Magazine - Year 1985 - Version 2
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Language: HINDI
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मनुष्य हर परिस्थिति मैं ढल सकता है।
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मनुष्य के बराबर न कोई कोमल है, न कठोर। अभ्यास से वह कष्ट साध्य जीवन जी सकता है और उन्हीं परिस्थितियों में प्रसन्न भी रह सकता है। भगवान ने मानवी शरीर की संरचना इस प्रकार की है कि उसे जिस भी ढाँचे में ढाला जाय उसी में ढल जाता है। विलासी को अनेकानेक प्रकार की सुविधाएँ चाहिए। उनमें कमी पड़ने पर तिलमिलाते देखे गये हैं, पर ऐसे लोगों की कमी नहीं जो कठिनाइयों में रहने का अभ्यास कर लेने पर उसी में प्रसन्नता पूर्वक जीवन बिता देते हैं।
शून्य से नीचे रहने वाली ठंडक के क्षेत्र में ऐस्किमो जाति के लोगों की पीढ़ियाँ बीत गईं। उनने अपने आप को उन्हीं परिस्थितियों में ऐसा ‘फिट’ कर लिया है कि छोड़ने का आग्रह भी स्वीकार नहीं करते। अपने को औरों से कम सुखी भी नहीं मानते।
एस्किमो संसार के असामान्य आदिवासी जीवन जीने वाले साँस्कृतिक, भाषाई एवं जातीय एकता के लिए प्रख्यात हैं। एस्किमो का अर्थ होता है− कच्चा माँस खाने वाला। एस्किमो अपने को सारी धरती का ‘प्रमुख एवं वास्तविक’ मनुष्य मानते हैं। इनकी विभिन्न जातियाँ साइबेरिया, नोम, अलास्का, कनाडा, ग्रीनलैण्ड तथा आर्कटिक एरिया के अधिकाँश भाग में बेरिंग स्ट्रेट से ग्रीन लैण्ड−समुद्र से लगे टुण्ड्रा प्रान्त तक फैली हुई हैं। घने जंगलों में बसे एस्किमो मानवी सभ्यता में जीवन संघर्ष में सबसे अग्रणी माने जाते हैं। संघर्ष ही इनकी जीवन गाथा है। इनूपिक और यूपिक इनकी दो भाषायें हैं।
आर्कटिक क्षेत्र में जहाँ बर्फ का साम्राज्य है शून्य से भी कम तापमान रहता है ऐसे विषम वातावरण में भी एस्किमो हँसते−खेलते जीवन व्यतीत कर लेते हैं। मानवी काया के अनुकूल का यह सबसे अनोखा उदाहरण है। ऊँचे आर्कटिक क्षेत्रों में जहाँ ग्रीष्म ऋतु नाम मात्र की होती है वर्ष का अधिकाँश भाग हिमानी तूफानों से भरा होता है। भारी भरकम फर के कोट पहने एस्किमो बर्फ के मकानों में रहते और बर्फ में धँसी सील, वालरस और ध्रुवीय भालुओं का शिकार करके अपना जीवन यापन करते हैं। प्रशांत महासागर तथा बेटिंग के किनारे बसे एस्किमो सील, साल्मन के अतिरिक्त ह्वेल का भी शिकार करते हैं। विशिष्ट आकार के हारपून−मत्स्य भाला तथा स्प्रिंग बेंत की सहायता से एस्किमो अपने शिकार को मारते हैं। बसन्त या ग्रीष्म ऋतु में यात्रा के समय रेनडियर-कुत्तों की सहायता से झुण्ड वाले जानवरों− कैरिबो का शिकार करते हैं। इन जानवरों के चमड़े कपड़े का और माँस भोजन का काम देते हैं। कैरिबो उन जानवरों का समूह होता है जो बसन्त ऋतु में नदियों झीलों को पार कर उत्तर की ओर माइग्रेट करते हैं।
एस्किमो अपने निवास के लिए बर्फ की चट्टानों को काटकर गुफानुमा मकान बनाते हैं। बर्फ काटने का काम 3 फीट लम्बे, 2 फीट ऊँचे ओर 8 इंच मोटे हाथी दाँत से बने तलवार की आकार के ‘बर्फ चाकू’ से करते हैं। स्थायी निवास के लिए 15 फीट चौड़े और 12 फीट ऊँचे ‘स्नो हाउस’ का निर्माण करते हैं। अस्थायी यात्रा पर रहने वाले लोग 7 फीट व्यास वाले तथा 5 फीट ऊँचे स्नो हाउस बनाकर कड़ाके की ठण्ड से अपनी जीवन रक्षा करते हैं।
गर्मियों में यात्रा के लिए एस्किमो कायाक एवं डमिआक नामक नावों का प्रयोग करते हैं। कायाक में केवल एक ही व्यक्ति बैठकर शिकार को जाता है। डमिआक नाव पर पूरा परिवार बैठकर एक स्थान से दूसरे स्थान को यात्रा करता एवं शिकार करता है। ठंड के दिनों में जमी हुई बर्फ पर यात्रा करने का मुख्य साधन स्लेज गाड़ियाँ होती हैं जिन्हें कुत्ते खींचते हैं।
एस्किमो परिवार में घर का बड़ा−बूढ़ा व्यक्ति ही उस परिवार का मुखिया होता है। उसका निर्णय सबको मान्य होता है। आवश्यकता पड़ने पर मुखिया दैनिक जीवन की समस्याओं पर परिवार के अन्य सदस्यों, महिलाओं और बड़े बच्चों से सलाह मशविरा भी करता है। पुरुष एवं बच्चे शिकार को जाते और महिलायें घर−गृहस्थी का कार्य सम्भालती हैं। वृद्ध महिलाओं को बच्चों की रखवाली का काम सौंपा जाता है। शादी विवाह खून के रिश्ते में ही किये जाते हैं। पारिवारिकता की स्नेह−सौजन्यता−उदारता उस समय देखने को मिलती है जब खाद्य संकट अथवा अकाल का सामना करना पड़ता है। खाद्य संकट की विषम परिस्थितियों में सभी शिकारी अपने मारे हुए शिकार को आपस में मिल बाँट कर खाते हैं। उस समय किसी की उपेक्षा नहीं की जाती।
एस्किमो दंपत्ति अपने बच्चों के प्रति सदैव जागरुक रहते हैं। यदाकदा ही बच्चों को दण्ड देते हैं। आठ वर्ष की उम्र तक बच्चे यह भली प्रकार जान जाते हैं कि उनका जीवन कितना संघर्ष मय है और तद्नुरूप अपने से बड़ों का अनुसरण करने लगते तथा उनके कामों में हाथ बँटाने लगते हैं। ये लोग यौवन आरम्भ होते ही लड़कियों की शादी कर देते हैं परन्तु बीस वर्ष की आयु के पहले लड़कों का विवाह नहीं करते।
एस्किमो लोगों की मृत्यु दुर्घटनाओं के कारण अधिक होती है। ये मृत्यु को दार्शनिक रूप से भी स्वीकार करते हैं। कुछ क्षेत्रों में बीमार या वृद्ध व्यक्तियों को बिना किसी पश्चाताप के मार दिया जाता है। मृतक व्यक्ति को घर से बाहर निकाल कर ऐसे स्थान पर रख दिया जाता है जिससे मृतात्मा रास्ता भटक जाय और फिर से मकान के अन्दर प्रवेश करके किसी को नुकसान न पहुँचा सके। किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाने पर एस्किमो संक्षिप्त शोक ही मनाते हैं, व्यर्थ का कुहराम नहीं मचाते।
एस्किमो आत्मा की अमरता और पुनर्जीवन पर विश्वास करते हैं। उनकी मान्यता है कि पशु अथवा मनुष्य की मृत्यु के बाद उसकी आत्मा शान्त हो जाती है और कुछ समय बाद फिर से उसी जाति में नया जन्म धारण करती है। प्रत्येक जाति की एक “गार्जियन स्प्रिट” होती है। ईश्वर, देवता, दैत्य, दानव पर भी एस्किमो विश्वास करते हैं। उनका विश्वास है कि देवता आधे मनुष्य तथा आधे जानवर तत्व से बने होते हैं। अपनी आध्यात्मिक रक्षा करने के लिए एस्किमो तन्त्र−मन्त्र, ताबीज आदि का उपयोग करते तथा किसी अतीन्द्रिय क्षमता सम्पन्न शैमन का आश्रय लेते हैं। शैमन बीमारियाँ दूर करने तथा भविष्य बताने का कार्य करते हैं।
सर्वथा विपरीत परिस्थितियों में रहकर भी कैसे प्रफुल्लता, उल्लास से भरा जीवन जिया जा सकता है, एस्किमो प्रजाति उसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। बहुसंख्य व्यक्ति अपना सारा जीवन इसी दारोमदार में लगा देते हैं। किन्तु इनके बिना भी प्रतिकूलताओं के बीच भी शारीरिक अनुकूलन एवं मानसिक समस्वरता बनाए रखकर जीना सम्भव है। सम्भव है आर्य जब मध्य एशिया से भारतवर्ष में आये तब ऐसे ही प्रतिकूल वातावरण में रहे हों। हिमालय की वर्तमान परिस्थितियाँ ऐसी ही हैं जिनमें योगीजन निवास करते हैं। वास्तविकता यही है कि मनुष्य हर हालात में स्वयं को ढाल सकता है, बशर्ते वह मनो बल का धनी हो।