Magazine - Year 1986 - Version 2
Media: TEXT
Language: HINDI
Language: HINDI
समग्र श्रेष्ठता विकसित करें
Listen online
View page note
Please go to your device settings and ensure that the Text-to-Speech engine is configured properly. Download the language data for Hindi or any other languages you prefer for the best experience.
फूल की सुन्दरता और महक उसकी किसी पंखुड़ी तक सीमित नहीं है। वह उसकी समूची सत्ता के साथ गुंथी हुई है।
आत्मिक प्रगति के लिए कोई योगाभ्यास विशेष करने से हो सकता है कि स्थूल शरीर या सूक्ष्म शरीर के कुछ क्षेत्र अधिक परिपुष्ट प्रतीत होने लगे और कई प्रकार की चमत्कारी सिद्धियाँ प्रदर्शित की जा सकें।
आत्मा की महानता के लिए इतने भर से काम नहीं चलता। उसके लिए जीवन के हर क्षेत्र को समर्थ, सुन्दर एवं सुविकसित होना चाहिए।
दूध के कण-कण में घी समाया होता है। हाथ डालकर उसे किसी एक जगह से नहीं निकाला जा सकता। इसके लिए उस समूचे का मन्थन करना पड़ता है।
जीवन एकांगी नहीं है। उसके किसी अवयव विशेष को या प्रकृति विशेष को उभारने से काम नहीं चलता। आवश्यक है कि अन्तरंग और बहिरंग जीवन के हर पक्ष में उत्कृष्टता का समावेश किया जाय।
ईश्वर का निवास किसी एक स्थान पर नहीं है। वह सत्प्रवृत्तियों का समुच्चय समझा जा सकता है। ईश्वर की आराधना के लिए आवश्यक है कि व्यक्तित्व के समग्र पक्ष को श्रेष्ठ और समुन्नत बनाया जाय।