Magazine - Year 1988 - Version 2
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Language: HINDI
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आदर्श दाम्पत्य जीवन का पाठ पढ़ाते हैं, हमें ये जीव जन्तु!
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निरीह समझे जाने वाले पशु पक्षियों, कीट पतंगों को भी प्रकृति के ऐसे अनुदान मिले है जिनके आधार पर वे अपना सुखमय जीवन व्यतीत करते रहते है। कई प्राणी सभ्य मनुष्य की तरह आदर्श गृहस्थ का जीवन पर्यन्त परिपालन करते हुए देखे जाते है। इनकी प्रेम सम्बन्धी क्रियायें प्रतिक्रियायें अतिरोचक एवं आकर्षक होती है। प्रेम प्रस्तावित करने के लिए यह कैसे कैसे तरीकों का प्रयोग करते हैं, यह जानकार सचमुच आश्चर्य होता है।
विशेषज्ञों के अनुसार मूक पशु पक्षी भी स्वयंवर प्रथा को अपनाते हैं एवं एक पत्नीव्रत धारण कर जीवन पर्यन्त इसका निर्वाह करते है। ऐसी धार्मिकता एवं त्याग प्रवृत्ति को अपनाकर यह सफलतापूर्वक जीवन जीते है। डिग डिग जाति का हिरन एक पत्नि व्रतधारी होता हैं हाथियों की प्रणय कहानी भी इसी तरह की है। हाँ, अपनी बिरादरी के विपरीत लिंग के प्रति वे तभी आकर्षित होते हैं जब जोड़े में से एक की मृत्यु हो जाती है। मनुष्यों में से कम ही ऐसे नियम पालन करने वाले होंगे।
चिंपेंजी बन्दर एक आदर्शवादी जीवन जीता है। इनके विश्राम गृह वृक्षों पर होते है। रात्रि में उसके पत्नि, बच्चे विश्राम करते हैं। और नर चिंपेंजी उनके रक्षार्थ वृक्ष के नीचे बैठा रहता हैं यह जीवन भर पत्नीव्रत धर्म का परिपूर्ण निष्ठा से पालन करता है। अन्य प्राणियों की तुलना में यह अधिक बुद्धिमान भी होता है। मानव शिशु के समतुल्य ही चिंपेंजी शिशुओं का विकास होता है।
कई चिंपेंजी महिलाओं को भी अपने मनोरंजन का केन्द्र बना लेता है। मास्को की मैडम कोहिता ने चिंपेंजी के अध्ययन हेतु एक को कठघरे में बन्द करके रखा। एक सुनहरे वाला वाली खूबसूरत लड़की रसोईघर में भाजन बनाया करती थी। कुछ समय बाद चिंपेंजी ने रीझकर विभिन्न अदाओं से उस पर अपने स्नेह सद्भाव का प्रकटीकरण प्रारंभ किया। इसी बीच नौकर ने एक अवरोधक पर्दा मध्य में डाल दिया। इस पर क्रुद्ध होकर चिंपेंजी ने नौकर को खाना रखते समय आक्रोश का शिकार बनाया और काट खाया।
सामान्यतया मनुष्य अपने प्रेम भाव को व्यक्त करने के लिए जो जो क्रियायें करता है, वे सभी क्रियाएं छोटे जीव जन्तुओं में भी पाई गयी है- जैसे कि अभिवादन, शिष्टाचार, उपहार देना, सुगन्धित पदार्थ देना, गले मिलना आदि। झींगुर साधारण रूप से सामान्य अवसरों पर अपने पंखों के आरी जैसे दाँतों में 87 प्रतिशत का ही उपयोग करता है। किन्तु प्रेम प्रस्ताव के समय 89 प्रतिशत का ही उपयोग करता है किन्तु प्रेम प्रस्ताव के समय 59 प्रतिशत दाँतों का उपयोग करके विशेष ध्वनि उत्पन्न करता है। इतना ही नहीं उनके पंखों के जोड़ों से एक प्रकार का मधुर एवं स्वादिष्ट चाकलेट जैसा पदार्थ स्रवित होता रहता है जिसको मादा झींगुर आनन्द से ग्रहण करती हैं
महान कवि कीट्स ने प्रकृति में कीट पतंगों की प्रेम चेष्टाओं से मुग्ध होकर अपनी अत्युत्तम कविता “ओड टू आटम” में उनके संगीतों एवं नृत्यों का विशद वर्णन किया हैं वैज्ञानिकों में कवि हृदय की रसिकता पाना तो मुश्किल है परन्तु डॉक्टर मोरिस बर्दन ने में फ्लाई नामक मक्खियों के झुण्डों को नदियों के किनारे प्रारंभ में तेजी से पंख फड़फड़ाते हुए ऊपर उड़ते और फिर मंद गति से ताल एवं लयबद्ध होकर समूह में मंडराते देखा तो उन्होंने भाव विभोर होकर कहा “ कीट पतंगों की भावनाओं का पत्ता लगाने का तो हमारे पास कोई साधन नहीं है लेकिन उनकी इन कलात्मक चेष्टाओं के रसास्वादन करने से हमें कोई वंचित नहीं कर सकता”
पक्षियों में नर पक्षी प्रणय प्रस्ताव के साथ साथ अपनी कुशलता एवं सद्भावना प्रकट करने के लिए माद की मनुहार करते है। उनका प्रयत्न भर रहता है पर अन्तिम फैसला मर्जी का साथी चुनने की छूट होती है। निराश नर मुंह लटकाये वापस चले जाते है पर प्रतिशोध किसी से भी नहीं लेते है - न प्रस्तावित प्रेयसी से, न उसके वरण किये साथी से। मनुष्य ही है जो मादा की वरिष्ठता स्वीकार करने के अननुनच करते और अपनी इच्छा थोपते देखे गये हैं। मोर हंस जैसे नर पक्षी नृत्य करते, उपहार देते तो देखे गये हैं पर आक्रमणात्मक रुख कभी भी नहीं अपनाते। इस संबंध में उन्हें नारी की स्वतंत्रता और वरिष्ठता का सदा सम्मान करते देखा गया है। मनुष्यों की तरह वे मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते है।
बर्ड ऑफ पैराडाईज नाम की न्यूजीलैण्ड में पायी जाने वाली चिड़िया एक विशेष ऋतु में विवाह करती है। एक शक्ति में नर और दूसरी में मादायें खड़ी हो जाती हैं। बाल एवं वृद्ध पक्षी तीसरी पंक्ति में विवाहोत्सव देखने के लिए खड़े रहते हैं। नर पंक्ति में से स्वस्थ एवं परिपक्व उम्र के अपनी पंक्ति से निकल कर बाहर आते और नृत्य करते हैं। इस नृत्य से खुश होकर कोई मादा अपनी पंक्ति से आती है और नर की चोंच से चोंच मिलाकर प्रणय स्वीकृति दी है। इसी तरह का नृत्य आयोजन दक्षिण अफ्रीका की दी डार्न्सस बर्ड भी करती है। इसे सभ्य स्वयंवर की संज्ञा दी जा सकती हैं ध्रुवों पर के पेंगुइन पक्षी मुँह में पत्थर ले जाकर प्रणय स्वीकृति की याचना भर करते हैं और स्वीकृति को अपना सौभाग्य मानते हैं।
हंस सामान्यतः प्रवासी पक्षी है। ठंड से बचने के लिए प्रतिवर्ष प्रायः 3000 मील से अधिक दूरी की यात्रा करके वे अपने निश्चित स्थान पर जाते है और लगभग छः महीने पश्चात् पुनः अपने स्थान पर लौट आते हैं। प्रवास यात्रा में सफल होने की प्रौढ़ता के संबंध में आश्वस्त हो जाने के उपरान्त हंस अपनी गृहस्थी बसाने की बात सोचते हैं और उसके लिए पत्नि ढूंढ़ने से पूर्व घर बनाने के प्रयत्न में जुटते है। इसके लिए वे सबसे ऊंचे पेड़ का चुनाव करते है। जो प्रायः चालीस पचास फुट के होते है तथा गहरे पानी के समीप होते है। इस पुरुषार्थरत नर का पराक्रम देख कर इसी बीच कोई दा उसे अपना सहचर वरण कर लेती है और भवन निर्माण में उसका पूरा पूरा साथ देती है। नर और मादा दोनों मिल कर सूखी घास के तिनके एकत्र करते है। मादा उनको घोंसले के निर्माण में लगाती सजाती है। अपने पुराने पंखों का भी उपयोग कर लेती है।
घोंसला बन जाने पर मादा उसमें गृहणी बन कर बैठ जाती है, नर हंस पहरेदारी ही नहीं मनुहारी भी करता रहता है। समयानुसार मादा का प्रसव काल आने पर अंडे सेने का काम दोनों मिल कर करते है। जून की गर्मी में अंडों से पीले रंग की चोंचे निकल आती है जिन्हें देखकर दोनों प्रसन्नता से झूम उठते है। डों से बच्चे बाहर निकलने के तुरन्त बाद नर हंस पेड़ के नीचे बैठ जाता है और मादा अपनी चोंच से हल्के किन्तु निर्दयतापूर्वक नवजात शिशु को घोंसले से बाहर नीचे की ओर धक्का दे देती है। जमीन पर पहुँचते ही नर अपने पंखों से उसको सहारा देता है इसी तरह क्रमशः वे सब बच्चों को उड़ना सिखाते है। तैरने की कला तो उनमें जन्म जाता रूप से पाई जाती है। मादा आगे आगे चलती है, बच्चे पंख फड़फड़ाते हुए उसके पीछे चलते हैं और नर सबसे पीछे उनकी देखभाल करने के लिए चलता है। जलचर प्राणी, शिकारी पक्षी, बिल्ली आदि से बचने के लिए वे अपने बच्चों को कुछ साँकेतिक भाषा सिखाते है। हंस के पंख साढ़े पाँच फुट तक के लम्बे होते है और बिल्ली आदि को तो एक झपट्टे में भगा देते है। अपने चारों ओर का वातावरण सुरक्षित है या नहीं, यह जानने के लिए हंस अपने बच्चों को विभिन्न साँकेतिक प्रक्रियाएं भी सिखाते है। लगभग तीन महीने में बच्चे ऊंची उड़ाने भरना सीख जाते हैं बच्चों की सुरक्षा, भरण पोषण ही नहीं वे उन्हीं सुयोग्य बनाने में भी कुछ उठा नहीं रखते।
हंस समाज बना कर रहते और सहकारी जीवन जीते है। आवश्यकतानुसार एक दूसरे की सहायता भी करते है। किसी के चोट लगने या घाव हो जाने पर बड़े स्नेह से एक दूसरे की देख भाल किया करते है। सितम्बर, अक्टूबर में ठंडक शुरू होते ही वे हजारों की संख्या में अंग्रेजी अक्षर वी के आकार में किसी एक नेता के अनुशासन में हजारों मील की उड़ान आरंभ करते है। इस लम्बी यात्रा में समूह के प्रत्येक सदस्य को अपने झुण्ड का नेतृत्व करने का कठिन उत्तरदायित्व भी सौंपा जाता है। प्रतिदिन वे 10 से 15 घंटे तक उड़ते रहते हैं। रास्ते में विभिन्न स्थानों में ठहरे हंस साथ हो लेते है और नये नये साथी मिलते पर हंस व्यक्त करते है। जीवन यात्रा का सच्चा आनन्द उठाने के लिए हीन पशु-पक्षियों से मनुष्य बहुत कुछ सीख सकता है।