Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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ध्यान योग की वैज्ञानिकता अब प्रयोगशाला में भी प्रमाणित
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स्नायु तंत्रिकाओं को सुव्यवस्थित कर मन शक्ति बढ़ाने तथा स्नायु रस स्रावों के किसी असंतुलन से उपजे मानसिक तनाव, अवसाद, अल्पमंदता इत्यादि विकारों को दूर करने हेतु पिछले दिनों ध्यान-धारणा के प्रयोगों पर काफी विस्तार से संसार भर में कार्य हुआ है। इसमें कोई संदेह नहीं कि एक स्वस्थ व्यक्ति सुनियोजित ढंग से ध्यान योग का अवलम्बन लेकर एकाग्रता तन्मयता के साथ जब आदर्शवादी उत्कृष्टता को जोड़ता है तो न केवल अपनी प्रसुप्त क्षमताओं को जगाकर विभूतियों का स्वामी बनता है, अपितु विश्व वसुधा को भी लाभान्वित करता है। इस विद्या के इन दिनों स्थूल व सूक्ष्म शरीर के स्तर पर चल रहे प्रयोग यह बताते हैं कि मन को प्रशिक्षित किया जा सकता है। अपनी स्वचालित (आटोनॉमिक) एवं अन्याय गतिविधियों को इच्छा शक्ति द्वारा नियंत्रित भी किया जा सकता है। इलेक्ट्रॉनिक मेडीटेशन नामक विद्या में ध्यान योग के ही बायोफीडबैक पद्धति द्वारा प्रयोग किये जाते हैं एवं ये प्रयोग अचेतन मन के प्रशिक्षण आत्म नियंत्रण में बड़े सफल सिद्ध हुए हैं।
ध्यान साधना से शरीर-क्रिया विज्ञान पर पड़ने वाले संभावित प्रभावों की खोज का कार्य तंत्रिका विशेषज्ञों ने ई.ई.जी., ई.सी.जी., ई.एम.जी., पॉलीग्राफ जैसे आधुनिक उपकरणों के माध्यम से किया है और पाया है कि ध्यानस्थ मस्तिष्क में अनेकों विशेषताएँ विकसित हो जाती हैं। लम्बे समय तक ध्यान का अभ्यास करते रहने पर व्यक्ति के मस्तिष्क और शरीर में कई तरह की जैव रासायनिक प्रक्रियायें सक्रिय हो उठती है। कई अवाँछनीय प्रक्रियाएँ तो उसी समय निष्क्रिय हो जाती है। ध्यान की गहराई में उतरने पर चेतन मन की शक्तियों का विकास होता है। फलतः मनुष्य का सम्बन्ध सृजनात्मक बौद्धिकता से जुड़ता और उसी परिणति को प्राप्त होने लगता है। यह ऐसी श्रमहीन शारीरिक मानसिक प्रक्रिया है जिसे सामान्य व्यक्ति भी कर सकता है। केवल घंटे भर के दैनिक अभ्यास से मनुष्य प्रसन्न चित्त और सृजनशील बना रह सकता है।
“ऑटोनॉमिक स्टैबिलिटी एण्ड मेडीटेशन” नामक अपने अनुसंधान निष्कर्ष में प्रसिद्ध चिकित्सा विज्ञानी डेविड डब्ल्यू ओर्मे जान्सन ने बताया है कि ध्यान योगी के तंत्रिका तंत्र में एक नवीन चेतना आ जाती है और उसके सभी क्रिया कलाप नियमित स्थायी रूप से होने लगते हैं। शरीर की त्वचा बाह्य वातावरण के प्रति प्रतिरोधी क्षमता धारण कर लेती हैं और उस पर आये दिन पड़ने वाले वातावरण के दबाव, साइको सोमेटिक बीमारियाँ, व्यावहारिक अस्थायित्व एवं स्नायु तंत्र की विभिन्न कमजोरियाँ आदि दूर हो जाती हैं शरीर के अंदर शक्ति का संरक्षण और भण्डारण होने लगता है और यह अतिरिक्त ऊर्जा शरीर और मन के विभिन्न कार्यों व्यवहारों को अच्छे ढंग से सम्पादित करने में प्रयुक्त होती है।
डॉ. थियोफोर के अनुसार ध्यान योग से मनुष्य की साइकोलॉजी में असाधारण रूप से परिवर्तन होता है। उन्होंने अपने अनुसंधान में बताया है कि नियमित अभ्यास से घबराहट, उत्तेजना मानसिक तनाव, मनोकायिक बीमारियों आदि से जल्दी ही छुटकारा पाया जा सकता है। स्वार्थपरता में कमी, आत्मसंतोष एवं सहनशक्ति में वृद्धि होती है जीवटता, भावनात्मक स्थिरता, कार्यदक्षता, विनोद प्रियता, एकाग्रता जैसे सद्गुणों की वृद्धि ध्यान के प्रत्यक्ष लाभ मिलते हैं। सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक विलियम सीमेन ने भी अपने अध्ययन में पाया है कि ध्यान का अभ्यास नियमित क्रम से करते रहने पर अन्तःवृत्तियों- अन्तःशक्तियों पर नियन्त्रण पाया जा सकता है और चिन्ता मुक्त हुआ जा सकता है। इतना ही नहीं, इससे व्यक्तित्व विकास की महत्वपूर्ण प्रक्रिया को भी सम्पादित किया जा सकता है।
नीदरलैण्ड के वैज्ञानिक विलियम पी. वानडेनबर्ग और बर्ट मुल्डर ने ध्यान योग पर गहरा अनुसंधान किया है। विभिन्न उम्र, लिंग और शैक्षणिक योग्यता वाले ध्यान के अभ्यास कर्ताओं पर किये गये प्रयोगों के आधार पर इन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि इससे दृष्टिकोण को परिवर्तित करने में भारी सहायता मिलती है। अभ्यासियों में भौतिक और सामाजिक अपर्याप्तता, दबाव एवं कठोरतायुक्त व्यवहार में कमी आती तथा आत्म सम्मान की वृद्धि होती है।
सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक राबर्टकीथ वैलेस ने अपनी पुस्तकें “इश्यूज ऑफ साइन्स” में लिखा है कि ध्यान के समय आक्सीजन की खपत तथा हृदय की गति कम हो जाती है। श्वास क्रिया शिथिल होने से शरीर की आक्सीजन की पूर्ति में कमी आती है। परीक्षण में पाया गया है कि आक्सीजन उपभोग की यह क्षमता 20 प्रतिशत तक कम होती चली जाती है। इससे चयापचय की प्रक्रियाओं में खपत होने वाली ऊर्जा की बचत होती है। ध्यान अभ्यासी की औसत कार्डियक आउट पुट हृदय से पम्प किये गये रक्त की मात्रा में भी कमी आँकी गई है। देखा गया है कि औसत हृदय की धड़कन की दर में अभ्यास के समय 4 बार प्रति मिनट तक की कमी आ जाती है। इससे उच्च रक्त चाप को नियंत्रित करने में सहायता मिलती है। हर्बट बेन्सन एवं राबर्ट कीथ वैलेस ने उच्च रक्तचापयुक्त 22 बीमार व्यक्तियों का ध्यान के पूर्व और उसके पश्चात् 1111 बार उनका सिस्टोलिक एवं आर्टीरियल ब्लड प्रेशर रिकार्ड किया। पाया गया कि ध्यान के बाद उक्त रोगियों के रक्तचाप में महत्वपूर्ण कमी आई। यह ध्यान निराकार अन्तर्मुखी कमी आई। यह ध्यान निराकार अन्तर्मुखी साधना के रूप में था जिसमें टेपरिकार्डर से संदेश दिये गये थे।
शरीर की माँस-पेशियों में होने वाली रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप रक्त में विद्यमान अम्ल रूपी विष-ब्लड लैक्टेट काफी मात्रा में बढ़ जाता है। फलतः मानसिक व्यग्रता तनाव, चिन्ता, थकान जैसे विकार उत्पन्न होते हैं। ध्यानस्थ साधक के शरीर में इस विषैले पदार्थ का स्तर 33 प्रतिशत बहिरंग में प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होती है। शरीर शिथिल होकर योगनिद्रा जैसी स्थिति में चला जाता है। इस अल्पकालीन नींद के परिणाम स्वरूप ही साधक ध्यान के अंत में मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से स्वस्थ एवं हल्का-फुलका महसूस करता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 24 मिनट की ध्यान साधना 3 घंटे की गहरी नींद के बराबर स्फूर्ति प्रदान करती है।
मानवी मस्तिष्क में विद्यमान विद्युत्स्फुल्लिंग परिस्थितियों के अनुसार अल्फा, बीटा, थीटा एवं डेल्टा नामक चार प्रकार की विद्युत तरंगों को छोड़ते रहते हैं। अन्तर्मुखी ध्यान की स्थिति में क्रियाशीलता आने पर इनमें जो भी परिवर्तन होते हैं। इन्हें ई.ई.जी. में स्पष्ट देखा जा सकता है। ध्यान में प्रगाढ़ता आने पर अल्फा तरंगें मस्तिष्क के अग्रभाग से सतत् उभरती रहती हैं, जिससे मन और शरीर शिथिल एवं विश्रान्ति की दशा को प्राप्त होता है। इससे साधक को गहरी नींद आने का भी अनुभव होता है। ध्यान सहज रूप में टूटने पर जागरूकता एवं स्फूर्ति का अनुभव होता है इस स्थिति में मनोबल इतना सशक्त हो जाता है कि अभीष्ट प्रयोजन को भली प्रकार पूरा कर सके, चाहे वह भौतिक हो या आध्यात्मिक।
ध्यानयोग अब चिकित्सा विज्ञान में एक विद्या के रूप में प्रतिष्ठा पा चुका है और उससे विभिन्न शारीरिक एवं मानसिक रोगों का उपचार भी संभव हुआ है। ध्यान योग की प्रभावोत्पादक सामर्थ्य को यहीं तक सीमित न रहने देकर अन्तराल की गहराई में उतरने, उत्कृष्ट भाव संवेदनाओं को विकसित करने का अभ्यास किया जाना चाहिये। चाहे आत्म निर्देशन द्वारा अथवा गंध स्पर्श, दृश्य वर्ण, संगीत, मंत्र इत्यादि के सहारे ध्यान किया जाए, उसे अभ्यास द्वारा इतना गहरा बनाया जाए कि आत्म सत्ता अपने मूल लक्ष्य को पहचान कर अभीष्ट लक्ष्य तक पहुँच सके। यही तो ध्यान धारणाओं का मूल प्रयोजन भी है।