Magazine - Year 1980 - Version 2
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Language: HINDI
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अविज्ञात सृष्टि के अविज्ञात रहस्य
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सृष्टि का विस्तार असीम है। इसके ज्ञात की अपेक्षा अविज्ञात का क्षेत्र अधिक व्यापक है। रहस्य के परदे अभी इतने अधिक है कि उनके समक्ष अब तक की जानकारियाँ नगझय लगती है। सूक्ष्म जगत तो अभी पूर्णतया अनजान बना हुआ है। प्रकृति रहस्य के स्थूल पक्ष ़कितने ही ऐसे है जो अब भी मानवी बुद्धि, वैज्ञानिकों के समक्ष रहस्यमय बने हुए है। प्रकृति को समक्ष लेने का दावा करने वाली वैज्ञानिक बुद्धि भी जब उन रहस्यात्मक पक्षों का पर्यवेक्षण करती है तो उसे देखकर हतप्रभ रह जाती है। ढूँढ़ने में कोई ऐसा कारण नहीं दिखाई पड़ता जो भौतिक विज्ञान की विश्लेषणात्मक पद्धति अथवा नियमों के अर्न्तगत आता हो। बौद्धिक असमर्थता व्यक्त करते हुए हार कर उन्हें अविज्ञात रहस्य घोषित किया जाता है।
इतने पर भी तयि एवं सत्य अपने स्थान पर यथावत् है। सृष्टि का कोई घटना-क्रम ऐसा नहीं जो कारणों से रहित अथवा अवैज्ञानिक हो। यह बात दूसरी है कि भौतिक विज्ञान उन रहस्यमय क्षेत्रों में पहुँच कर अविज्ञात सूत्रों को ढूँढ निकालने में असमर्थ सिद्ध हो रहा हो जो वैज्ञानिक हाते हुए भी उसक पकड़ के बाहर हो।
घटना अठारहवीं शदी के आरम्भ की है। उन दिनों स्पेन और फ्रान्स के बीच भयंकर युद्ध चल रहा था। 5000 हजार स्पेनी सैनिकों का नेतृत्व कर रहे थे कमाण्डर ली.जोर्नवाव। सैनिक दो-तीन टुकड़ियों में बटकर चल रहे थे। एकाएक लगभग 1500 सैनिक की टुकड़ी देखते-ही-देखते लुप्त हो गई। इस घटना के घटने में कुछ सैकिन्ड लगे होंगें। ‘कमाण्डर ली जोर्नवाव’ का इसकी सूचना मिलीं उक्त स्थान को खतरनाक घोषित करते हुए जोर्नवाव ने शीघ्रता-शीघ्र पार करने का सैनिकों को आदेश दिया। सैनिकों को ढँढ़ने के लिए विशेषज्ञों की एक टोली भेजी गई जो समीपवर्ती स्थानों से पूर्णतया परिचित थी। ढूँढ़-खोज का कार्य कई दिनों तक चलता रहा, पर उनका कोई सुराग न किल सका। घटना का विवरण पुस्तक ‘हिस्ट्री आँफ वन्डरफुल इवेन्टसा’ में मिलता है।
इसी से मिलती एक घटना सन् 1856 में घटीं 650 फ्राँसीसी सैनिकों का एक ग्रुप निकटवर्ती जर्मन चौकी पर हमला करने के लिए बढ़ रहा था। सीी सैनिक अस्त्र-शस्त्रों से लैस थे। अचानक हवा का हल्का बवण्डर आया और देखते-ही-देखते 645 सैनिक हवा में विलुप्त हो गये। बच्ो हुए पाँच सैनिकों के लिए यह घटना अचम्भित कर देने वाली थी। अब शेष सैनिको ने उस स्थान की एक-एक इन्च भूमि देख डाली, पर उनका कोई पता न लग सका। सेना की दूसरी टुकड़ी को जाकर इन पाँचों ने घटना की सूचना दी। महीनों खोज-बीन चलती रही, पर उन सैनिकों को कोई चिन्ह तक नहीं मिल सका।
अमेरिका का टेनेसी निवासी एक किसन ‘डेविड लाग’ अपने दो मित्रों के साथ 23 सितम्बर 1808 को सायंकाल घूमने निकला। तीनों मित्र साथ-साथ चल रहे थे। एकाएक डेविड लाग हवा में गायब हो गया। उस स्थान पर मित्रों ने ध्यान से देखा, पर वहाँ। न तो कोई गड्ढा था न ही झाड़-झंखाड़ और खाई। सड़क प्लेन और साफ थी। ‘लाग’ के दो मित्रों में से एक प्रतिष्ठित न्यायाधीश थे। उन्होंने ‘लाग’ को ढूँढ़ निकालने के अनेकों सरकारी प्रयास किये, पर असफलता ही हाथ लगी। अपने वक्तव्य में न्यायाधीश महोदय ने कहा कि "यह एक अविश्वनीय किन्तु सत्य घटना है जिसका कोई समाधान खोजने पर नहीं मिलता।"
सन् 1920 में लन्दन के एक युवा साँसद पिक्टर ग्रेसर लन्दर की दुकान से जैसे बाहर निकले ऐसे लुप्त हो गये जैसे हवा के झोंके के साथ तिनका। इसी तरह की एक घटना 13 जुलाई 1950 को घटी। पौलेण्ड निवासी पादरी केनरी वोर्निस्की अपने मित्र के पास जा रहे थे। अपने मकान से अभी 100 गज ही दूर गये होंगे कि गायब हो गयें। आस-पास के स्थानों में खोज-बीन की गई, पर उनका कोई ीी सुराग नहीं मिल सका।
सन् 1936 में चीन और जापान के बीच युद्ध चल रहा था। चीनी सेना की एक टुकड़ी जिसमें 3000 सैनिक थे, का पड़ाव नानकिंग नामक स्थान पर पड़ा था। टुकड़ी का सम्पक्र सूत्र केन्द्र से निरन्तर बना हुआ था। एक दिन प्रातः अचानक केन्द्र से संचार सम्पक्र टूट गया। केन्द्रिय सैनिक कमाण्ड ने अविलम्ब उक्त टुकड़ी के सैनिकों की खोज आरम्भ कर दी। पड़ाव के स्थान पर सैनिकों के अस्त्र-शस्त्र एवं खाद्य सामग्री तो विद्यमान थी, पर वहाँ न तो किसी प्रकार के युद्ध का चिन्ह मिला न ही सैनिकों का अवशेष। खोजी कुत्ते उक्त स्थान पर जाकर भौंकते रहे। वे वहाँ से आगे बढ़ने का नाम नहीं लेते थे। दो फर्लाग दूरी पर दो सैनिक सुरक्षा पहरे पर नियुक्त थे, मात्र वे ही बच सके। इन दोनों सैनिकों ने किसी प्रकार के बाहरी आक्रमण होने अथवा सैनिकों के वहाँ से भाग जाने की सम्भावना से इन्कार कर दियाँ
हाल ही एक रोचक घटना ने वैज्ञानिकों को इन कारणों पर सोचने को बाध्य किया है, जिससे कितने ही व्यक्ति लुप्त हो गये। जुन 1979 में लन्दन की श्रीमति क्रिस्टीन जान्सटन नामक महिला ने वहाँ के न्यायालय में सम्बन्ध-विच्छेद का एक मुकदमा दायर किया। उक्त मुकदमें का आधार रोचक किन्तु आर्श्चयजनक था। त्याग पत्र में उल्लेख था कि उसके पति ‘श्री एलन’ हवा में गायब हो गये, उस कारण वैवाहिक सम्बन्ध-विच्छेद की अनुमति दी जाय। घटना इस प्रकार बताई जाती है। श्रीमति किस्टीन जान्सटन एवं उनके पति श्री एलन सन् 1975 के गर्मियों के अवकाश में उत्तरी धु्रव की यात्रा पर गये। दोनों पति-पत्नि रुसी सीमा से लगे लैपलैण्ड में स्थित एक गिरजाघर के निकट से होकर गुजर रहे थे। शीतल वायु के झोंकों का आनन्द उठाते हुए दोनों आगे बढ़ रहे थे। पत्नि कुछ कदम ही आगे बढ़ गई। पीछे मुड़ कर देखा तो मि. एलन का कहीं पता न था। इस घटना को घटित होने में मात्र कुछ सैकिण्ड लगे होगें। श्रीमति क्रिस्टीन ने ढूँढ़ने के असफल प्रयासों के बाद स्थानीय लोगों से मदद माँगी। ‘फिनिश’ जाति के लोगों ने खोजी कुत्तों की सहायता से एलन के खोजने का अथक प्रयास किया, पर कुत्ते उस मोड़ पर जाकर रुक जाते थे जहाँ से ‘एलन’ गायब हुए थे। रुसी सेना का कैम्प निकट होने से सेना विशेषज्ञों का भी सहयोग लिया गया। पर अब तक इस रहस्य का उद्घाटन न हो सका कि एलन का क्या हुआ? इस तथ्यों पर अवलोकन करने के बाद लन्दन की अदालत ने मि. एलन को मृतक घोषित करते हए श्रीमति क्रिस्टीन के पक्ष में फैसला दिया।
उपरोक्त घटनाओं का अब तक रहस्योद्घाटन न हो सका। वारमूडा त्रिकोण भी वैज्ञानिकों के लिए रहस्य का केन्द्र बना हुआ है। कितने ही हवाई जहाज, जलयान, उक्त स्थान से गायब हो चुके हैं वैज्ञानिकों ने वायु में चलने वाले खतरनाक चक्रवातों का एक कारण बताया है। पर इससे समाधान नहीं होता। चक्रवातों द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान को वस्तुएँ फेक दी जाती है। उनका चिन्ह तो मिल जाता है। पर उपरोक्त घटनाओं के उपरान्त कोई भी चिन्ह अब तक नहीं प्राप्त हो सके है। ये घटनाएँ मानवी मस्तिष्क को सृष्टि के अविज्ञात रहस्यों पर सोचने को बाध्य करती है। शास्त्रों में भू-लोक के अतिरिक्त अन्य छै सूक्ष्म लोकों का वर्णन आता है। सम्भव है कोई अदृश्य शक्ति उन सूक्ष्म लोकों में मुनष्य को ढकेल देती हो जहाँ से वापस पृथ्वी लोक पर आ सकना सम्भव न हो। तथ्य चाहे जो भी हो ये घटनाएँ सृष्टि की उन रहस्यमय बातों का बोध कराती है जो अब भी मानवी बुद्धि के लिए अछूती एवं अनजान बनी हुई है। विज्ञान भी अपनी असमर्थता व्यक्त कर रहा हैं उन अविज्ञात तथ्यों एवं रहस्यों को जानने के लिए आत्म-विज्ञान का ही अवलम्बन लेना होगा जिसके लिए शास्त्रकार घोषित करते है कि आत्म-विज्ञान का अवलम्बन लेने वाले के समक्ष कुछ भी अविज्ञात नहीं रहता।