Magazine - Year 1986 - Version 2
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Language: HINDI
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पंचकोशी-संपदा (kavita)
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देव-दुर्लभ हमें देह दी आपने। कम नहीं यह कृपा जो कि की आपने।
निम्नतम योनियों में भटकते कई, तब हमें दी, मनुज देह दी आपने॥
‘अन्नमय-कोश’ सब साधनों के सहित, पुण्य-पूंजी कमाने हमें दे दिये।
जब तरसते कई, कौड़ियों के लिये, तब अनूठे खजाने हमें दे दिये॥1॥
‘प्राणमय-कोश’ की श्रेष्ठ-सम्पत्तियाँ। वीर बजरंग की सात्विक-शक्तियाँ।
प्राण का हो मिलन बस महा प्राण से, वे मचलती हुई प्राण-अनुरक्तियाँ॥
साहसी-प्राण, अन्याय से जूझने , लोक हित में जुटाने हमें दे दिये।
जब तरसते कई, कौड़ियों के लिये, तब अनूठे-खजाने हमें दे दिये॥2॥
दे दिया आपने शुद्ध अन्तःकरण। कर सके चेतना ताकि प्रज्ञा वरण।
हो सके मानवी-चेतना में उदय, दिव्य-अलोक की किलकिलाती किरण॥
दीप ज्योतिर्मय-‘मनोमय-कोश’ के लोक-पथ जगमगाते हमें दे दिये।
जब तरसते कई कौड़ियों के लिये, तब अनूठे-खजाने हमें दे दिये॥3॥
सम्पदाएँ ये ‘विज्ञान मय-कोश’ की। भाव-संवेदनाएँ, विमल-बोध की।
आत्मवत् सर्व भूतेषु की भावना, कर रही है शमन अग्नि-विद्वेष की॥
भक्ति के भाव-विह्वल कि पर-पीर पर, स्नेह रस छलछलाने हमें दे दिये।
जब तरसते कई, कौड़ियों के लिये, तब अनूठे-खजाने हमें दे दिया॥4॥
दिव्य ‘आनंदमय-कोश’ का क्या कहें। आत्म-आनंद के मौन-निर्झर बहें।
शेष रहती नहीं, द्वैत की भावना, ब्रह्म रस से सने हम अहिर्निश रहें॥
शाँति, संतोष के, तृप्ति के, तुष्टि के, स्त्रोत पीने, पिलाने हमें दे दिये।
जब तरसते कई, कौड़ियों के लिये, तब अनूठे-खजाने हमें दे दिये॥5॥
कोश सौंपे नहीं हैं, क्षरण के लिये। भोग में ही खपाकर मरण के लिये।
बाँटने के लिये दी अतुल-सम्पदा, हर अभावों ग्रसित दीन-जन के लिये॥
देवता हों प्रकट इस, मनुज-देह में, पुण्य पावन सोम, अमृत पिये।
जब तरसते कई, कौड़ियों के लिये, तब अनूठे-खजाने हमें दिये॥6॥
*समाप्त*