Magazine - Year 1980 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
भोजन ही नहीं शोधन भी
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
शरीर को जीवित रखने के लिए हवा और पानी के समान भोजन भी आवश्यक है , पर वह स्वास्थ्यवर्धक एवं अरोग्य रक्षक तभी हो सकता है, जब स्वास्थ्य से जुडे़ अन्य नियमों का भी पालन ठीक प्रकार किया जाय। मोटी, कल-कारखानों को सतत् चलते रहने के उपरान्त कुछ समय का बीच में विश्राम देना पड़ता हैं पाचन तन्त्र भी एक मोटर के तुल्य हैं। भोजन को पचाने के लिए उसे सतत् श्रम करना होता है जिसमें शरीर की अत्यधिक उर्जा खर्च होती हे। उसे भी समय-समय विश्राम देना उतना ही आवश्यक है। मोटर, इन्जिन, कारखानों का विश्राम देने का एक अभिप्रायः उनकी सफाई का भी होता है। पाचन तन्त्र में भी अनेको प्रकार के अनुपयोगी तत्व संग्रहित हो जाते है। अपच भोजन जमा हो जाता है। उसके परिशोधन का सर्वश्रेष्ठ, सुलभ एवं सरल प्राकृतिक उपाय उपवास को माना गया है। उपवास को एक समग्र उपचार-परिशोधन पद्धति माना गया है।
उपवास के लाभों को देखते हुए विश्व के मूर्धन्य वैज्ञानिकों, और विचारशील व्यक्तियों ने एक स्वर से सराहना की है तथा इसे आरोग्य की कुँजी माना है। सोवियत संघ के जीवन-विज्ञानवेत्ता ‘ब्लाड दिमीर निकिलन ने अपने अनेकों शोधों के उपरान्त के बाद घोषण की कि उपवास द्वारा यौवन को चिरकाल तक अक्षुण्ण बनाये रख जा सकता है। उन्होने शीघ्र मरने वाले अधिकाँश व्यक्तियों में पाचन तन्त्र को असमर्थ होना ही बताया है। उनका कहना है कि अधिक खाने कोकरण ही पाचन तन्त्र खराब होता तथा अनेकों रोग उत्पन्न होते है।
अमेरिका के डाँ. अटन सिक्लेयर कहते है कि इस आयु में मेरा पूर्ण स्वस्थ, युवा उमगों से भरपूर होने का कारण है उपवास के प्रति मेरी अटूट निष्ठा। सप्ताह में एक दिन का नियमित रुप से में व्रत रखता हूँ। शुद्ध शाकाहार भोजन कम मात्रा में ग्रहण करता हूँ उनका कहना है कि उपवास प्रकृति की स्वास्थ्य संरक्षक विधिक है जिसके द्वारा प्रकृति हमे शारीरिक एवं मानसिक रोगों से सुरक्षित रखती हैं। मुझे प्रसन्नता है ऐसे तीव्र एवं जीर्ण रोग हमसे दूर चले गये, जिससे अधिकाँशतः व्यक्ति पीड़ित रहते है।
चिकित्सा वाज्ञन के विशेषज्ञ ‘फ्यूरिगटन’ महोदय लिखते है कि यदि आप मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य, यौवन और जीवन का आनन्द एवं शक्ति चाहते है तो सप्ताह में कम से कम एक दिन नियमित रुप से उपवास कीजिए इससे शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के साथ-साथ आध्यात्मिक उन्नति का आधार भी बनता है।” प्राकृतिक चिकित्सा के सुप्रसिद्ध अमेरिकी डाँ. एरनाल्ड इहरिट अपनी पुस्तक “रैशनल फास्टिंग” में उपवास की अनेको विधियों का वर्णन किया है तथा कहा है कि प्रत्येक व्यक्ति को निरोग रहने के लिए छोटे-मोटे उपवास सप्ताह में एक बार अवश्य करना चाहिए।” अमेरिका के प्रख्यात डाँ. डैवी ने तो उपवास की महत्ता से प्रभावित होकर “नो बे्रक फास्ट प्लान” अर्थात् “सुबह का नाश्ता छोड़ों” नामक योजना चलाई है।
डाँ. हैनरी हिडल्डार ने तो ‘उपवास को रोगों के समूल नाश करने की अचूक विधि कहा है।’ उनके अनुसार शरीर को स्वस्थ रखने के लिऐ बहुत थोडे़ भोजन की आवश्यकता हे। उपवास की अवधि में नीबू एवं जल के सेवन पर उन्होंने जोर दिया है।
प्रसिद्ध अमेरिकी मनोवैज्ञानिक वेंजामिन फै्रकलिन ने रोग निवारण का सर्वोत्तम उपाय उपवास को माना है।
भोजन के साथ उपवास को भी उतनी ही महत्ता है। स्वास्थ्य सर्म्बधन से लेकर आरोग्य संरक्षण जैसे अनेकानेक लाभ है। विश्व के मूर्धन्य चिकित्सा शास्त्रीयों एवं विचारकों ने अपने अनुभवों के आधार पर इस तथ्य को स्वीकार किया है। आध्यात्मिक लाभों की चर्चा न की जाय तो भी स्थूल लाभ ही इतने अधिक है, जिन्हें देखकर प्रत्येक विचारशील को अपने जीवन क्रम में उपवास को अनिवार्य स्थान देना चाहिए।