Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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देवपूजा का स्वरूप और प्रतिफल
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भगवान एक है। उन्हीं की विशिष्ट विभूतियों को देव नाम दिया गया है। ऐसा नहीं समझा जाना चाहिए कि देवता कोई व्यक्ति विशेष हैं। भगवान की सत्ता में न कोई साझीदार है और न उनका कोई सहायक। इस समूची सृष्टि का कर्ता, धर्ता, हर्ता वह एक ही है। उसके विभिन्न गुणों को विभिन्न देवताओं के नाम से ऋषियों ने पुकारा है, कहा है—
“एको विश्वस्य भुवनस्य राजा”
अर्थात्- एक ही परब्रह्म को विद्वानों ने अनेक नामों से सम्बोधित किया है।
“सर्ववल्विद मेवाहं, नान्यदसि सतानम्”।
—देवी भागवत् 1।15।55
महाभाग्याद् देवलाया एक आत्मा बहुधा स्तूयते।
—निसक्त 7।1।4
अर्थात्- एक ही परमात्मा को बहुत देवताओं के नाम से संबोधित किया जाता है।
देवताओं के अनेक नाम हैं। यहां तक कि उन्हें 33 या 33 कोटि भी कहा है। इनमें पांच प्रमुख हैं- (1) सूर्य (2) गणेश (3) ब्रह्मा (4) विष्णु (5) महेश।
यह शरीर के पाँच तत्वों अथवा चेतना के पाँच प्राणों के प्रतीक माने जाते हैं। सूक्ष्म शरीर में पंचकोश हैं। ज्ञानेन्द्रियाँ पाँच हैं और कर्मेन्द्रियाँ भी पाँच हैं। इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए इन महान शक्ति स्रोतों को देव संज्ञा दी गई हैं।
महत्वपूर्ण तथ्यों का स्मरण दिलाने के लिए उनके प्रतीक बनाने की परम्परा है। ऐसा भी है कि उनसे हमें लाभ मिलता है उनके प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए उनकी प्रतीक पूजा की जाती है। इन सब बातों का समन्वय करते हुए देव पूजा का प्रचलन हुआ है।
पंचतत्वों का हम सदुपयोग करें, उन्हें अनावश्यक मात्रा में नष्ट न करें। मलीन न होने दें। जब जितने उपयोग की आवश्यकता है तब उन्हें बरतने में कृपणता भी न करें? आदि बातों की स्मृति दिखाने के लिए पंच देव पूजा का विधान है।
मिट्टी, पानी, हवा, गर्मी, आकाश इन पंच देवों की सहायता से खोया हुआ आरोग्य फिर से प्राप्त हो सकता है। यह विद्या प्राकृतिक चिकित्सा की पुस्तकों में विस्तार पूर्वक बताई गई है। साथ ही वह भी कहा गया है कि इनके सदुपयोग करने की प्रक्रिया अपनाते हुए प्राकृतिक जीवन जिया जाय तो निरोग एवं दीर्घजीवी रहा जा सकता है।
पाँच प्राण पाँच सद्गुणों के प्रतीक हैं- श्रम, निष्ठा, मनोयोग, साहस, सज्जनता एवं उदारता। यह पाँच गुण पाँच प्राणों से संबंधित हैं इन्हें व्यावहारिक अध्यात्म भी कह सकते हैं। पाँच उप प्राणों में अहिंसा, सत्य, अतृन्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह आदि सद्गुणों का समावेश है। इनकी आराधना की जाय अर्थात् जीवन क्रम में इनका प्रयोग समावेश रखा जाय तो इनका प्रतिफल हाथों-हाथ व्यक्तित्व को सुविकसित रूप में उपलब्ध होता है। यह शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य संवर्धन की मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है।
गणेश सद्बुद्धि के देवता हैं सूर्य प्रखरता तेजस्विता के। ब्रह्मा सृजन प्रिय हैं। विष्णु परिपोषण के। शिव परिवर्तन एवं अनुशासन के। यह सभी प्रयास ऐसे हैं जिनके लिए सदा सर्वदा सचेष्ट रहना चाहिए। विद्या बुद्धि को विकसित करने के लिए अध्ययन, परामर्श एवं अनुभव का सम्पादन किया जाता है। यह गणेश पूजा हुई। साहसिकता, बलिष्ठता, प्रतिभा आदि को तेजस्विता कहते हैं। अपने व्यक्तित्व में इन विभूतियों का समावेश करना सूर्य पूजा है। हमारी कार्य पद्धति सृजन प्रिय हो। निर्माण कार्यों में समुचित अभिरुचि का होना विष्णु पूजन है। अनुशासन का पालन समयानुसार परिवर्तन की सूझ-बूझ, यह शिव आराधना है। दैवी गुणों की जीवन में समाविष्ट करना ही देव पूजा है। सद्गुणों की संख्या और प्रकृति असीम है पर उनमें पाँच प्रमुख हैं। उन्हें अपनाते हुए हम देव पूजा का सत्परिणाम निरन्तर प्राप्त करते रह सकते हैं।