Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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परम सत्ता के सन्देश वाहक देव−दूतों के दिव्य दर्शन
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देवदूत अनेक बार मनुष्यों को चेतावनी, सत्परामर्श, भविष्यवाणी बताते एवं मनुष्यों को अपने अदृश्य रूप का प्रत्यक्ष दर्शन कराते हैं। उनके बताये संकेतों पर चलकर कितने ही धर्मप्रेमी लाभ भी उठाते हैं। ऐसे घटनाक्रमों में से कुछ प्रामाणिक प्रसंग बहुचर्चित भी रहे हैं एवं कौतूहल के विषय भी।
यूरोप में दैवी सत्ता के अस्तित्व एवं उनके चमत्कारों पर विश्वास करने वाले सर्वाधिक व्यक्ति पाए जाते हैं। कुछ तथ्यान्वेषियों द्वारा पश्चिम जर्मनी के बर्लिन शहर में 5 वर्ष पूर्व किये गये पर्यवेक्षणों से पता चला है कि वहाँ की 53 प्रतिशत जनता अलौकिक चमत्कारों पर पूरी तरह विश्वास करती है।
एक घटना 1947 की है। ब्रैसिया (इटली) से पाँच किलोमीटर दक्षिण में ‘मौन्टीकियारी’ नगर में पैरिनागिली नाम की एक परिचारिका (नर्स) रहती थी। अचानक ही पैरिना की दृष्टि एक हवा में तैरती हुई महिला पर पड़ी। अस्पताल के प्रार्थना स्थल की ओर से आती इस अजनबी महिला की छाती पर तीन तलवारें गढ़ी हुई थीं। लेकिन खून का नामों निशान तक नहीं था। इस भयावह दृश्य को देखकर साथ चल रहे अनेकों व्यक्ति चीख उठे और चीत्कार करते हुये इधर−उधर दौड़ते बने। पैरिना नहीं घबराई। अपने सत्साहस का परिचय देते हुये उसे दिव्य प्रतिमा से उसके प्रकटीकरण का कारण पूछने लगी। प्रत्युत्तर में उस विलक्षण प्रतिभा ने बड़े ही दुःखद शब्दों में कहा कि तप, त्याग और प्रार्थना का व्रत जीवन में निरन्तर बना रहना चाहिए। इसका अभाव ही आज की विपन्न परिस्थितियों का मूल कारण है।
13 जुलाई, 1947 को यह घटना पुनः घटी। अबकी बार तलवार के स्थान पर तीन फूल उसके पास थे। जिनका रंग सफेद, लाल और पीला था। पैरिना ने जब इस प्रेतात्मा से इस रहस्य के विषय में पूछा तो श्वेत वस्त्रधारी महिला ने बताया कि “मैं ईसा मसीह की ही नहीं वरन् जगत जननी हूँ।” 13 जुलाई को हर वर्ष “रोजा मिस्टिका” के रूप में मनाया जाना चाहिए जिससे लोगों में धार्मिकता का भावनाएँ जग सकें।” तब से निरन्तर यह दिन उसी रूप में मनाया जाता है।
(फेथ हीलिंग) रोगोपचार में भी इस दिव्यात्मा की भूमिका बड़ी ही विलक्षण रही है। अभी भी मौन्टीकियारी के निवासियों का ऐसा विश्वास है कि सामूहिक प्रार्थना के बल पर इस शक्ति का आह्वान करके अनेकानेक आधि−व्याधियों से मुक्ति पाना सम्भव है। इसी घटना के परिणाम स्वरूप रोम तथा इटली के लोगों ने सामूहिक उपासना तथा धर्मानुष्ठानों को जीवन का अति आवश्यक अंग मानते हुए अपनाया एवं अपने पूर्व जीवन-क्रम को आमूल-चूल बदला है।
स्पेन में आइबोरा नामक एक स्थान है। जहाँ पर स्मृति अवशेष के रूप में रखा हुआ एक रक्त रंजित वस्त्र आज भी लोगों की श्रद्धा का प्रतीक बना है। वर्ष में हर 16 अगस्त को यहाँ सामूहिक उपासना का क्रम चलता है। धर्मानुष्ठान का यह उपक्रम ईसवी शताब्दी 1010 से प्रचलित है। लोगों का अभिमत है कि यह वस्त्र किसी बलिदानी शहीद का है जो अपने धर्म की रक्षा हेतु प्राण न्यौछावर कर चुका है। जब सामूहिक उपासना का क्रम चलता है तो यह रक्त अचानक ही खौलने लगता है। घटनाक्रम की सत्यता का गहनता से अवलोकन करते हुये पोप चतुर्थ ने इसे सार्वजनिक साधना का केन्द्र घोषित किया। लोग बड़ी श्रद्धा से आते एवं यहाँ उपासना कर प्राण शक्ति लेकर जाते हैं।
“मिरेकल्स आफ दी गौड्स” के लेखक एरिक बॉन डैनीकेन ने विश्व के लगभग सभी तीर्थ स्थानों को बड़ी गहनता के साथ अवलोकन किया है। मिलान के दक्षिण में सैन डैमियानो एक ऐसा तीर्थ स्थल है जहाँ पर अभी भी सूर्य की देवी की उपासना का उपक्रम चलता है। जप पुरश्चरण की ध्वनि बड़े ही लयबद्ध ढंग से धीमे स्वर में यात्रियों को सुनाई देती है। लोगों का ऐसा विश्वास है कि सूर्य की देवी की उपासना से रोगोपचार में काफी सफलता मिलती है। वहाँ के पुरोहित अध्यात्मिक चिकित्सा को अत्यधिक महत्व देते हैं। प्रत्येक गुरुवार को “मामारोजा” जो वहाँ की प्रसिद्ध देवी समझी जाती है, उपस्थित श्रद्धालुओं को अभिनय प्रेरणा प्रदान करती है। 17 नवम्बर 1970 को वहाँ उपस्थित सैकड़ों व्यक्तियों ने सूर्य-चिकित्सा से लाभ उठाया। इस घटना का उल्लेख “औब्जरवेटरे रोमनो” में हुआ है।
जिन पुण्य आत्माओं ने अपने धर्म और संस्कृति की सुरक्षा हेतु अपने को बलिदान कर दिया उनकी प्रेतात्माएँ आज भी लोगों के लिए प्रेरणाप्रद बनी हुई हैं। 23 फरवरी 1238 को मुस्लिम सैनिकों ने स्पेन की कोडोल पहाड़ी पर निवासरत पुरोहितों की हत्या कर दी और उन्हें अलग−अलग कपड़ों में बाँधकर फेंक दिया। दर्शकों का कहना है कि कोई भी दुराचारी प्रवृत्ति का मनुष्य उनके दिव्य प्रकाश के पास जाते ही विकलाँगता का शिकार होता तथा बेहोश होकर गिर पड़ता है। डैरोका धर्मस्थल पर प्रतिष्ठापित इन छः पुरोहित सैनिकों की रक्तवेदी आज भी पूरे स्पेन के लोगों के लिए श्रद्धा का विषय बनी हुई है। प्रायश्चित करने एवं उपासना कृत्य अपनाने पर दुराचारियों को भी क्षमा मिल जाती है एवं थोड़ा कष्ट भुगतने के बाद वे स्वस्थ हो जाते हैं।
अपर ऐल्सेक (फ्रांस) में ट्रौइस—ऐपिस के निकट एक धार्मिक प्रवृत्ति के किसान की बड़े ही दर्दनाक ढंग से हत्या कर दी गयी। 3 मई 1491 को डैटर स्कोर नाम का एक लुहार वहाँ से गुजरा तो उसे नारी स्वरूप शक्ति का दिव्य दर्शन हुआ जिसके एक हाथ में श्वेत हिम वर्त्तिका तथा दूसरे हाथ में हरीतिमा का प्रतीक अनाज की तीन बालियाँ थी। उसका कहना था कि यदि अपराधों की गति ऐसी ही रही तो लोगों को प्राकृतिक प्रकोपों का शिकार बनना पड़ेगा। दुर्भिक्ष से लेकर अनेकानेक बीमारियाँ फैलेंगी। ट्रौइस−ऐपिस में ऐसा ही हुआ और वहाँ के लोगों को बड़ी ही मुसीबतों का सामना करना पड़ा। तभी से एल्सेक को वहाँ के एक सुप्रसिद्ध धर्म स्थल के स्वरूप में माना जाने लगा है। भारत की ही तरह वहाँ भी वार्षिक मेले लगते हैं एवं नित्य लोग दर्शन कर देवदूतों के सन्देश को दुहराते हुए संकल्प लेकर जाते हैं।
धार्मिक भावनाओं से ओत-प्रोत लोगों को ईश्वर ने प्रत्यक्ष रूप से अनुग्रहित किया है। जैसा कि अनेकों उदाहरणों से प्रकट होता है। फ्रांस में बैसंकन नाम का एक नगर है। 3 दिसंबर 1712 को वहाँ के मैगाफोलिस नामक मन्दिर में एक घटना घटी। उस समय पुजारी के अतिरिक्त स्थानीय लोग भी 10 हजार की संख्या में उपस्थिति थे। उपस्थित जन समुदाय ने प्रातःकाल 8 बजे विशालकाय आकृति वाले मनुष्य को हवा में तैरते हुये देखा। उसने बड़े तेजी के साथ तीन आवाजें निकाली “मनुष्यो, मनुष्यो, मनुष्यो”! तुम्हें अपनी रीति−नीतियों को सही ढंग से निर्धारित करना चाहिए। अन्यथा विपत्तियों का सामना करना पड़ सकता है।” दृश्य को देखने वालों का ऐसा विश्वास है कि यह दिव्य ज्योति कोई दिव्य चेतना का ही सन्देश पहुँचाने आई है। अपराधों में वृद्धि के परिणाम स्वरूप ही ऐसा हुआ है। भय से आक्रान्त होकर कुछ की मृत्यु तो तत्काल हो गयी। कुछेक ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए धार्मिक कृत्यों की परम्परा को पुनः आरम्भ कर दिया। घनघोर वर्षा तथा भूकम्प के कारण पूरा नगर नष्ट हो चुका था लेकिन तीन इमारतें सुरक्षित बच गयीं। जहाँ पर उक्त धर्मकृत्यों को पूरा किया गया। बैसंकन में उस समय से ही अपनी चिर पुरातन मान्यताओं को पुनः स्थापित करने हेतु उत्साहवर्धक प्रयास जारी हैं।
ये कतिपय उदाहरण दैवी सत्ता के अस्तित्व के परिचायक तो हैं ही, यह भी प्रामाणित करते हैं कि समय-समय पर परम सत्ता इनके माध्यम से जन-जन को चेतावनी देती है। यदि समय रहते अपनी जीवन पद्धति बदल ली जाय, आचरण में परिवर्तन लाया जा सके तो दैवी प्रकोपों से बचा एवं अन्यों को बचाया जा सकता है।