Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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आध्यात्मिकता बनाम यथार्थता
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धर्म एवं अध्यात्म के सम्बन्ध में तत्त्वदर्शियों का यह अभिमत आरम्भ से ही रहा है कि इन अवलम्बनों को अपनाकर मनुष्य विचारशील, दूरदर्शी, सहृदय एवं परमार्थ परायण बन सकता है। यह उपलब्धियाँ ऐसी हैं जो किसी व्यक्तित्व को प्रामाणिक एवं प्रभावशाली बनाती हैं। जिनमें यह विशेषताएँ होंगी वे अपने कामों में सफल होंगे, प्रसन्न रहेंगे और दूसरों का भी मार्गदर्शन कर सकेंगे।
धर्म शास्त्रों में तत्व दर्शन का आधार यही बताया है और श्रेष्ठ व्यक्तित्व की लौकिक और पारलौकिक अनेकों सफलताएँ उपलब्ध होने का उल्लेख किया है।
किन्तु एक समय ऐसा भी आया जिसमें जादू चमत्कारों को धर्म के साथ जोड़ा गया और कहा गया कि उपासना करने वालों के आगे−पीछे देवी−देवता रहते हैं और वे अपने भक्तों की ही नहीं उनके संकेतों के अनुरूप शाप वरदान भी देते हैं। धार्मिकता की कसौटी किसी जमाने में चमत्कार दिखाने को माना जाने लगा। फलतः तन्त्र-मन्त्र जानने वाले और जादूगरी करामातें दिखाने वालों की बन आई। वे अपने को सच्चा और प्रभावशाली सिद्ध करने लगे।
कई गिरोहों ने ऐसे षड़यन्त्र बनाये, जिनमें वे किम्वदंतियां गढ़ते और उनकी अफवाहें फैलाकर भोले−भावुक धर्मभीरु लोगों को अपने सम्प्रदाय में सम्मिलित होने के लिए आकर्षित करते। यह कुचक्र पिछड़े हुए उन लोगों में अधिक सफल होता जो अनगढ़ मनोभूमि के लिये फिरते थे। देवी−देवताओं को प्रसन्न करने के लिए मन्त्र तन्त्रों की रहस्यवादी रीति−नीति अपनाने के अभ्यस्त थे। अफ्रीका की जन−जातियाँ धर्म का सीधा अर्थ चमत्कार दिखाना और देवी−देवताओं को वशवर्ती रखने की क्षमता में सम्पन्न होना माना जाता था। अभी भी वह स्थिति समाप्त नहीं हुई। शिक्षा और विचारशीलता बढ़ाने के साथ−साथ घटी भर हैं।
पुरातन काल के लब्ध प्रतिष्ठ अध्यात्मवादियों ने धार्मिकता की परिभाषा चरित्र निष्ठा के रूप में की है। और उसे चिन्तन की उत्कृष्ट एवं चरित्र की आदर्शवादिता के साथ सम्बद्ध किया है।
चीन में प्रचलित धर्म कन्फ्यूसियस की मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति के शुद्धाचरण से बढ़कर कोई रहस्य नहीं हो सकता। धर्म वही है जिसमें व्यक्ति को अपनी कर्त्तव्य परायणता का बोध होने लगे। ताओ ने जीवन पर्यन्त भावना क्षेत्र को अधिक रहस्यमय समझा और उन्हीं के अनुरूप लोगों को सदाचरण करने की बात को हृदयंगम कराते रहे। भारतीय साँख्य दर्शन की भाँति ताओ ने भी आत्मा की अमरता के सिद्धान्त को पूरी तरह अंगीकार किया है। ‘दी सीक्रेट आफ दी गोल्डन फ्लोवर’ में ताओ ने मिन और ऐंग यानी शिव शक्ति के सिद्धान्तों को प्रतिपादित किया है। आगे चलकर इसी को सी॰ जी॰ जुंग ने सविस्तार से विवेचन किया है। सादगी और समता उनके शिक्षण का केन्द्र बिन्दु रहा है। पहली शताब्दी में जब बुद्ध धर्म चीन में फैला तो ताओ धर्म के अनुयाइयों ने उसकी वास्तविकता समझी और तद्नुरूप एकीकृत होकर काम करने लगे।
यहूदी धर्म ने ईश्वरीय सत्ता को हिन्दुओं की भाँति स्वीकार किया है। कैबीलिस्ट और हैजीडिस्ट इसी के अंतर्गत आते हैं। बालरोमतोव इन्हीं धर्मों के अनुयायी थे जिन्होंने हिन्दू धर्म को समझा और उसी के अनुरूप लोगों को आचरण करने के लिए बाधित किया। आदर्श और सिद्धान्तों को ईश्वर पूजा से कम महत्व का नहीं समझा।
रविया सूफी धर्म में ऐसी सन्त महिला जन्मी जिसने धरती पर स्वर्ग के अवतरण की कल्पना को साकार रूप देने में अपना जीवन समर्पित कर दिया। आबू याजिद ने भले ही कोई किताब न लिखी हो पर लोगों के हृदय में आज भी उनकी प्रतिभा विराजमान है। ईश्वर जैसी ख्याति उन्हें मिली।
आदिवासियों और जन−जातियों में प्रचलित रहस्यवाद से उनके पुरोहित कितने लाभान्वित होते हैं और उनके शिष्य किस तरह उनका अनुगमन करते हैं। यह प्रलोभन दूसरे धर्मानुयायियों से न देखा गया, उनके अपने संस्थापकों की जादुई विशेषज्ञों की झड़ी लगा दी। जिनके यहाँ चमत्कारों का ज्यादा वर्णन होता था उनके पीछे भीड़ भी बहुत लगती थी और दान−दक्षिणा, पुजापा, भेंट, बलि का लाभ भी बहुत होता था। इस प्रतिद्वन्द्विता के फेर में आदर्शवादी धर्मों के अनुयायियों ने अपने अलग मत−मतान्तर जादुई ऋद्धि-सिद्धियां दिखाने और किसी को लाभ किसी को हानि पहुँचाने का दावा करके धाक जमाना आरम्भ कर दिया।
देखा जाता है कि बुद्ध काल में जो तंत्रवाद निरस्त हुआ था वह फिर दूसरे रूप में उबल पड़ा और धर्मों के साथ न्यूनाधिक मात्रा में रहस्यवाद जुड़ गया। इस विकृति के मिल जाने से धर्म धारणा जितना लाभ पहुँचा था उससे अधिक रहस्यवादी अन्ध−विश्वास अपने अनुयायियों को सिर पर चपेक देती थी।
आज हमारे सामने धर्म के साथ रहस्यवाद जुड़े होने से विकृति रूप का ही बोल−बाला है। किन्तु प्रसन्नता की बात है कि उनके अनुयायी और दूसरे समीक्षक यथार्थता को अपनाने और किम्वदंतियों को अविश्वस्त कहने का उत्साह प्रकट कर रहे हैं। धर्म का शुद्ध रूप जब प्रकट होगा तब उसे पुरातन काल जैसा श्रेय और सम्मान मिलेगा।