Magazine - Year 1987 - Version 2
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Language: HINDI
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पूर्णिमा का चाँद (Kahani)
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पूर्णिमा का चाँद अपनी समग्रता को बखानने और इतराने लगा। दूसरे दिन से ही उसका घटना शुरू हो गया। अमावस्या तक पहुँचते-पहुँचते उसका नामों निशान मिट गया।
शुक्ल पक्ष की द्वितीय का चाँद निकला तो उसने अपने तुच्छता को समझा और विकास के लिए प्रयत्नशील बढ़ने लगीं।
ईसा एक गाँव से होकर गुजर रहे थे। उनने एक आदमी को वेश्या के पीछे भागते हुए देखा, तो रुक गए और उसे अनुचित से रुकने की बात समझाने लगे।
गौर से चेहरा देखा तो वह पूर्ण परिचित-सा लगा। स्मरण करने पर पुरानी घटना याद आई। उनने फिर कहा अरे तू तो वह व्यक्ति है जिसने दो वर्ष पूर्व अंधेपन से छुटकारा पाने की याचना की थी और मैंने प्रभु से प्रार्थना करके ज्योति दिलाई थी।
उस व्यक्ति ने ईसा को पहचान लिया और बोला “आप जो कहते है। सो ही यथार्थ है। मैंने तुझे दृष्टि इसीलिए दिलाई थी कि उसका उपयोग ऐसे घिनौने काम के लिए करे।
व्यक्ति कुछ देर चुप बैठा रहा और अपनी भूल पर आँसू बहाता रहा, पर आगे पैर बढ़ाते हुए महाप्रभु के चरण चूम उसने दबी जबान से इतना और कहा आप में नेत्र दृष्टि दिलाने की सामर्थ्य थी यदि विवेक दृष्टि पहले दिलाई होती?
ईसा ने आज नया पाठ पढ़ा वे लोगों की सुविधा दिलवाने की अपेक्षा उनकी समझ सुधारने की बात को प्राथमिकता देने लगे।