Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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मनुष्य अपने भाग्य का निर्माता स्वयं
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किस के भाग्य में समृद्धि, प्रगति और प्रतिष्ठा बढ़ी है इसे जानने के लिए किसी के गृह नक्षत्र देखने की आवश्यकता नहीं है और न किसी पंडित ज्ज्योतिषी से पूछने की आवश्यकता है। किसी का भी भला-बुरा भविष्य जानने के लिए इतनी जानकारी पर्याप्त है कि कौन अपने को अधिक सुयोग्य, सक्षम एवं सुसंस्कृत बनाने के लिए किस सीमा तक प्रयत्न कर रहा है।
आज का प्रयास ही कल परिणति बनकर सामने आता है। दूसरा कोई किसी को न ऊँचा उठाता है और न नीचे गिराता है। मनुष्य अपनी विचारणा और क्रिया पद्धति के सहारे ही अपने को उत्कृष्ट और निकृष्ट बनाता है। तदनुरूप ही उसके सामने परिस्थितियाँ विनिर्मित होती और सामने आ खड़ी होती है।
दूसरों के दिए हुए अनुदान सुरक्षित रखने तथा उनका सदुपयोग कर सकने की क्षमता अपने भीतर से उत्पन्न होती है। जिन्होंने अपने को शालीनता के ढाँचे में ढाला है वे समर्थों और सज्जनों से सम्मान तथा सहयोग प्राप्त करते हैं और अपने क्रिया-कलाप के आधार पर ऊंचे उठते चले जाते हैं।
अनपढ़ व्यक्तियों की वाणी में कर्कशता, क्रिया कलाप में अस्तव्यस्तता, चिन्तन में निकृष्टता का समावेश होने से उनकी प्रकृति ऐसी बन जाती है जिससे भविष्य हर दृष्टि से अन्धकारमय ही बनता चला जाता है।
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