्ट बनी रहती। संकीर्णताओं एवं स्वार्थां को अपनाने से तो वह मानवेत्तर योनियों से भी गया गुजरा सिद्ध होता। उसकी महत्ता तो मानवोचित गुणों से सम्पन्न होने पर ही प्रतिपादित की गई है।
परमात्मा ने मनुष्य को अतिरिक्त बुद्धि तो दी। किन्तु अन्य प्राणियों को भी उन विशेषताओं से वंचित नहीं रखा जो उनके जीवन-यापन के लिए आवश्यक है। भोजन जुटाने से लेकर सुरक्षा का सरंजाम करने में ये प्राणी कितने दक्ष होते है, यह उनके कृत्यों का अवलोकन करने पर जता चलता है। जो जीव अधिक कोमल एवं शक्ति की दृष्टि से कमजोर हैं उनके साथ कुछ ऐसी विशेषताएँ जोड़ दी, जिनसे वे खूँखार जीवों से अपनी सुरक्षा कर सकें। न केवल जीव जन्तुओं वरन् प्रकृति के प्रकोपों से बचने के लिए उन्हें अतिन्द्रिय शक्तियाँ प्रदान की। जिससे वे आने वाले संकटों का पूर्वाभास कर अपनी सुरक्षा कर सें। उनकी इन क्षमताओं को देखकर मानवी बुद्धि को भी आर्श्चयचकित होना तथा सोचना पड़ता है कि उसका सर्वोपरि होने का दम्भ मिथ्या है।
होने वो प्रकृति प्रकोपों की जानकारी प्राप्त करने के लिए विज्ञान अभ ऐसी तकनीक का विकास नहीं कर सका है जिससे वह सम्भावित विक्षेभों को जानकर अपनी सुरक्षा कर सके। इस कारण प्रतिवर्ष कितनी क्षति उठानी पड़ती है, इससे हर कोई अवगत है। किन्तु जो नवीन तथ्य सामने आये है उनसे पता चला है कि कुछ जीवों को इस प्रकार की अतीन्द्रिय क्षमताएँ प्राप्त है। उनको होने वाले प्रकृति प्रकोपों का पूर्वाभास हो जाता है। फलस्वरुप वे संकट सिर पर खड़ा देखकर अपनी सुरक्षा का प्रयत्न करते है।
जुलाई 28 सन् 76 को उत्तर चीन में भूकम्प का तीव्र झटका महसूस किया गया। सर्वेक्षण में गये सरकारी कर्मचारियों को एक गाँव के व्यक्तियों ने महत्वपूर्ण बातें बताई। एक कृषक नित्य की भाँति अस्तवल में बंधे अपने घोड़ों को चारा-पानी देने के लिए गया। अस्तवल में बंधे घोड़े एवं खच्चर चार खाने के स्थान पर उछलने -कूदने लगे। पशु पालक के अथक प्रयत्न क बावजूद भी जानवर रस्सियाँ तुड़ाकर भाग चले। उसी क्षण आसमान में बिजली की तीव्र गड़गड़ाहट गूँज उठी। तीव्र प्रकाश की चमक दिखाई पड़ी। कुछ समय बाद पता चला कि वहाँ से 40 किमी दूर ताँगशान में 78 की शक्ति का भूकम्प का झटका अनुभव किया गया।
इस आधार पर चीनी वैज्ञानिकों ने अपनी खोज आगे बढायी। सर्वेक्षण में जीव भोतिकविद्, प्राणिशास्त्री, भू-भौतिकविद् रसायन शास्त्री और मौसम विशेषज्ञ सम्मिलित थे। उन्होने भूकम्प आने के पूर्व पशुओं के व्यवहार में अकस्मात् असाधारण परिवर्तन होने की 2793 घटनाएँ रिकार्ड की। इस छान-बीन से लिकने तथ्यों में 80 प्रतिशत घोड़ों, गधों, खच्चरों, गायों, मुर्गियों, बिल्लियों, चूहों, कुत्तों, नेवलों, मछलियाँ एवं बकरियों से सम्बन्धित थे।
देखा यह गया कि भूकम्प आने के कुछ समय पूर्व उस क्षेत्र के नेवले अपने अपने बिलों से निकलकर भागने लगे। कुछ ने अपने बच्चों को पीठ पर तथा कुछ ने मुँह में दबा रखा था। ऐसी मान्यता है कि नेवले सामान्यतया रात्रि को ही अपने बिलों से शिकार करने के लिए निकलते है। टैंको, छोटे तालाबों में पाली गई मछलियाँ भूकम्प से पूर्व अपने टैकों, तालाबों में उछल कूद मचाने तथा बाहर निकलने का प्रयत्न करने लगी। कुछ तो तालाब के किनारे आकर छटपटाने ताि इधर-उधर भागने लगी। देखने वालों ने बताया कि उनकी छटपटाहट यह बताती थी कि जैसे उनको किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचने की तेजी हो। किन्तु ऐसा कर पाने में वे असहायिी। जिसकी वेदना छटपटाहट के रुप में व्यक्त कर रही थी। कुछ को तो पानी से उठकर हवा में छलाँग लगाते हुए भी देखा गया। बकरियों के मिमयाने का ढंग उस समय विचित्र एवं करुण था। बिल्लियाँ घरों से निकलकर भागने लगी। अपने साथ नन्हे बच्चों को भी उन्होनें मुँह में दबा रखा था।
कुत्ते कितने वफादार होते है इससे सभी परिचित है। किन्तु उस दिन कुत्तों ने अपने मालिकों के ऊपर ही गुर्राना, भोंकना आरम्भ कर दिया। उन्हें बाँधकर रखने के प्रयास में कुछ ने तो अपनी मालिकों को ही काट खाया। चूहों के स्वभाव में अजीब परिवर्तन देखा गया। अपने-अपने बिलों से निकलकर वे जमीन पर लोटने पोटने लगे। चुस्त एवं चौकन्ने रहने वाले जीवों को अपने शत्रुओं का भी भय नहीं रहा। कितने तो तेजी से दौड़ते हुए पेड़ों पर जा चढे।
इस सर्वेक्षण में यह पता लगा कि जानवरों के व्यवहार में असामान्यता भूकम्प क पूर्व 24 घण्टे तक चरम सीमा पर थी। जहाँ-जहाँ भी भूकम्प के झटके अनुभव किए गये वहाँ-वहाँ इस प्रकार के परिवर्तन जानवरों में नोट किए गये।
ये घटनाएँ इस बात की प्रमाण है कि प्रकृति में होने वाले परिवर्तन तथा प्रकोपों की जानकारी जीव जन्तुओं को मिल जाती हैं इस आधार पर यह सम्भावना बन चली है कि जानवरों के असामान्य व्यवहारों के आधार पर प्रकृति में होने वाले परिवर्तनों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। न केवल जानकारी वरन् इस आधार पर सुरक्षा की व्यवस्था भी बनायी जा सकती है। इस दिशा में चीन के वैज्ञानिकों का प्रयास भी चल पड़ा है। चीन के एक नगर ‘सिंगताई’ को अधिकतर भूकम्प के झटके से गुजरना पड़ता है। फलस्वरुप अधिक जन एवं धन शक्ति नष्ट होती है। इसके लिए ‘सिंगताई में एक केन्द्र खोला गया है। दूसरा ‘अक्सू’ नाम स्थान पर खुला है। इन केन्द्रों पर विभिन्न प्रकार के जीव जन्तु पाले गये है। उनके व्यवहारों एवं उनमें होने वाले परिवर्तनों का गहन अध्ययन किया जाता है। उन वैज्ञानिकों का कहना है कि भूकम्प के पूर्व पृथ्वी के परतों, जल एवं वायु के आयनों से भौतिक एवं रासायनिक परिवर्तन होता है। परिवर्तनों में, भू-विद्युतीय, भू-चुम्बकीय प्रभाव में अन्तर आना, तापक्रम का कम, अधिक होना भी सम्मिलित है। इन परिवर्तनों को ये जीव ग्रहण करने में समर्थ होते है। मनुष्य की इन्द्रीयाँ एवं यन्त्र इन परिवर्तनों को देख एवं जान सकने में असमर्थ है। जबकि ये तुच्छ जीव होने वो सूक्ष्म परिवर्तनों को भी जान लेते है।
इन प्रयोगों के आधार पर पिछले दिनाँक आक्सू (सिंकयाँग) एवं ‘पोहाई’ नाम स्थान पर आये 74 शक्ति के भूकम्प की पूर्व घोषणा की गई। पूर्व घोषणा से होने वाली क्षति को बचाया जा सका।
जन्तुओं की इन अतीन्द्रिय क्षमताओं ने वैज्ञानिकों का ध्यान आकर्षित किया है। अब यह सम्भावना बन चली है कि नगण्य समझे जाने वाले जीव भी मनुष्य के लिए उपयोगी हो सकते है। उनसे वे सूचनसं प्राप्त की जा सकती है जो यन्त्रों एवं बुद्धि द्वारा सम्भव नहीं है। धर्म दर्शन प्राणिमात्र पर दया करने की प्रेरणा देता है। सभी के एक सूत्र में गुँथे होने की घोष्णा करता है। वसुधैव कुटुम्बकम् की उदात्त भावना में मानवेत्तर जीवन सम्मिलित है। सृष्टि का श्रेष्ठ प्राणी कहे जाने के कारण यह दायित्व मनुष्य के ऊपर आता है कि वह इन नन्हें जीवों का पोषण एवं रक्षा करें। उनसे भौतिक जानाकरियाँ मिलने की सम्भावना बन ली है। करुणा, दया, सेवा जैसे आध्यात्मिक तत्वों का विस्तार प्राणिमात्र पर दया करने, उन्हें सुरक्षा प्रदान करने से ही सम्भव हो सकेगा। इस उदात्त भावना के अपनाने से ही मानवी गरिमा अक्षुण्ण रह सकती है।