Magazine - Year 1980 - Version 2
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Language: HINDI
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तात्कालिक नहीं दूरवर्ती हितों को प्रश्रय मिले।
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अनीति का तुरन्त लाभ मिलते देखकर प्रत्यक्षवादियों का कहना है कि ईमानदारी क्यों अपनायी जाय-उत्कृष्टता का समर्थन क्यों किया जाय? इससे तत्काल तो घाटा ही दीखता है फिर क्यों न उस रास्ते पर चला जाय जिससे कम समय एवं श्रम में अधिक लाभ पहुँचता हो। यह मान्यता एकाँगी, अधूरी एवं अविवेकपूर्ण है। दूरगामी एवं स्थायी परिणामों पर ध्यान दिया जाय तो स्पष्ट होगा कि उत्कृष्टता के पक्षधर हर क्षेत्र में प्रत्यक्षवादियों-अनीति के मार्ग पर चलकर तात्कालिक लाभ सोचने वालों की तुलना में कहीं अधिक सफल रहे है। भौतिक अथवा आध्यात्मिक दोनों ही क्षेत्रों में सफलता के शिखर पर जा पहुँचने वाले व्यक्ति उत्कृष्टता के न केवल समर्थक रहे है वरन् अपने प्रत्येक क्रिया-कलाप में व्यवहार में उसका समावेश किया।
नीति के मार्ग पर चलने वालों को अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ, मनोयोग एवं धैर्य तीनों की आवश्यकता पड़ती है। असफलताएँ नीति के अवलम्बन के कारण नहीं प्रस्तुत होती है बल्कि उनके मूल में इन तीनों का अभाव ही प्रधान कारण होता है। जिन्हें भौतिक सम्पन्नता ही अभीष्ट हो वे भी नीति पर चलते हुए श्रमशीलता, मनोयोग एवं धैर्य का आश्रय लेकर अपने उद्देश्य में सफल हो सकते है। भौतिक सम्पन्नता में ईमानदारी बाधक सिद्ध होती है, यह मान्यता उन लोगों की है जो पुरुषार्थ से जी चुराते है। ऐन-केन प्रकारेण कम समय एवं कम श्रम में अधिक से अधिक लाभ उठाने की प्रवृत्ति से ही अनीति को प्रोत्साहन मिलता तथा लम्बे समय तक सफलता के लिए इन्तजार करते नहीं बनता है। फलतः थोड़ा तात्कालिक लाभ भले ही उठा लें-महत्वपूर्ण उपलब्धियों से सदा वंछित ही बने रहते है। देखा जाय तो भौतिक सम्पन्नता के क्षेत्र में शिखर पर वही पहूँचे है जो नीति के-ईमानदारी के समर्थक रहे है-पुरुषार्थी रहे है। विश्व के मूर्धन्य भौतिक सम्पन्न व्यक्तियों के जीवन क्रम पर दृष्टिपात करने पर यह तथ्य और भी स्पष्ट हो जाता है। ईमानदारी, पुरुषार्थ के मनोयोग एवं असीम धैर्य के सहारे ही वे सामन्य स्तर से असामान्य स्थिति तक जा पहुँचे।
अमेरिका के प्रसिद्ध पूँजीपति राकफेलर ने एक छोटे से व्यापारी के रुप में अपना जीवन आरम्भ किया। घर की स्थिति ऐसी नहीं थी कि व्यापार में पूँजी का योगदान मिल सके। पर अपनी प्रामाणिकता, गहन अभिरुचि एवं नम्रता के कारण एक मित्र से इतना सहयोग प्राप्त करने में सफल हो गये कि किसी प्रकार छोटा-मोटा व्यवसाय आरम्भ हो सके। लगन, पुरुषार्थ के कारण वे आगे बढ़त गयें प्रामाणिकता क कारण उन्हें कर्ज के रुप में अन्य बड़े व्यापारियों का भी योगदान मिलने लगा। निर्धारित समय पर उधार का पैसा मिल जाने के कारण राकफेलर की प्रामाणिकता व्यवसाय क्षेत्र में बढ़ती गई। अपनी श्रमशीलता, असाधारण मनोयोग एवं चरित्रनिष्ठा के कारण राकफेलर का लाभ इन दिनों यूरोप के मूर्धन्य सम्पन्नों में गिना जाता हैं। राकफेलर की ‘एक्सन’ एवं स्टेर्न्डड तेल कम्पनियाँ आज संसार के सबसे बड़े 500 निगमों में से एक गिना जता है। एक प्रेस इन्टरव्यू में अपनी सफलता का रहस्योद्घाटन करते हुए उन्होंने कहा कि ‘विषम परिस्थितियों, असफलताओं में भी हमने अपना धैर्य कभी नहीं खोया। अपनी प्रामाणिकता पर कभी आँच नहीं आने दिया। अपने उपर आत्म-विश्वास बना रहा। यही हमारी सफलता का रहस्य है।
कितने ही व्यक्ति सम्पन्न बनना चाहते है। अभीष्ट लक्ष्य के प्रति आरम्भिक उत्साह भी रहता है, पर छोटी-मोटी असफलताओं के कारण प्रयास छोड़ बैठते है। इतना धैर्य नहीं रहता कि असफलता से प्रेरणा ले-कारणों की ढूँढ़ खोज करें तथा नये सिरे से प्रयत्न आरभ्भ कर दें। अप्रामाणिकता भी असफलता का कारण बनती है। झूँठ फरेव के बलबूते थोड़ा लाभ आरम्भ में उठाया तो जा सकता है, पर जन-सामान्य को मालूम पड़ जाने पर विश्वास समाप्त हो जाता है तथा वह व्यक्ति सहयोग से वंचित रह जाता है। अनीति पूर्वक सफलताएँ प्राप्त करने के इच्छुक अन्ततः घाटे मं ही रहते है। महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ तो ईमानदार, श्रमशील व्यक्ति के ही हिस्से में आती है।
एक युवक ने जब हैनरी फोर्ड से कहा कि “मैं भी हैनरी फोर्ड के समान सम्पन्न बनना चाहता हूँ। कृपया मेरा मार्ग दर्शन कीजिये। हैनरीफोर्ड ने जो उत्तर दिया वह हर भौतिक महत्वाकाँक्ष्ज्ञी को प्रेरणा दे सकता है। फोर्ड ने उत्तर दिया “किसी भी कीमत पर अपना प्रामाणिकता बनाये रखो, मनोयोग एवं सतत् श्रम का अवलम्बन लेकर व्यवसाय के क्षेत्र में आगे बढ़ सकते हो।” एक सामान्य से आँटोबाईल मैंकेनिक के रुप में फोर्ड ने अपना जीवन क्रम आरम्भ किया तथा पुरुषार्थ के सहारे सफलता की चोटी पर जा पहुँचे। फोर्ड को आँटोमोबाईल उद्योग का संस्थापक माना जात है। मोटर कारखाना की स्थापना के समय उसकी इच्छा थी कि इतनी सस्ती कारों का निर्माण करे कि प्रत्येक कर्मचारी को उपलब्ध हो सके। सन् 1930 में फोर्ड कम्पनी से निकलने वाली कार की कीमत मात्र 300 डाँलर थी। फोर्ड कम्पनी के सामने हर समय 70,000 कारें खड़ी रहती है जो मात्र कम्पनी में कार्य करने वाले कर्मचारियोँ की है। सन् 1930 में फोर्ड कम्पनी में लगी पूँजी आठ अरब रुपयें आँकी गई थी। 1937 में मृत्यु के समय ‘हैनरी’ विश्व के सबसे सम्पन्न व्यक्ति माने गये। फोर्ड शान्ति के पक्षपाती थे। उन्होंने फोर्ड फाउन्डेशन की स्थापना द्वारा अपने करुण हृदय का परिचय दिया। खरबों डालर की राशि से स्थापित यह संस्था मानवतावादी कार्यों में लगी है।
अमेरिका के ही जान जेकोव एस्टर को कितनी ही असफलताओं का सामना करना पड़ा, पर कभी भी उन्होंने अपना सन्तुलन नहीं खोया। परिश्रम एवं ईमानदारी के प्रति अटूट निष्ठा ने उन्हें अमेरिका के मूर्धन्य पुँजीपतियो की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया। लम्बी चौड़ी योजनाएँ बनाने की अपेक्षा उन्होंने व्यवसाय के क्षेत्र में एक सामन्य से व्यापारी के रुप में चाय एवं चन्दन खरीदने बचने का कार्य छोटे पैमाने पर आरम्भ किया व्यापारिक क्षेत्र में अपनी ईमानदारी के कारण वे सदा विख्यात रहे। फलतः जन-सहयोग भी मिला। इस छोटे व्यापारी से व्यापार से एस्टर ने क्रासिक विकास करते हुए अमेरिका में बहुत बड़ा व्यापारिक साम्राज्य स्थापित कर लिया। व्यापार के विस्तार होते देखकर उन्होंने न्ययाक्र का एक बड़ा भाग भाग खरीद लिया तथा नियन्त्रण के लिए स्थायी केन्द्र की स्थापना की। इन दिनों अनेकों देशों में उनका व्यवसाय फैला है।
ब्रिटेन के प्रसिद्ध कार निर्माता न्यूफील्ड एक सामान्य मैंकेनिक था। अपनी श्रमशीलता, लगन एवं प्रामाणिकताके कारण वह ब्रिटेन का सबसे बड़ा कार निर्माता बना। न्यूफील्ड का कहना है कि अपने भाग्य का निर्माण हमने पुरुषार्थ एवं चरित्रनिष्ठा के आधार पर किया है। असफलताओं से भी प्रेरणा लेकर मैं अपने लक्ष्य की ओर सतत् तत्पर रहा। फलतः वर्तमान स्थितिं तक पहुँच सका हूँ”
लम्बी-चौड़ी योजनाएँ बनाने की अपेक्षा अपने पास मौजूद साधनों को लेकर ही छोटे-मोटे कार्यो में जुट जाया जाय तो भी प्रगति का सशक्त आधार बन सकता है। परिस्थितियाँ अनुकूल होगी- साधनों का बाहुल्य होगा, तब व्यवसाय आरम्भ करेगे, यह सोचते रहने की तुलना में अपने अल्प साधनों को लेकर काम में जुट जाना कही अधिक श्रेयस्कर हैं। काम छोटा हो अथवा बड़ा उसमें सफलता के कारण साधना नहीं अथक पुरुषार्थ, लगन एवं प्रामाणिकता बनते है। देखा जाय तो विश्व के सभी मूर्धन्य सम्पन्न सामान्य स्थिति से उठ कर असामान्य तक जा पहुँचे। साधन एवं परिस्थितियाँ तो प्रतिकूल ही थी, पर अपनी श्रमनिष्ठा एवं मनोयोग के सहारे सफलता के शिखर पर जा चढ़ें। वे यदि परिस्थितियों का रोना रोते रहते तो अन्य व्यक्तियों के समान ही हाथ पर हाथ धरे बैठे रहते और सम्पन्न बनने की कल्पना में मन बहलाते रहते।
बाटा एक सामान्य मोची थाँ पैतृक सम्पत्ति के रुप में उसे जूते बनाने की कला प्राप्त हुई। जिस तल्लीनता के साथ वह जूते की मरम्मत करता था, वह देखते बनती थी। अपने काम एवं मजदूरी के प्रति इतना ईमानदार था कि ग्राहकों का ताँता लगा रहता था। उचित मजदूरी एवं निश्चित समय पर ग्राहकों को जूते मरम्मत करके देना उसकी विशेषता थी। इस लगन एवं प्रामाणिकता के कारण ही उसकी ख्याति हुँई। व्यवसाय बढ़ने लगा। कार्य के विस्तार को देखते हुए उसे अन्य सहयोगी रखने पड़े और अन्ततः कम्पनी का रुप देना पड़ा। “बाटा शू कम्पनी’ आज अपनी प्रामाणिकता के कारण विश्व विख्यात है। गई-गुजरी स्थिति से उठ कर अश्वपति की श्रेणी में जा पहुँचने वाले विश्व विख्यात ‘बाटा शू कम्पनी’ के निर्माता का जीवन वृत्तान्त भौतिक सम्पन्नता प्राप्ति के इच्छुक व्यक्तियों को प्रेरणा दे सकता है।
गली-गली में जाकर दैनिक उपयोगी छोटे-छोटे सामान बेचने वाले ‘बिरला’ किस प्रकार भारत के मूर्धन्य व्यवसायी बने, इस रहस्य को जानने के इच्छुक व्यक्तियों को उनके खर्च, व्यवसाय, विस्तार को नहीं उन विशेषताओं का अध्ययन करना होगा जिनके बलबूते वैभव के स्वामी बने। उनकी श्रमनिष्ठा एवं प्रमाणिकता उल्लेखनीय थी। असफलताओं में भी उन्होनें निराशा को पास नहीं फटकने दिया। चरित्रनिष्ठा पर आँच नहीं आने दी। फलस्वरुप व्यवसाय फूलता फैलता गया। सम्पूर्ण भारत में इन दिनों विरला का व्यवसाय छाया हुआ है।
उत्कृष्टता के अनेकानेक पक्ष है। नीति का अवलम्बन उसका एक पक्ष है। इसका अवलम्बन लेकर प्रामाणिकता श्रमशीलता एवं मनोयोग के सहारे किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ा जा सकता है। जिन्हें भौतिक सफलताएँ ही अभीष्ट हो, वे भी इन विशेषताओं का अवलम्बन लेकर अपने लक्ष्य में सफल हो सकते है। उपरोक्त उदाहरण इस तथ्य के प्रमाण है जो इस दिशा में सफलता के इच्छुक व्यक्तियों का मार्ग-दर्शन करने में समर्थ है।