Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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अदृश्य परम सत्ता के अजस्र अनुदान
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विद्युतधारा बिजली के तारों में सतत् गतिशील रहती है। कोई उसे देखना चाहे तो देखा नहीं जा सकता किन्तु उसकी उपस्थिति का बोध देने वाले अनेकों ऐसे उपाय हैं जिनका सहारा लेकर यह प्रमाणित किया जा सकता है कि इन तारों में विद्युत प्रवाहित हो रही है। टेस्टर, टेस्ट लैंप, गैल्वेनोमीटर, ए-मीटर, मल्टीमीटर, वोल्टमीटर आदि से विद्युत के विद्यमान होने व उसके परिमाण की जानकारी प्राप्त कर अपनी मान्यता को पुष्टि भी दी जा सकती है। तारों को नंगे छूने पर बिजली का शॉक लगता है, यह सभी जानते हैं, तो भी कोई यह जानने के लिए ऐसा कोई प्रयास नहीं करता कि विद्युत इसमें है या नहीं? इसी प्रकार चुम्बकत्व एक शक्ति है जो कुतुबनुमा की सुई को उत्तर-दक्षिण दिशा में बने रहने को विवश करती है। उसे कहीं भी, किसी भी स्थान पर ले जाया जाय वह सदैव पृथ्वी के उत्तरी-दक्षिणी चुम्बकीय ध्रुवों की दिशा इंगित करती ही रहेगी। चुम्बकत्व को कोई आँखों से देखने का दुराग्रह करे तो इसे बाल-बुद्धि ही कहा जायेगा। परमात्मा की परम सत्ता इसी प्रकार एक अदृश्य सामर्थ्य है जो अन्तः की श्रद्धा एवं मन के विश्वास के एकीकृत रूप में व्यक्ति सत्ता के अन्दर सदैव विद्यमान रहती है, उसके कण-कण में ओत-प्रोत रहती है।
ऐसे अनेकों पौराणिक आख्यान धर्मग्रन्थों में मिलते हैं जो समय-समय पर सृष्टा के युवराज मनुष्य को दैवी सहायता मिलते रहने के रूप में प्रमाणित करते हैं कि आत्म-शक्ति के पूरक रूप में परमात्म शक्ति का अस्तित्व है। भले ही वह आँखों से दृष्टिगोचर न हो, उसकी अजस्र अनुकम्पा रूपी क्रिया-कलापों को ऐसे उदाहरणों में सहज ही देखा व उस सत्ता पर विश्वास किया जा सकता है।
द्रौपदी निस्सहाय अबला के रूप में कौरवों की राजसभा में खड़ी थी। दुराचारी कौरवों द्वारा चीर-हरण किए जाने पर किसी मानव ने नहीं, ईश्वरीय सत्ता ने उसकी लाज बचाई। दमयन्ती का बीहड़ वन में कोई सहायक नहीं था। सतीत्व पर आँच आने पर स्वयं भगवत् सत्ता उसकी नेत्रों से ज्वाला रूप में प्रकट हुई और उसने व्याध को जलाकर भस्म कर दिया। प्रहलाद को दुष्ट पिता से मुक्ति दिलाने एवं ग्राह के मुख में गज को छुड़ाने स्वयं भगवान आगे आए थे। निर्वासित पाण्डवों की रक्षा स्वयं भगवान ने की। अपने प्रिय सखा अर्जुन का रथ जोता, एवं गीता का उपदेश देकर धर्म-दर्शन का निचोड़ मार्गदर्शन हेतु प्रस्तुत किया, साथ ही महाभारत की भूमिका बनाकर सतयुग की स्थापना हेतु स्वयं भूमिका निभाई। नरसी भगत के सम्मान की रक्षा व मीरा को विष के प्याले से बचाने हेतु स्वयं भगवत् सत्ता ही आगे आई थी। भागीरथ के तप को सफल बनाने एवं पवन पुत्र हनुमान को उनकी शक्ति का बोध करा असम्भव पुरुषार्थ सम्भव कर दिखाने में परमात्म सत्ता ही मुख्य भूमिका निभा रही थी।
ये सभी उदाहरण प्राचीन पौराणिक गाथाएं कहकर झुठलाये जा सकते हैं और उनकी सत्यता से इनकार किया जा सकता है। हमारा देश सदियों से भाव प्रधान और आस्तिक-आध्यात्मिक विचारों की जन्मभूमि रहा है अतएव इन घटनाओं को किंवदंतियों की भी संज्ञा दी जा सकती है। किन्तु सनातन सत्ता को काल गति और ब्रह्मांड से सर्वथा परे है जिस तरह वह प्राचीन काल में थी, आज भी है और उसकी अदृश्य सहायताएं पूर्व से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण तक आज भी श्रद्धालु जन प्राप्त करते रहते हैं। टंग्स्टन तार पर धन व ऋण विद्युत धाराओं के अभिव्यक्त होने की तरह यह ईश्वरीय अनुदान जिन धाराओं के सम्मिश्रण से किसी भी काल में प्रकट होते रहते हैं वह हैं श्रद्धा और विश्वास। यह सत्ताएं जहाँ कहीं जब कभी हार्दिक अभिव्यक्ति पाती हैं परमेश्वर की अदृश्य सहायता वहाँ उभरे बिना नहीं रह सकती। इस तरह के सैकड़ों उदाहरण थियोसोफी के विद्वान सी. डब्ल्यू. लेडमीटर ने अपनी पुस्तक “इनविजिबल हेल्पर्स” नामक पुस्तक में दिये हैं जिनसे इस युग में भी अदृश्य दैवी सत्ता के अस्तित्व पर विश्वास हुए बिना नहीं रहता। लेडीरुथ मान्टगुमरी की पुस्तक ‘सत्य की खोज में’ 20वीं शताब्दी की सबसे आश्चर्यजनक घटना के रूप में सराक्यूज की रोती हुई प्रतिमा’ उल्लेख किया गया है। एक सरल हृदय अपंग किन्तु श्रद्धालु महिला की भाव-भरी प्रार्थना से विह्वल होकर उसकी प्लास्टर आफ पेरिस की प्रतिमा की आँखों से आँसू बह निकले। डच विद्वान फादर ए सोमर्स ने स्वयं मूर्ति और उसके आँसुओं का परीक्षण करने के बाद उसे विस्तार से समाचार पत्रों में छपवाया और एच. जोर्गन ने उसका अंग्रेजी रूपांतरण प्रकाशित कराया।
यह महिला थी एण्टोर्निएटा जिसका मार्च 1953 में विवाह हुआ था एवं उसकी आस्तिकता परक मनोवृत्ति होने के कारण उसकी एक भावुक मित्र ने उसे एक छोटी सी प्लास्टिक आफ पेरिस की ईसा की प्रतिमा भेंट स्वरूप दी थी। वह एक विडम्बना ही थी कि विवाह के बाद गर्भ ठहरने पर वह रोगी हो गयी एवं भ्रूण परिपक्व होने से पूर्व ही नष्ट हो गया। लड़की को भयंकर मिर्गी के दौरे पड़ने लगे और जब भी वह होश में रहती, व्याकुल मन से परमात्मा से यही गुहार करती कि “हे प्रभु! तू कितना निर्दयी है। क्या तुझे अपनी सन्तान की पीड़ा देखकर दुःख नहीं होता।” हर समय प्रार्थना के समय वह प्रतिमा को अपने से चिपटाए रखती। कुछ ही दिनों में देखा गया कि एण्टोर्निएटा के साथ-साथ प्रतिमा के आँखों से आँसू झरने लगे हैं। इसी प्रतिमा को “बीपिंग स्टेच्यू ऑफ सराक्यूज” नाम से प्रसिद्धि मिली एवं सात दिन यह घटनाक्रम चलता रहा, वैज्ञानिक परीक्षण चले एवं कोई भी इस पहेली को सुलझा न पाया कि इन आँसुओं का कारण क्या है?
परमात्मा सत्ता की ऐसी ही कृपा का परिचय 1874 में इंग्लैण्ड से न्यूजीलैण्ड जा रहे एक जहाज में घटी घटना से मिलता है। 214 यात्रियों को लेकर जा रहे इस जहाज को पेंदी में अचानक एक छेद हो गया। पानी तेजी से जहाज में भरने लगा। पम्पों से पानी निकाला जाने लगा पर पानी अन्दर आने की गति पम्पों की क्षमता से अधिक थी। अब तो लाइफ बोट से जितनी जान बचायी जा सकें, वे ही प्रयास किए जा रहे थे। तभी अचानक जहाज में पानी आना बन्द हो गया। सभी ने चैन की साँस ली। अगले बन्दरगाह पर जब मरम्मत के लिए जहाज रुका, तो पाया गया कि एक विशाल मछली की पूँछ जहाज की तली में हुए छेद में फँसी है एवं यह मृत मछली घिसटती हुई साथ चली आयी है। सारे यात्रियों ने इस मछली को परमात्मा का दूत माना। जिसकी वजह से उनकी जान बची।
महाभारत के युद्ध में घण्टे के नीचे दबे टिटहरी के बच्चे किस अदृश्य सत्ता के सहारे जीवित बने रहे, यह विज्ञान की भाषा में न समझा जा सकता है, न समझाया जा सकता है। कई बार ऐसे प्रसंग आए हैं जिनमें जलते हुए मकान में बच्चे सुरक्षित पाये एवं तपती ईंटों के लावें में पक्षी जीवित रह सकने में सफल हुए। इन्हें मात्र संयोग नहीं कहा जा सकता। परमात्म सत्ता के अदृश्य रूप को देखा नहीं जा सकता पर इन प्रमाणों को तो भली-भांति देखा व निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि कोई परोक्ष नियामक सुव्यवस्थित सत्ता है अवश्य जो समग्र सूक्ष्म क्रिया-कलापों पर अपनी दृष्टि रखती है एवं अपनी अनुकम्पा का परिचय समय-समय पर देती, आस्तिकता की भावना को दृढ़ बनाती है।
स्थूल बुद्धि के व्यक्ति उस सूक्ष्म को कहाँ स्वीकारते हैं? स्वीकार लें तो न केवल आध्यात्मिक अपितु हमारा व्यावहारिक संसार भी सुख-शान्ति से ओत-प्रोत हो सकता है। उचित और आवश्यक तो यह है कि उस दिव्य सत्ता के प्रति श्रद्धा भाव विकसित किया जाय तथा अपनी आत्मिक शक्ति का अभिवर्धन किया जाय।