Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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जीवधारियों की विलक्षण चेतना शक्ति
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सन 1904 में अमरीका के पश्चिमी द्वीप समूह का 5000 फुट ऊँचा माउन्ट पीरो नामक पर्वत ज्वालामुखी बनकर फूटा था और उसके टुकड़े-टुकड़े उड़ गये थे। कोई तीस हजार व्यक्ति मरे थे और करोड़ों की संपत्ति नष्ट हुई थी। इस दुर्घटना की आशंका मनुष्यों में से किसी को न थी किन्तु वहाँ के पशु पक्षी महीनों पहले घबराते हुए लगते थे। रात को एक स्वर में रोते थे और धीरे-धीरे अन्यत्र खिसकते जाते थे। विस्फोट के मुख्य केन्द्र से सर्प, कुत्ते, सियार कहीं अन्यत्र चले गये थे और उनके दर्शन दुर्लभ बन गये थे। पक्षियों ने तो वह पूरा ही द्वीप खाली कर दिया था।
प्राणिविद्या विशारद विलियम जे. लॉग ने पशुओं की इन्द्रियातीत शक्ति के बारे में अपनी पुस्तकें ‘हाड एनिमल्स टाक’ में विस्तृत प्रकाश डालते हुए बताया है कि भले ही बुद्धि-कौशल में मनुष्य की तुलना में पशु पिछड़े हुए हों पर उनमें इंद्रियातीत शक्ति कहीं अधिक बढ़ी-चढ़ी होती है, उसी के आधार पर वे अपनी जीवनचर्या का सुविधापूर्वक संचालन करते हैं।
लॉग महोदय ने अपनी पुस्तक में ऐसे अनेकों प्रसंग भी लिखे हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि जीव-जन्तुओं को, निकट भविष्य में घटित होने वाले घटनाक्रम का भी सही पूर्वाभास मिल जाता है। यदि उनकी वाणी होती तो वे कहीं अधिक सही भविष्य कथन कर सकते।
पुस्तक के कुछ संस्मरण इस प्रकार हैं- एक मैदान में हिरनों का झुण्ड ऐसी अस्वाभाविक तेजी से घास चर रहा था मानो उन्हें कहीं जाने की आतुरता हो। उस समय कुछ कारण समझ में नहीं आ रहा था, पर कुछ घण्टे बाद ही बर्फानी तूफान आ गया और कई दिन तक घास मिलने की सम्भावना नहीं रही। स्थिति का पूर्वाभास प्राप्त करके हिरन अत्यन्त तीव्रता से इतनी घास चरने में लगे थे कि कई दिन तक उनसे गुजारे हो सकें।
जब बर्फ पड़ने को होती है तब रीछ अपनी गुफा में चले जाते हैं और उनमें पहले कई दिन का आहार जमा कर लेते हैं। उत्तरी कनाडा में झील की मछलियाँ बर्फ की मोटी सतह झील पर जमने से पहले ही गर्म जगह में पलायन कर जाती हैं।
वियना में एक कुत्ता माल उठाने उतारने की क्रेन के समीप ही पड़ा सुस्ता रहा था। अचानक वह चौंका उछला और बहुत दूर जाकर बैठा। इसके कुछ देर बाद क्रेन की रस्सी टूटी और भारी लौह खण्ड उसी स्थान पर गिरा जहाँ कुत्ता बैठा था। कुत्ते के चौंककर भागने का कारण उसका पूर्वाभास ही था।
एक बार स्पेलनजानी नामक एक इटैलियन ने चमगादड़ की उड़ान का परीक्षण किया। उसने एक कमरे की छत से बहुत से धागे लटकाये और उनमें घण्टियाँ बाँध दी कि जिससे धागों से टकराने पर वे घण्टियाँ बजें। उसके बाद उसमें एक चमगादड़ को दौड़ाया। चमगादड़ बड़ी देर तक बन्द कमरे में दौड़ता रहा पर एक भी घंटी न बजी। चमगादड़ की दृष्टि बहुत कमजोर होती है, उसने किस तरह अपने आपको उन धागों से बचाया यह बड़ा आश्चर्य है। कहते हैं, चमगादड़ प्रति सेकेंड 30 बार ध्वनि तरंगें भेजता है और जितने समय में उसे उनकी प्रतिध्वनि आती है, वह सामने वाली बाधाओं का पता लगा लेता है और उनसे बचकर निकल जाता है।
वर्मा की कलादान घाटी में एक बिल्ली की एक विचित्र समाधि बनी है। इसके चारों ओर लिखा है- “यह बिल्ली यदि हमारी समय पर सहायता न करती तो हम मारे जाते और पराजित होते”- इन शब्दों में वास्तव में जीवों में अद्भुत अतीन्द्रिय क्षमता का इतिहास अंकित है। बात उन दिनों की है जब वर्मा में अँग्रेजों और जापानियों के बीच युद्ध चल रहा था। एक दिन अंग्रेजों की टुकड़ी ने एक जापानी टुकड़ी पर आक्रमण कर दिया। जापानियों ने पीछे हटने का नाटक खेला वास्तव में वे पीछे नहीं हटे वरन् खदकों में छिप गये मानों वे सचमुच भाग गये हों। एक मेज पर वे ताजा पका पकाया खाना भी छोड़ गये उसे देखते ही अंग्रेज सैनिक उस खाने पर टूट पड़े किन्तु अभी वे प्लेटों तक नहीं पहुँच पाये थे कि उनमें से एक सार्जेट रैडी की काली बिल्ली उस खाने पर जा टूटी और बुरी तरह गुर्राकर अंग्रेज सैनिकों को पीछे हटा दिया अँग्रेजों ने बिल्ली को धमकाया भी वह अपनी क्रुद्ध मुद्रा में तब तक गुर्राती ही रही जब तक वहाँ एक भयंकर धमाका नहीं हो गया। वास्तव में उस खाने के साथ बारूदी सुरंग का संपर्क जुड़ा था उन सैनिकों के प्राण ले सकता था पर बिल्ली ने अपनी आत्माहुति देकर न केवल अपनी स्वामिभक्ति का परिचय दिया अपितु उसने यह भी बता दिया कि जीव जिन्हें हम तुच्छ समझते हैं किस तरह विलक्षण आत्मिक गुणों- अतीन्द्रिय क्षमताओं से ओत-प्रोत होते हैं।
समुद्री तूफान आने से बहुत पहले ही समुद्री बतखें आकाश में उड़ जाती हैं और तूफान की परिधि के क्षेत्र से बाहर निकल जाती हैं। डालफिन मछलियाँ चट्टानों में जा छिपती हैं, तारा मछली गहरी डुबकी लगा लेती है और ह्वेल उस दिशा में भाग जाती है, जिसमें तूफान न पहुँचे। यह पूर्व ज्ञान इन जल-जन्तुओं का जितना सही होता है उतना ऋतु विशेषज्ञों के बहुमूल्य उपकरणों को भी नहीं होता।
किसी अँधेरे कमरे में बहुत पतले ढेरों तार बंधे हों उसमें चमगादड़ छोड़ दी जाय तो वह बिना तारों से टकराये रात भर उड़ती रहेगी। ऐसा इसलिए होता है कि उसके शरीर से निकलने वाले कम्पन तारों से टकरा कर जो ध्वनि उत्पन्न करते हैं उन्हें उसके संवेदनशील कान सुन लेते हैं और यह बता देते हैं कि तार कहाँ बिखरे पड़े हैं। बिना आँखों के ही उसे इस ध्वनि माध्यम से अपने क्षेत्र में बिखरी पड़ी वस्तुएँ दीखती रहती हैं।
इस घटना को लेकर जार्जिया विज्ञान एकेडेमी के शरीर शास्त्री आई. एस. बेकेताश्विली ने शोध कार्य आरम्भ किया कि क्या पशुओं में अतिरिक्त अतीन्द्रिय चेतना होती है? और क्यों वे उसके आधार पर बिना इन्द्रियों का प्रत्यक्ष सहारा लिये वह काम कर सकते हैं जो आँख, कान आदि से ही सम्भव है।
उन्होंने यह परीक्षण कई जानवरों पर किये कि क्या उनमें इतनी अतीन्द्रिय चेतना होती है जिसके सहारे वे प्रधान ज्ञानेन्द्रिय आँख का काम कर सकें। इसके लिए उन्होंने एक बिल्ली पाली। नाम रखा- ल्योवा। उसकी आँखों पर ऐसी पट्टी बाँधी गई जिससे वह कुछ भी न देख सके। उसे साधारणतया बाँधकर रखा जाता, पर जब खाने का वक्त होता तो उसे खोला जाता और खाने की तश्तरी कमरे के एक कोने पर दूर रख दी जाती। शुरू में तो उसे अपना भोजन तलाश करने में कठिनाई हुई पर पीछे वह इतनी अभ्यस्त हो गयी कि कमरे के किसी भी स्थान पर खाना रखा जाय वह वहीं पहुंच जाती।
नाक की गन्ध से सूंघ कर उसके आधार पर वह ऐसा कर सकती है यह बात वैज्ञानिक जानते थे इसलिये उन्होंने इसके साथ ही अतीन्द्रिय ज्ञान की एक कठिन परीक्षा यह रखी कि तश्तरी में ही पत्थर के टुकड़े भी रख दिये जाते। गन्ध तो सारे प्लेट में से उठती थी इसलिये उसमें रखी हुई किसी चीज को वह मुँह में डाल सकती थी, पर देखा गया कि बहुत ही निश्चित रीति से उसने अपना खाना ही खाया और पत्थर के टुकड़ों को चाटा तक नहीं। इसी प्रकार कुछ दिन में वह रास्ते में रखी हुई कुर्सी, सन्दूक आदि को बचाकर इस तरह अपना रास्ता निकालने लगी जिससे किसी चीज के गिरने की दुर्घटना भी न हो और चलना भी कम पड़े। इसका विज्ञान सम्मत समाधान वैज्ञानिक दे नहीं पाए।
क्षुद्र समझे जाने वाले जीवधारियों की चेतना अति विलक्षण सामर्थ्य सम्पन्न होती है। यह एक महत्वपूर्ण तथ्य का द्योतक है कि यही शक्ति का पुँज मानव में भी है पर प्रसुप्त स्थिति में विद्यमान है। उसे जगाया, उभारा व विकसित किया जा सकता है। आत्म सत्ता के वैभव का बोध तो पहले व्यक्ति को हो।