Magazine - Year 1985 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
अन्तर्ग्रही सुविज्ञों का पृथ्वी पर आगमन
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
पृथ्वी पर अन्य लोकवासियों के आवागमन के प्रमाण चिन्हों में उड़नतश्तरियों की चर्चा होती है। इन दिनों प्रति रविवार को टेलीविजन पर एक सीरियल ‘प्रोजेक्ट यू. एफ. ओ.’ भी प्रसारित हो रहा है जो कथा प्रसंग नहीं अपितु ऐसी घटनाओं पर आधारित एक तथ्यपूर्ण फिल्म है, इससे वैज्ञानिकों की रुचि का पता लगता है। वस्तुतः प्रागैतिहासिक काल के चिन्ह जहां−तहां ऐसे पाये गये हैं जिन्हें किन्हीं अतिमानवों की कृतियाँ ही माना जा सकता है। सबसे बड़ी बात है मनुष्य के अन्तराल में पाई जाने वाली आदर्शवादी सदाशयता और योगाभ्यास के आधार पर अथवा कई बार बिना प्रयास के भी अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकसित होना। यह सभी बातें ऐसी हैं जो डार्विन की विकास थ्योरी से तालमेल नहीं बिठाती। क्रमिक विकास का सिद्धान्त मनुष्येत्तर छोटे जीव−जन्तुओं पर तो किसी कदर लागू हो सकता है, पर मनुष्य पर नहीं। उनकी मानसिक स्थिति ही असाधारण नहीं है वरन् भाव संरचना भी ऐसी है जिसे वंशानुक्रम प्रवाह से उपलब्ध हुआ सिद्ध करना कठिन है। यह स्वउपार्जित भी नहीं है। क्योंकि जिन परिस्थितियों में मनुष्य रहता है उसमें ऐसी गुंजाइश है नहीं कि आदर्शवादी दृढ़ता को इतने क्रमबद्ध ढंग से नियोजित किया जा सके। मनुष्य प्राणी समाज में अनेक दृष्टियों से एक मौलिक संरचना है। उसमें शारीरिक और मानसिक क्षेत्र में ऐसी विलक्षणताएँ बीज रूप में विद्यमान हैं कि उनसे विकास का तनिक सा प्रयास करने पर ही वह अपनी विलक्षण विभूतियों का परिचय देने लगता है। यह क्यों है? इसका उत्तर वंशानुक्रम परम्परा के आधार पर दिया जा सकना शक्य नहीं है।
अध्यात्मवादी इस रहस्य का समाधान इस प्रकार करते हैं कि मनुष्य दैवी परिवार का एक घटक है। वह देवताओं की सन्तति है। पुरातत्व वेत्ता और जीवन विज्ञानी ऐसा ही कुछ सोचते हैं कि मानवी संरचना मात्र रासायनिक पदार्थ की परिणति नहीं है कि वे विकास क्रम को नभचरों एवं जल थल में विचरण कर सकने वाले पक्षियों से आगे बढ़ने में अत्यन्त कठिनाई अनुभव करते हैं। वे जीव विज्ञानी भी अब कुछ इसी तरह से सोचते हैं कि मनुष्य स्तर का जीवन किसी अन्य ग्रह से धरती पर उतरा है। ग्रह-नक्षत्रों को सर्वथा रासायनिक संरचना नहीं माना जाता है वरन् इस मान्यता को बहुत हद तक सही माना जाता है कि पृथ्वी से भी पुरानी और विकसित सभ्यताएँ इस ब्रह्माण्ड के कितने ही तारकों में विद्यमान रही होंगी।
इस दिशा में विशिष्ट प्रमाण वे अवशेष हैं जो उड़न−तश्तरियों के धरती पर गिरने के उपरान्त हस्तगत हुए हैं। चमकने और घूमने वाले और लुप्त होने वाले घटकों को प्रकृति के चमत्कार एवं मानवी दृष्टि भ्रम कहा जाता है पर उन अवशेषों को क्या कहा जाय जो टूटकर धरती पर गिरे हैं। इतना ही नहीं ऐसे प्राणियों के अस्तित्व को भी एक विचारणीय रहस्य माना गया है जो उड़न तश्तरियों के साथ पृथ्वी पर आये किन्तु परिस्थितियाँ गड़बड़ा जाने से वापस न लौट सके। यह मान्यता इसलिए और भी पुष्ट होती है कि इन अवशेषों और आगन्तुकों को जितने देखा या हस्तगत किया है उन्हें इस संदर्भ की कोई बात न कहने के लिए के प्रतिबन्धित किया गया है। हो सकता है कि मनुष्य कृत अन्तरिक्षीय खोज में इन उपलब्धियों से कुछ ऐसे सूत्र हाथ लगे जो अन्तर्ग्रही आवागमन संबंधी तथ्यों का कोई रहस्योद्घाटन कर सकें और मानवी प्रयासों में सहयोगी सिद्ध हो सकें? इस संदर्भ में जहाँ भी जो जानकारियाँ मिली है, उन्हें इतना गोपनीय रखा गया है कि बात जहाँ की तहाँ रुक जाय। सहयोगी या विपक्षी उस संबंध में कोई सुरक्षा हस्तगत न कर सके।
अमेरिका के न्यू मैक्सिको क्षेत्र में सन् 1946 से 1948 तक इतनी उड़न तश्तरियाँ देखी गईं कि इस बात को आश्चर्यजनक माना गया कि संसार के अन्य स्थानों की अपेक्षा यह अभिवर्धन लगातार एक ही क्षेत्र में इतना अधिक क्यों होता है। अनुमान लगाया गया कि लुप्त प्रायः मय सभ्यता के पुरातन अवशेष इसी क्षेत्र में सर्वाधिक पाये गये हैं। हो सकता है उस सभ्यता का प्रतिनिधित्व करने वालों का संपर्क अभी भी उस क्षेत्र से बना हुआ हो।
जुलाई 1947 में एक उड़नतस्तरी पृथ्वी से टकरा कर गिर पड़ी थी। इन्हीं दिनों अमेरिकी गुप्तचर विभाग को अन्तरिक्ष में ऐसी ही विचित्र वस्तुओं से पाला पड़ा था। इसलिए गश्त तेजकर दी गयी ताकि वस्तुस्थिति का पता लगाया जाय। 25 जून को इससे पहले डाक्टर आर. एफ. सेन से बाबर ने ऐसी घटना पहले भी देखी थी। उनने इस संबंध में कितने ही अन्य प्रत्यक्ष दर्शियों से पूछताछ की थी। 26 जून को ऐसा ही एक अद्भुत प्रमाण कैंटकी के डाक्टर लियो आरगिह ने देखा। 27 जून को मेजर जार्ज विलिवाक्स ने उसे और भी नजदीक से देखा। डा. विलिमोर की धर्मपत्नी ने भी उसे पास से देखा। इस संदर्भ में जो ऊहापोह हुआ उसके एक सप्ताह के तारतम्य का सिलसिला जोड़ते हुए” रीजवेल के स्थानीय संवाददाता ने खबर को प्रकाशनार्थ भेजने की जैसे ही तैयारी की वैसे ही उसके पास प्रतिबंध पहुँचा कि खुफिया पुलिस नहीं चाहती कि यह समाचार प्रकाश में आये। यह मामला टाप सीक्रेट का है। इसी प्रकार की पाबन्दी वायु सेना पर भी लगा दी गई और कहा गया कि वे इस संदर्भ में किसी से कुछ न कहें।
दूसरे दिन सरकार की ओर से एक फौजी दफ्तर में प्रेस कानफ्रेन्स बुलाकर इतना भर कह दिया गया कि “वह एक मौसमी आँकड़े एकत्रित करने वाला गुब्बारा भर था।” पर इस संबंध में कोई प्रकाश न डाला गया कि जो मलबा फैजिनको में भर−भर कर ले जाया गया था। उसका क्या हुआ। ब्रिटेन की रॉयल फोर्स से संबंधित एक अधिकारी ने तो इस पर भी कह दिया कि एक उड़नतस्तरी ‘रायबेल’ क्षेत्र में गिरी है।
इसके अतिरिक्त प्रत्यक्षदर्शी गवाहों का तांता लगा रहा। श्रीमती बैनेट ने कहा उनने वह तश्तरी जमीन से टकराती स्वयं देखी है और उसमें कुछ मृत प्राणी भी थे।
एक दूसरी सूचना के अनुसार 1947 में सेन्ट आगिस्टियान के मैदान में एक उड़नतस्तरी गिरी थी जिसमें 16 मृत और 1 जीवित प्राणी भी थे। इस सूचना का विस्तृत विवरण स्प्रिंग फील्ड नामक जासूस ने एकत्रित किया था, किन्तु उसे भी यह रहस्य प्रकट न करने की हिदायत कर दी गई।
इन प्रतिबंधों के बावजूद एक सैनिक ने अपने बेटे को जो पत्र लिखा था उसमें गिरे हुए मृतकों तथा जीवितों के संबंध में विस्तृत जानकारी दी। उसमें प्राणियों को चार फुट का बताया गया था और शरीर बलदार होने के कारण किसी प्रकार की पोशाक न पहने होने का उल्लेख किया गया था। यह पत्र अखबारों के हाथ लग गया और उसकी चर्चा जनता की जानकारी तक पहुँची। किन्तु उसके बाद यह पता नहीं चला कि उस मलबे का मृत एवं जीवित शरीरों का क्या हुआ।
यह एक विवरण है जिससे कुछ घटनाओं पर प्रकाश पड़ता है। रूस में, दूसरे देशों में पर्वतों, जंगलों या जलाशयों में भी ऐसी घटनाएँ घटी हैं और उन्हें जिनने पाया हो उन्होंने ‘टाप सीक्रेट’ की तरह अपने कब्जे में कर लिया हो तो क्या आश्चर्य है।
फिर यह आवश्यक नहीं कि जो अन्तरिक्षीय विमान धरती पर आते हों वे सभी गिर पड़ते हैं। यह हो सकता है कि सकुशल वापस लौटने वालों और अपने जन्म नक्षत्रों में पृथ्वी की वर्तमान स्थिति के विवरण पहुँचाते हों।
निश्चय ही यह कोई आक्रामक योजना नहीं है जिससे हमें किसी अन्तर्ग्रही ही विपत्ति की आशंका से भयभीत होना पड़े। यह एक खोज प्रयास है जिसका उद्देश्य पारस्परिक आदान-प्रदान और सहयोग का सिलसिला आगे बढ़ाना ही हो सकता है। जैसा कि मय सभ्यता अथवा दूसरे अन्य अवसरों पर होता रहा है।